शौक़ बहराइची की ग़ज़ल ‘गिन के देता है बला-नोशों को पैमाना अभी’..

गिन के देता है बला-नोशों को पैमाना अभी
वाक़ई बिल्कुल गधा है पीर-ए-मय-ख़ाना अभी
गुफ़्तुगू करते हैं बाहम जाम-ओ-पैमाना अभी
क़ाबिल-ए-तरमीम है आईन-ए-मय-ख़ाना अभी
हो न क्यूँ-कर वारदात-ए-क़त्ल रोज़ाना अभी
कू-ए-क़ातिल में नहीं चौकी अभी थाना अभी
देखते तो हैं वो हर शय बे-नियाज़ाना अभी
राल गिरती है मगर बे-इख़्तियाराना अभी
शैख़ रहते हैं शरीक-ए-बज़्म-ए-रिंदाना अभी
मुफ़्त मिलती है तो पी लेते हैं रोज़ाना अभी
क्या कहें किस से कहें अपने नुमाइंदों का हाल
जैसे डाका मारता फिरता है सुल्ताना अभी
कैसे पहुँचें उस के दर तक पाँव में ताक़त नहीं
वो है लुधियाना में और है दूर लुधियाना अभी
उस लब-ए-जाँ-बख़्श में देखी नहीं जुम्बिश हनूज़
वाए नाकामी मुक़फ़्फ़ल है शिफा-ख़ाना अभी
बाप का साया तो बचपन ही में उट्ठा था मगर
शैख़ मिलते हैं ब-अंदाज़-ए-यतीमाना अभी
उस के आगे क्या हक़ीक़त आस्तीन ओ जैब की
नोच डाले दामन-ए-महशर भी दीवाना अभी
मेल तो शैख़ ओ बरहमन में रहे बाहम मगर
गड़ब़ड़ाए है फ़ज़ा-ए-फ़िर्का-वाराना अभी
हम ने माना ये कि ज़ाहिद है बुज़ुर्ग-ओ-मोहतरम
बात करता है मगर कम्बख़्त बचकाना अभी
कर चुके हैं नक़्द ख़िदमत जाबिरान-ए-क़ौम की
दे चुके हैं बेच के घर-बार जुर्माना अभी
दिरहम-ओ-दीनार के हमराह अक्सर बेश-तर
जान का भी दे चुके हैं लोग नज़राना अभी
सियासी मियार की रीपोर्ट
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