सिनेमा के परदे पर शिक्षक: ‘जागृति’ से ‘सुपर 30’ तक किरदारों को मिला दर्शकों का सम्मान…

मुंबई, 06 सितंबर । शिक्षक दिवस के अवसर पर यह याद करना प्रासंगिक है कि भारतीय सिनेमा ने हमेशा शिक्षक के किरदार को अत्यंत सम्मान और प्यार दिया है। रुपहले पर्दे पर गुरु-शिष्य के रिश्ते को विभिन्न रूपों में दर्शाया गया है, जिसे दर्शकों ने हमेशा सराहा है। एक शिक्षक के बिना राष्ट्र के विकास की कल्पना नहीं की जा सकती, और यही भावना बॉलीवुड की कई फिल्मों का मूल रही है।
शुरुआती दौर की यादगार फिल्में
शिक्षक और छात्र के रिश्ते को खूबसूरती से पर्दे पर उतारने वाली पहली फिल्मों में 1954 में आई ‘जागृति’ का नाम प्रमुख है। इस फिल्म में अभिनेता अभि भट्टाचार्य ने एक आदर्शवादी शिक्षक की भूमिका निभाई थी, जो छात्रों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ देश की संस्कृति और मूल्यों से भी परिचित कराते हैं। कवि प्रदीप द्वारा रचित और हेमंत कुमार द्वारा संगीतबद्ध किया गया गीत ‘आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं झांकी हिंदुस्तान की’ आज भी देशभक्ति और शिक्षा का प्रतीक माना जाता है। इसके एक साल बाद, 1955 में राजकपूर की फिल्म ‘श्री 420’ में नरगिस ने एक ऐसी शिक्षिका की भूमिका निभाई, जो गरीब बच्चों को सच्चाई और ईमानदारी का पाठ पढ़ाती हैं। उन पर फिल्माया गया गीत ‘इचक दाना बिचक दाना’ आज भी लोगों की जुबान पर है।
सत्तर और अस्सी का दशक: किरदारों में विविधता
वर्ष 1972 में आई फिल्म ‘परिचय’ में जितेंद्र ने एक ऐसे शिक्षक का किरदार निभाया, जो अमीर घर के बिगड़ैल बच्चों को अपनी सूझबूझ और धैर्य से सही रास्ते पर ले आते हैं। यह फिल्म दिखाती है कि एक शिक्षक का प्रभाव किसी भी छात्र को बदल सकता है। वहीं, 1974 की ‘इम्तिहान’ में विनोद खन्ना ने एक ऐसे प्रोफेसर की भूमिका निभाई जो कॉलेज की राजनीति और छात्रों की गुमराहियों के बीच शिक्षा के महत्व को स्थापित करने के लिए संघर्ष करते हैं। इसी दौर में महमूद ने फिल्म ‘पड़ोसन’ (1968) में संगीत शिक्षक के हास्य किरदार से दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया।
महानायक अमिताभ बच्चन और शिक्षक के अविस्मरणीय किरदार
सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने अपने लंबे करियर में कई बार शिक्षक की भूमिका को पर्दे पर जीवंत किया है। 2005 में संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘ब्लैक’ में उन्होंने एक ऐसी मूक-बधिर और नेत्रहीन लड़की के शिक्षक का चुनौतीपूर्ण किरदार निभाया, जिसे आज भी उनके सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्रियों में गिना जाता है। इसके अलावा, ‘चुपके चुपके’ (1975), ‘कस्मे वादे’ (1978), ‘दो और दो पांच’ (1980) और ‘आरक्षण’ (2011) जैसी फिल्मों में उन्होंने विभिन्न प्रकार के शिक्षकों की भूमिकाएं निभाईं, जिन्हें दर्शकों ने बेहद पसंद किया। ‘चुपके चुपके’ में धर्मेंद्र के साथ उनकी जोड़ी ने शिक्षक के किरदार को एक हास्य और यादगार रूप दिया।
शाहरुख से लेकर ऋतिक तक: नए दौर के प्रेरक शिक्षक
बॉलीवुड के ‘किंग’ शाहरुख खान ने भी शिक्षक के किरदारों को एक नई पहचान दी। ‘मोहब्बतें’ (2000) में संगीत शिक्षक राज आर्यन के रूप में उन्होंने प्यार और अनुशासन के बीच एक नया संवाद स्थापित किया। वहीं, 2007 की ‘चक दे! इंडिया’ में महिला हॉकी टीम के कोच कबीर खान की भूमिका में उन्होंने एक सख्त लेकिन प्रेरक गुरु का किरदार निभाया, जिसने पूरे देश को प्रेरित किया।
नए दौर की फिल्मों में आमिर खान ने ‘तारे जमीन पर’ (2007) में एक ऐसे कला शिक्षक की भूमिका निभाई, जो ‘डिस्लेक्सिया’ से पीड़ित बच्चे की प्रतिभा को पहचानकर उसकी दुनिया बदल देते हैं। यह फिल्म शिक्षा प्रणाली पर एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करती है। हाल ही में, 2019 में आई ‘सुपर 30’ में ऋतिक रोशन ने गणितज्ञ आनंद कुमार की बायोपिक में एक ऐसे शिक्षक का किरदार निभाया जो गरीब और वंचित छात्रों को आईआईटी तक पहुंचाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा देते हैं।
अभिनेत्रियों ने भी छोड़ी अपनी छाप
सिर्फ नायक ही नहीं, बल्कि कई अभिनेत्रियों ने भी शिक्षक के सशक्त किरदारों को पर्दे पर सफलता से निभाया है। हेमा मालिनी (दिल्लगी), सिमी ग्रेवाल (मेरा नाम जोकर), शर्मिला टैगोर (तपस्या), और गायत्री जोशी (स्वदेस) जैसी अभिनेत्रियों ने अपने अभिनय से शिक्षक की भूमिका को यादगार बनाया है। इन सभी किरदारों ने यह साबित किया है कि एक अच्छा शिक्षक छात्रों के जीवन को सही दिशा देकर समाज और राष्ट्र के निर्माण में अमूल्य योगदान देता है।
सियासी मियार की रीपोर्ट
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