जटिल सवालों का एक ठोस जवाब
-अजय कुमार पाण्डेय-

किले के मुख्य द्वार पर
रखी हुई है तोप,
यह इसके बुलंद दिनों की गवाह है।
न जाने कितनी लड़ी होंगी
इसने लड़ाइयां,
दागे होंगे बेहिसाब गोले
और युद्धभूमि में
साबित की होगी अपने
होने की भूमिका –
शत्रुओं की, की होगी ऐसी-तैसी।
एक अदृश्य इतिहास को
अपने में समेटे
चुपचाप पड़ी हुई यहां,
अब यही इसकी नियति है।
इतिहास की यात्रा के क्रम में
चाहे जो कुछ भी कह लें
इसके बारे में,
क्या फर्क पड़ने को है भला!
अब इसका अतीत लौटने से रहा,
और आज इसके मुंह में
एक गौरैया बड़ी देर से
घुस रही है
निकल रही है
और इसके बैरल पर
बैठ रही है।
इस क्षण मेरी आंखों के सामने
यह एक अद्भुत दृश्य है
और हमारे इस दौर के
जटिल सवालों का
एक ठोस जवाब भी।।
सियासी मियार की रीपोर्ट
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