Sunday , November 23 2025

पापा…

पापा…

मोबाइल में ज्ञान इस तरह,
का कुछ पापा भर दो।
हर आदेश हमारा माने,
विवश इस तरह कर दो।
हम मांगे रसगुल्ले उससे,
दौड़ लगाकर लाए।
अपने हाथों से हम लोगों,
के मुंह तक पहुंचाए।
अरे-अरे क्या कहते! बोले,
पापा बात निराली।
क्यों करते हो बात नकारों,
और निकम्मो वाली।
काम हाथ से करने वाले,
ही मंजिल पाते हैं।
जो निर्भर होते औरों पर,
राह वे भटक जाते हैं।

सियासी मियार की रीपोर्ट