कभी न खत्म होता इंतजार…
-पद्मा सिंह-

ख़ामोशियों में भी जब
चीखें सुनाई दें
कुछ भी कभी भी
घट सकता है!
अनिश्चित अनायास
धसकने वाली
चट्टानों सा!
तब
न धर्म काम आता
न नैतिकता की थोथी दलीलें!
फर्क नहीं कर पाता
जुनून
पाप और पुण्य के नारों में
जानवर जाग जाता है
क्षण भर में
उन्माद
नाखूनों को बदल देता है
हथियारों में
भीगे परों में कँपकंपाते
किसी पंछी सा
धड़कता है दिल
और चुक जाती है चेतना
ऐसे में मुझे ख्याल आता है
घर लौटने की उम्मीद से भरी
उन आँखों का
दो कदम साथ चल कर
ठिठके उन कदमों के ठहराव का
और थरथराते होंठों से
अलविदा कहती
हिलते हाथों की जुम्बिश का
पनीली आँखों में जिन्दा होगी
आज भी
मेरे लौट आने की उम्मीद
सियासी मियार की रीपोर्ट
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