यूएन की रिपोर्ट: भारत में घट रही प्रजनन दर, भविष्य के लिए चुनौती…
-बढ़ती बुजुर्ग आबादी और घटती युवा शक्ति के लिए ठोस नीति जरुरी

नई दिल्ली, 13 जून । भारत की जनसंख्या में बड़ा और निर्णायक बदलाव आया है। संयुक्त राष्ट्र की ताज़ा रिपोर्ट 2025 के मुताबिक देश की कुल प्रजनन दर अब ‘प्रत्यास्थापन स्तर’ यानी रिप्लेसमेंट लेवल से नीचे चली गई है। इसका मतलब है कि अब जितने लोगों की देश में मौत हो रही हैं, उतने नए जन्म नहीं ले हो रहे। 2025 के अंत तक भारत की जनसंख्या के 1.46 अरब तक पहुंचने का अनुमान है, लेकिन चिंता की बात यह है कि कुल प्रजनन दर घटकर 1.9 रह गई है, जबकि स्थिर जनसंख्या बनाए रखने के लिए यह दर कम से कम 2.1 होनी चाहिए।
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) ने इसे एक ‘वास्तविक प्रजनन संकट’ करार दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में लाखों लोग ऐसे हैं जो अपने इच्छित परिवार आकार तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। कुछ लोगों को संतान प्राप्ति नहीं हुई है, तो कुछ सामाजिक, आर्थिक या स्वास्थ्य कारणों से बच्चे पैदा करने का फैसला टाल रहे हैं। गर्भनिरोधक साधनों की सीमित पहुंच, करियर व शिक्षा की प्राथमिकता, बदलती जीवनशैली और सामाजिक धारणाएं इस बदलाव के मुख्य कारण माने जा रहे हैं।
भारत में हालांकि अभी युवा जनसंख्या का बड़ा हिस्सा मौजूद है।
रिपोर्ट के मुताबिक देश की जनसंख्या में 0 से 14 साल के लोग 24फीसदी, 10 से 19 वर्ष के 17 फीसदी, 10 से 24 वर्ष के 26फीसदी और 15 से 64 वर्ष के लोग 68फीसदी हैं। इसका अर्थ है कि भारत फिलहाल एक बड़े ‘जनसांख्यिकीय लाभांश’ की स्थिति में है। यदि सरकार इस युवा शक्ति को सही दिशा दे सके, तो देश अगले कुछ दशकों में वैश्विक आर्थिक शक्ति बन सकता है।
यूएन रिपोर्ट यह बताती है कि भारत अब मध्यम आय वाले उन देशों की श्रेणी में आता है, जहां जनसंख्या दोगुनी होने में करीब 79 साल लगेंगे। यह एक अहम बदलाव है, क्योंकि पहले यह समय कहीं कम था। यूएनएफपीए की भारत में प्रतिनिधि के मुताबिक भारत ने बीते 50 सालों में प्रजनन दर कम करने के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। 1970 में जहां एक महिला औसतन 5 बच्चों को जन्म देती थी, अब यह संख्या करीब 2 हो चुकी है, जो शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में हुए सुधार का परिणाम है।
विशेषज्ञ यह भी चेतावनी दे रहे हैं कि यदि यह गिरावट इसी तरह जारी रही तो आने वाले सालों में भारत को तेजी से बढ़ती बुजुर्ग आबादी और घटती युवा शक्ति के लिए ठोस नीतियां बनानी होंगी। यह बदलाव भविष्य की सामाजिक संरचना और आर्थिक उत्पादकता दोनों पर गहरा प्रभाव डाल सकता है।
सियासी मियार की रीपोर्ट
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