पुस्तक समीक्षा : भावनाओं के मोती के रूप में सुंदर अभिव्यक्ति..

सुरेश भारद्वाज निराश के कविता संग्रह ‘भावनाओं के मोती’ में विविध भावों की सुंदर अभिव्यक्ति हुई है। यह आत्मा की गहराइयों से निकली कविताओं का संग्रह है। इसमें भावनाओं, अनुभवों तथा सपनों को शब्दों के रूप में पिरोया गया है। यह संग्रह जीवन के विविध पहलुओं को दर्शाता है, जहां हर कविता एक नई कहानी और एक नई भावना को बयां करती है। इसमें कविताओं के विविध रंग हैं। खुशी, हास्य, व्यंग्य, दुख, प्रेम, आक्रोश, आशा और देशभक्ति जैसी भावनाओं को व्यक्त किया गया है। आसपास के लोगों, प्रकृति और जीवन के अनुभवों से प्रेरणा लेकर ये कविताएं लिखी गई हैं। चेहरे पर मुस्कान नहीं नामक कविता का भाव देखिए, ‘आज भविष्य देश का/सडक़ों पर बिखरा पड़ा है/ज्वलंत प्रश्न सामने है/समाज फिर भी सोया पड़ा है।’ हालात नामक कविता कहती है कि भूखा पेट रोटी मांग रहा है, लेकिन कोई पीड़ को नहीं समझ रहा है। जज्बात लुट रहे हैं, जीने की क्या बात करें।
शहादत नामक कविता का भाव देखिए, ‘सर्व शांत देह तुम्हारी पत्नी ने थी जब निहारी/नन्ही सी प्यारी बिटिया ‘पापा उठो’ थी पुकारी/बांधूंगी राखी किसको बहन को रोना आया था/भाई ने भी जब फोटो हार पहनाकर थी संवारी।’ हास्य व्यंग्य कविता ‘कवि मृत्यु शैया पर’ का भाव भी देखने योग्य है, ‘जब कभी कोई कवि मरा है/उसने यमराज को छकाया है/घंटों अपने पास बिठाया है/एक कविता की बात नहीं/पूरा काव्य ग्रंथ उसे सुनाया है।’ ठोकर नामक कविता कहती है कि कोई किसी का साथ नहीं देता, अपनी किस्मत मैंने खुद बनाई है। साथ ही यह भी, ‘खोने से पहले पाया भी था/चाहत कई बार दोहरायी है मैंने।’ लोकतंत्र नामक कविता का सार देखिए, ‘लंबे भाषण झूठे आश्वासन दे जनता की झोली में/दुख उनके मत ज्ञात करो यह लोकतंत्र है/हर दफ्तर हर टेबल से जेबी रिश्ता कायम कर/फिर दिन को चाहे रात करो यह लोकतंत्र है।’ व्यंग्य रचना समाजवाद का सार देखिए, ‘तुमने समाजवाद का नाम ही सुना है/मैं इसे अच्छी तरह से जानता हूं/तुमने इसे देखा तक नहीं/मैं इसे पहचानता हूं/यह समाजवाद ही तो है/जिस चौराहे पर पुलिस कांस्टेबल/ड्यूटी दिया करता है/मैं वहीं पर भीख मांगता हूं/कुछ आया समझ में जनाब/शायद यही है समाजवाद।’ ‘बहनों को इंसाफ चाहिए’ का सार देखिए, ‘बहन बेटियों की इज्जत तार तार/करने वाले दरिंदो/तुम खुद शर्म से क्यों नहीं मर जाते/ऐसे घिनौने कृत्यों को अंजाम देकर/क्यों उस कानूनी रस्सी का/इंतजार करते हो/जो तुम्हारे गले में पड़े या न पड़े।’ लॉकडाउन के दिन नामक कविता देखिए, ‘घर में ही रहिए क्या बात है/जय लॉकडाउन कहिए क्या बात है/बाहर मत जाइए क्या बात है/दिल न जलाइए क्या बात है/आंख मटकाइए क्या बात है/पत्नी को पटाइए क्या बात है/बच्चों को मत डराइए क्या बात है/खुद पे अंकुश लगाइए क्या बात है।’ यह कविता संग्रह पाठकों को जरूर पसंद आएगा, ऐसा विश्वास है।
सियासी मियार की रीपोर्ट
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