अंबर बहराइची..

पलाशों के सभी पल्लू हवा में उड़ रहे होंगे
मगर इस बार, बंजारे, सुना है ऊंघते होंगे
उसे भी आखिर मेरी तरह हंसना पड़ा अब के
उसे भी था यकीं, उस दश्त में हीरे पड़े होंगे
मुझे मालूम है इक रोज वो तशरीफ लाएगा
मगर इस पार सारे घाट दरिया हो चुके होंगे
हमारे सिलसिले के लोग खाली हाथ कब लौटे
पहाड़ों से नदी इस बार फिर वो ला रहे होंगे
वो मौसम, जब सबा के दोश पर खुशबू बिखेरेगा
हमारी कश्तियों के बादबां भी खुल चुके होंगे
वो खाली सीपियों के ढेर पर सदियों से बैठा है
उसे, मोती, समंदर की तहों में ढूंढ़ते होंगे
सियह शब तेज बारिश और सहमी-सी फिजा में भी
बये के घोंसले में चंद जुगनू हंस रहे होंगे
ये क्या अंबर कि वीराने में यों खामोश बैठे हो
चलो उट्ठो तुम्हारी राह बच्चे देखते होंगे।।
सियासी मियार की रीपोर्ट
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