आपका व्यक्तित्व ही आपकी पहचान..

भीड़ में हर व्यक्ति अक्सर एक जैसा ही नजर आता है। कभी किसी सभागार में पहुँचकर श्रोताओं पर नज़र डालिए—लगभग सबकी छवि एक-दूसरे से मेल खाती हुई प्रतीत होगी। लेकिन जैसे ही मंच पर वक्ता बोलना शुरू करता है, वह भीड़ से अलग दिखाई देता है। कारण स्पष्ट है—उसके विचारों की गहराई, जीवन को समझने का नजरिया, अनुभवों की व्यापकता और अपनी बात रखने की शैली। वक्ता की एकाग्रता और दृढ़ता श्रोताओं को विश्वास दिलाती है कि उसके विचार सार्थक और सशक्त हैं।
जब हम वक्ता को सुनते हैं, तो उसका पूरा व्यक्तित्व अनजाने ही हमारे मन पर छा जाता है। यही प्रभाव उसे भीड़ से अलग पहचान दिलाता है। संभव है कि श्रोताओं में किसी का व्यक्तित्व वक्ता से अधिक प्रभावशाली हो, लेकिन जब तक वह सामने नहीं आता, यह तथ्य छिपा ही रहता है। भीड़ और विशिष्ट व्यक्तित्व का अंतर इसी तरह स्पष्ट होता है।
व्यक्तित्व की विशेषताएँ
व्यक्तित्व ऐसा हो कि जब चाहें तो सामने दिखे, और यदि न भी दिखे तो उसका आभास सदैव बना रहे।
जैसे कछुए और खरगोश की कहानी—जहां खरगोश अपनी तेजी पर गर्व करता रहा, वहीं लगातार चलने की वजह से कछुआ अंततः सफलता का प्रतीक बन गया। असली महत्व स्थिरता, निरंतरता और संयम का है, न कि क्षणिक तेजी का।
आदर्श स्वरूप
सुलझा हुआ और तय लक्ष्यों की ओर बढ़ने वाला।
विवेकी, जो परिस्थितियों को नियंत्रित कर सके।
अनुशासित और परिश्रम व ईमानदारी पर आधारित।
जीवन की सच्चाइयों को समझने वाला और बंधनों से मुक्त।
आत्मसम्मान और मानवता से परिपूर्ण।
अवांछनीय स्वरूप
दुविधा में जीने वाला अथवा कल्पनाओं में खोया रहने वाला।
स्वार्थी, जिद्दी और नासमझ।
समाज या देश के प्रति प्रतिकूल सोच रखने वाला।
हर परिस्थिति में स्वयं को ही सही साबित करने की प्रवृत्ति से ग्रस्त।
निष्कर्ष
व्यक्तित्व ही इंसान की असली पहचान है। जो व्यक्ति जीवन में अनुशासन, मेहनत, ईमानदारी, विवेक और आत्मसम्मान को अपनाता है, वही न केवल खुद को भीड़ से अलग करता है, बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए प्रेरणादायी आदर्श भी बनता है।
सियासी मियार की रीपोर्ट
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