सवेरा हुआ है!!!
-प्रिया वच्छानी-

लिए आंखों में सूनापन
विकल ये ह्रदय हुआ
छाया हर ओर है तमस
दूर लगता सवेरा हुआ,
अधरों से हंसी मुकर गयी
सांस लगता है ठहर गयी
रीता था जो दामन मेरा
आज अश्रुओं से भरा हुआ
छाया हर ओर है तमस
दूर लगता सवेरा हुआ,
स्मृतियां अब सताती हैं
विरह अनल लगाती है
निशा का आंचल दिखता
चहुं और है पसरा हुआ
छाया हर ओर है तमस
दूर लगता सवेरा हुआ,
नभ मिलन को तड़पता है
चूमने धरा को तरसता है
विरह की अग्नि में आज
सावन लगे बरसता हुआ
छाया हर ओर है तमस
दूर लगता सवेरा हुआ,
पपीहा एक बून्द को तरसे
प्रेम रस में हैं नयन बरसे
आकाश में काली घटा का
लगता ज्यूं बसेरा हुआ
छाया हर ओर है तमस
दूर लगता सवेरा हुआ।।
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