कविता : अद्भुत कोलाहल कल-कल निनाद..
हे नीरेश्वरी, हे सुरसरि, हे गंगा,
कल-कल स्वर से गामिनी गंगा,
विष्णु-पाद, और शिव-जटा से
आई धरा पर पावन करती गंगा।
ब्रह्मा, विष्णु और महेश की स्तुति
संग भगीरथ ने की भीषण तपस्या
हुआ मनोरथ पूर्ण सभी लोगों का,
मानो पूर्णिमा बन गई आमवस्या।
अद्भुत कोलाहल कल-कल निनाद
संग चन्द्रमौलि जटा निकली गंगा,
नील व्योम से इस वसुंधरा पर,
अंगड़ाई ले इठलाती उतरी पावन गंगा।
मन्दाकिनी पतीत
मां,
हे जलेश्वरी, स्वच्छ-निर्मल गंगा,
गंगोत्री से गंगासागर तक की यात्रा
अविरल धारा में बहती प्यारी गंगा।
सियासी मियार की रेपोर्ट
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