कविता : जानवर और इंसान.
-एस के पाण्डेय-

जानवर से बोला इंसान।
करता है तूँ किसका ध्यान।।
खुद की नहीं तुझको पहचान।
पशु है तूँ इतना तो जान।।
जानवर बोला सुन इंसान।
सर में नित करके स्नान।।
करता हूँ मैं प्रभु का ध्यान।
तुम क्या जानों हुए महान।।
बश होके तुम झूठी शान।
भूले क्या होते भगवान।।
पशुओं को है इतना ज्ञान।
पशु थे पशु हैं नहीं महान।।
पशु से कमतर अब इंसान।
सुना है झूठा नहीं बयान।।
क्या थे क्या हो तुम लों जान।
माफ़ी तुम सम नहि को आन।।
पशु होकर हमको अभिमान।
अभी वही मेरी पहचान।।
जाओ जानवर क्या इंसान।
जीवन देते हैं भगवान।।
सियासी मियार की रीपोर्ट
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