दीवाली से पहले का वनवास

कभी अँधेरा ज़्यादा गहराने लगे,
तो मत समझना कि सूरज सो गया है।
हर दीये के जलने से पहले,
थोड़ा सा तेल क्यों खो गया है।
जब भी लगे कि अब थक गए हो,
ज़रा अपने सपनों को याद करो।
जो रात सबसे अंधेरी लगती है,
वही सुबह का वादा करती है।
राम को भी चौदह बरस लगे थे,
दीवाली के दीप जलाने में,
तो तुम क्यों डरते हो कुछ साल
अपने सपनों के पीछे जाने में?
हर गिरना, बस उठने की तैयारी है,
हर हार, जीत की जिम्मेदारी है।
जिंदगी कभी आसान नहीं होती,
पर खूबसूरत, हाँ, वही होती है।
जो साथ चले-वो सच्चा होता है,
जो अंधेरे में भी रोशनी ढूँढे –
वो अपना होता है।
सीता की तरह विश्वास रखो,
लक्ष्मण-सा साहस रखो,
राम-सा धैर्य रखो –
फिर हर वनवास भी तुम्हारा उत्सव बनेगा।
क्योंकि दीवाली तभी तो चमकती है,
जब दिल ने अँधेरों को हराया हो,
और रौशनी ने कहना सीखा हो –
“मैं डर के बाद भी आया हूँ। ”
-डॉ. प्रियंका सौरभ-
सियासी मियार की रिपोर्ट
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