हर चौराहे पर खड़ी है दिखती..

दौपदी जैसी पड़ी हुई सी
अपने गोविंद का इंतजार है करती
बुत अहिल्या का बनी हुई सी।।
कितनी बेरहम भी दुनिया है अब
दिल में कोई दर्द नहीं
बची नहीं अब बुद्धिहीन भी
क्या अब ये जमाना मर्द नहीं।।
लूटी गई थी रजवाड़ों की
कुलवधू ही दरबारों में
आज गरीब की लुटती औरत
रोज़ है दिखती अखबारों में।।
अपने सखा का लाज बचाने ही
गोविंद भी आये थे
भरे हुए दरबार में सबके
लाज किसी का बचाये थे।।
हे गोविंद! अब आ भी जाओ
द्रौपदी गरीब की पुकार रही है
अब सब दुर्योधन अमीरों के
इज़्ज़त चौराहे उछाल रहे है।।
किसी से भी उम्मीद नहीं है
इज़्ज़त खोती दौपद्री को
बेबस लाचार है छाती पिटती
दिख रही सब कुंती तो।।
दरबार नहीं अब दुनिया सारी
भरी हुई है दुःशासन से
हे गोविंद अब आकर बचा लो
नारी को आज कुशासन से।।
सियासी मियार की रिपोर्ट
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