Friday , September 20 2024

कविता: समझो माहवारी का दर्द..

कविता: समझो माहवारी का दर्द..

-भावना गढ़िया-

उस दर्द में भी किशोरियां,
कामकाज में लगी रहती हैं,
चाहे लड़की हो या औरत,
घर का सारा काम करती है,
अपने शरीर को छोड़कर,
घर का ध्यान रखती है,
उस वक्त कमजोरी में भी,
तपती धूप में मेहनत करती है,
थोड़ा सा तो दर्द समझा करो उसका,
इस माहवारी में साथ देने के लिए,
कोशिश तो किया करो उसका। ।

सियासी मियार की रीपोर्ट