Sunday , November 23 2025

गहरे पानी पैठ….

गहरे पानी पैठ….

-सुशील यादव-

फेस बुक के गहरे पानी में सर्फिग का शानदार समय चल रहा है।
कबाडियों को छोड़, हर किस्म के लोग जुड़ने लगे हैं, उनको अपने कबाड़ जोड़ने के धंधे से फुरसत नहीं।

जब भी कोई गंभीर पोस्ट नथ्थू की नजर से गुजरती, वो दौड़ा-दौड़ा तुरंत मेरी राय-मशवरा के फील्ड में आ जाता है। मेरी सहमति दृअसहमति का उस पर कदाचित अविलंब प्रभाव भी पड़ता है। वह फेसबुक में वैसी प्रतिक्रिया चिपका देता है। एक दिन वह सप्ताह भर का निचोड़ लेके आ गया। एक लोकल लेखक के प्रति खासा आक्रोश लिए था। मैंने शांत कराते हुए पूछा क्या बात है नत्थू, वो मुझसे कहने लगा गुरुजी ये जो लेखक है न, अपने आप को टॉप (तोप) समझता है, कहता है फेसबुक पर विचार रखना चाहिए, कविता गोष्टी में पढने की चीज है।

उनको शिकायत रही कि सुबह-सुबह कवि लोग उनके फेसबुक में कविता ठेले रहते हैं।नत्थू ने कहा, उतुकतावश हमने उनके साईट को खंगाला, बमुश्किल एक-दो रचनाएं. वो भी उनके खास परिचित व् स्तरीय लोगों की पाई गई। वे नाहक चिड़चिडाये रहते हैं।या फेसबुक में छाये रहने, टिप्पणी पाने की जुगाड़ में दीखते हैं।

हम कहते हैं, अगर पसंद की बात पोस्ट में न दिखे तो जरूरी नहीं डिटेल में पढ़ा जावे? सुपर्फिसियाली पढ के भी टाला जा सकता है। वे लाइक वाला कमेन्ट दे मारते हैं, अगला दूने उत्साह से रचना परोस देता है। भाई तुम ठहरे कामकाजी आदमी, अपुन माफिक निठ्ठल्ले नही जो अखबार माफिक पेज दर पेज, विज्ञापन दर विज्ञापन नाप दो।

कवि-लेखक को उत्साहित करने का परिणाम जानना चाहिए कि नहीं? कहीं-कहीं, उत्साहित करने का जबरदस्त खामियाजा भुगतना पड़ता है। ये बात, एक बड़े लेखक को खुद इशारों में, समझना चाहिए की नहीं? नत्थू हामी भरवाने के लिए मेरी तरफ देखता है। मैं मुस्कुरा देता हूं।

गुरुजी एक बार आपके साथ भी तो ये हुआ था? आपकी व्यंग रचना, जिसे देश के एक प्रतिष्ठित मासिक ने, व्यंग के नाम से छापा था, पर प्रबुद्ध ने टिप्पणी दी थी हास्य रचना है? वैसे वे भी व्यंग लिखते हैं, मर्म व्यंग और हास्य का तो अच्छे से जानते होंगे? मेरे आगे सब बौने की मानसिकता से उठो भाई, बड़े बन जाओगे……?

हां तो! गुरुजी फेसबुक में पुलिसिया थानेदारी के शौक के बारे में आप क्या कहते हैं? कौन सी चीज किस रास्ते से गुज, रे ये जरुरी है की चंद प्रबुद्ध लोग तय करें। लेखकों में ये गर्वोक्ति काफी हाउस से प्रायः निकली होती हैं, टपोरी होटल में हाफ चाय पी के लिखने वाला कभी इतना क्रुद्ध होते नहीं पाया जाता। आप इस बात से इत्तिफाक रखते हैं या नहीं? नत्थू की हामी भरवाने वाली नजर फिर उठ जाती है।

अपनी बात जारी रखते हुए फिर कहता है, फेस बुक सोशल मीडिया, भाव प्रकट करने के लिए एक अच्छा मंच है। आज के विलुप्त होते जा रहे साहित्यिक गतिविधियों को, साहित्यकारों को अगर प्रोतासन पाने का छोटा-मोटा अवसर दिखता है, तो उस पर अपनी बपौती काबिज करना भलमनसाहत नहीं है। वे गाली गलौज लिख नहीं रहे, गलत अगर कुछ पोस्ट कर रहे हो तो आप प्रबुद्ध बन के सुधार सकते हो, तो सुधारों, वरना हिन्दुस्तान में सबको गोली मारो कहने की आजादी स्वमेव मिली है।
नत्थू ने भर निगाह से मेरी तरफ देखा, एक बारगी मुझे लगा कहीं ये सब मुझे तो नहीं सूना रहा, मगर यकबयक याद आ गया, अरे मै कहां प्रबुद्ध की श्रेणी में गिना जाने लगा हूं?

सियासी मियार की रीपोर्ट