घर के पन्नों पर…
-अनुप्रिया-

घर के पन्नों पर
उंगलियों से लिखा था तुम ने
मेरा व अपना नाम
संगसंग
दीवारों को सजाया था तुम ने
अपने होने के एहसास से
जब भी होता हूं घर में
तुम्हारा होना महसूस होता है
घर का मतलब ही मेरे लिए
तुम होती थीं, बस तुम
हां, यह अलग बात है
कह नहीं पाया तुम से कभी
ऐसा नहीं, कभी झगड़े नहीं
हमारी बातचीत बंद नहीं हुई
हर रिश्ते की तरह हमारे बीच भी
खट्टीमीठी यादें बनतीमिटती रहीं
तुम चली गई हो मुझे यों छोड़ कर
सब से अकेला सब के बीच
मैं अब भी तुम्हारे जाने को
मन से मान नहीं पाया हूं
अब इस उम्र में
कैसे निबाहूंगा तुम्हारे बिना
इक बच्चे की ही तरह तो
संभाला है तुम ने मुझे
अकसर हंस कर कहती थीं तुम
हमारे दो बच्चे हैं
एक मेरा बेटा और एक…
और मैं हंस पड़ता था
मानता हूं, जाना सब को है
पर अकेला कैसे लिख सकूंगा
घर के पन्नों पर
अपना व तुम्हारा नाम संगसंग।।
सियासी मियार की रीपोर्ट
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