थाईलैंड और कंबोडिया का संघर्ष क्या पूर्ण युद्ध में बदलेगा? दोनों प्रधानमंत्रियों के फैसलों पर सवाल, भारत के पड़ोस में बढ़ा डर

बैंकॉक, 24 जुलाई। दो एशियाई देशों थाईलैंड और कंबोडिया ने दुनियाभर का ध्यान खींचा है। इसकी वजह दोनों की सेनाओं में गुरुवार सुबह शुरू हुई लड़ाई है। दोनों देशों ने विवादित सीमा क्षेत्र में एक-दूसरे पर गोलीबारी की। इसके बाद तनाव बढ़ा और थाईलैंड की एयरफोर्स ने कंबोडिया में बमबारी कर दी। इससे दोनों देश जंग के मुहाने पर आ गए हैं। अब है कि ये लड़ाई क्या रुख ले सकती है। खासतौर से दोनों देशों की सरकारों की ओर से संघर्ष को बढ़ाने का डर है।
थाईलैंड ने अब तक 12 लोगों की मौत की पुष्टि की है। संघर्ष के चलते सैकड़ों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर शरण लेनी पड़ी है। बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि कंबोडिया और थाईलैंड के बीच भीषण गोलीबारी हुई है। हालांकि ये जल्दी ही रुक गई लेकिन खतरा टला नहीं है। इसकी एक बड़ी वजह दोनों देशों का नेतृत्व है। फिलहाल ऐसा नहीं लगता कि यह संघर्ष पूर्ण युद्ध में बदलेगा लेकिन दोनों देशों के नेतृत्व में टकराव टालने और मुश्किल हालात से पार पाने की क्षमता का अभाव दिखता है।
कंबोडियाई सरकार बढ़ाएगी संघर्ष?
बीबीसी के मुताबिक, कंबोडिया की अर्थव्यवस्था अच्छी हालत में नहीं है। वहां एक ऐसा प्रधानमंत्री है, जो एक पूर्व तानाशाह का बेटा है और उसकी अपनी कोई खास पहचान नहीं है। माना जाता है कि उनके पिता हुन सेन पर्दे के पीछे से सरकार के फैसले ले रहे हैं। वह एक ऐसे नेता हैं, जो अपनी राष्ट्रवादी साख चमकाने के लिए इस संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए तैयार हो सकते हैं। इससे इस लड़ाई एक लंबे और पूर्ण युद्ध में तब्दील होने का खतरा पैदा होता सकता है।
थाईलैंड की बात की जाए तो वहां फिलहाल राजनीतिक स्थिरता की कमी है। थाईलैंड में गठबंधन सरकार है और यहां भी युवा पीएम पैतोंगटार्न के पीछे उनके पिता थाकसिन शिनावात्रा को ही असली शासक माना जाता हैं। एक समय थाकसिन के हुन सेन परिवार के साथ घनिष्ठ व्यक्तिगत संबंध थे लेकिन हुन सेन के एक निजी बातचीत को लीक करने से वह नाराज हैं। इससे उनकी बेटी प्रधानमंत्री पैतोंगटार्न के खिलाफ देशभर में गुस्सा पैदा हुआ। यानी उनका कंबोडियाई नेतृत्व से एक निजी तनाव है।
आसियान देशों की भूमिका
एक्सपर्ट मान रहे हैं कि थाईलैंड और कंबोडिया में युद्ध आगे नहीं बढ़ेगा लेकिन दोनों तरफ के नेतृत्व पर अविश्वास भी जता रहे हैं। ऐसे में आसियान देशों की भूमिका काफी अहम हो जाती है। आसियान के अन्य सदस्य देशों पर ये बहुत ज्यादा निर्भर करेगा कि वह इस विवाद पर क्या राय देते हैं और तनाव कम करने के लिए थाईलैंड और कंबोडिया को कैसे राजी करते हैं।
सियासी मियार की रीपोर्ट
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