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यात्रा वृतान्त : देह ही देश..

यात्रा वृतान्त : देह ही देश..

‘मैं गिनती ही भूल गई कि मेरा कितनी बार बलात्कार किया गया। होटेल के सारे कमरों में ताले लगे रहते, वह खिड़की के रास्ते हमें रोटी फेंकते जिसे हमें दांतों से पकड़ना पड़ता क्योंकि हमारे हाथ तो पीछे बंधे रहते थे। सिर्फ बलात्कार के वक्त ही हमारे हाथ खोले जाते…। हमारी देह को सिगरेट से जलाया जाता, चाकू से जीभ का टुकड़ा काट लिया जाता।’

किताब : देह ही देश -यात्रा वृतान्त
लेखिका : गरिमा श्रीवास्तव
प्रकाशक : राजपाल ऐंड सन्ज
कीमत : 285 रु.

यह लाइनें हैं लेखिका गरिमा श्रीवास्तव की यात्रा वृतान्त ‘देह ही देश’ की। लेखिका के क्रोएशिया प्रवास के दौरान युद्ध पीड़िताओं से मिलने और उनकी आपबीती कहता है यह यात्रा वृतान्त।

युद्ध क्या होता है यह वही जान सकता है जिसने युद्ध की विभीषिका झेली हो। हर युद्ध ने अपने पीछे जनसंहार, विस्थापन, विनाश और भुखमरी की विभीषकाएं छोड़ी हैं लेकिन युद्धों से उपजे कुछ ऐसे अमिट घाव भी होते हैं जिन्हें अक्सर इतिहास के पन्नों में जगह नहीं मिलती। संयुक्त यूगोस्लाविया के विखंडन के बाद बच्चियों, महिलाओं और बूढ़ी औरतों से निर्मम बलात्कार, हिंसा, और पवित्रीकरण के नाम पर जबरन वीर्य वहन कराते वक्त उनकी चीखों से ऐसे ही घाव बने, जो आज तक नहीं भर पाए। इतिहास कहानी और संख्या बता सकता है लेकिन बलात्कार की पीड़ा लिखना इतिहास के लिए शायद मुमकिन नहीं।

किताब में क्रोएशिया प्रवास की घटनाओं का जिक्र है। क्रोएशिया, बोस्निया की युद्ध पीड़िताओं के साथ हुए बर्बर और हैवानियत को इस यात्रा वृतान्त में दर्शाया गया है। किताब की शुरुआत एयरपोर्ट और फिर विमान की यात्रा से हुई है। फिर एक नए देश, नई बोली और खानपान के साथ आने वाली दिक्कतें लेकिन जल्द ही लेखिका की डायरी के पन्ने वहां की महिलाओं के साथ हुए वीभत्स अत्याचारों की कहानियां कहने लगते हैं। लेखिका ने जो सुना उसे किताब के माध्यम से लोगों तक पहुंचाने की कोशिश की है। ‘स्त्री कोख है सिर्फ, उसका महत्व इतना ही है कि वह वीर्य वहन करे ‘इच्छित अथवा अनिच्छित’, वह हमेशा पराजित है।

सियासी मियार की रीपोर्ट