धनतेरस (18 अक्टूबर 2025) पर विशेष: धन और स्वास्थ्य दोनों को समर्पित संकल्प है धनतेरस
-दिलीप कुमार पाठक-

आमतौर पर धनतेरस को दीपावली के प्रवेश पर्व के रूप में मनाया जाता है। कई महीनों से निरंतर साफ-सफ़ाई एवं तमाम तरह की तैयारियों के बाद धनतेरस खुशियो की सौगात लेकर आता है। सही मायने में धनतेरस से दीपावली की खुशबू आने लगती है। धनतेरस केवल हिन्दू धर्म तक सीमित नहीं है, बल्कि भारतीय बाजार को भी चलाता है, धनतेरस ही तो पर्व है जब बाज़ार गुलज़ार हो जाते हैं, जो लोग कभी ख़रीदारी नहीं करते वे भी धनतेरस के दिन संरक्षित पूंजी खर्च कर डालते हैं, यही कारण है कि इस त्यौहार का खासा महत्व है। वैदिक दृष्टि से देखा जाए तो धनतेरस भगवान धनवंतरि एवं मृत्यु के देवता यमराज को समर्पित है। इस दिन वैदिक देवता यमराज का पूजन किया जाता है। पूरे वर्ष में एक मात्र यही वह दिन है, जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है, अन्यथा यमराज की पूजा कोई नहीं करता, सभी देवताओं के प्रति कृतज्ञता का भाव व्यक्त करने के लिए त्योहारों की स्थापना की गई है अगर ये कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी, हालांकि भारतीय त्योहार भारतीय समाज की जीवन शैली को सुधारने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैंl
धनतेरस हिन्दू धर्म में मनाया जाने वाला प्रसिद्ध त्योहार है। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ था, इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। भारत सरकार ने इसे आधुनिक स्वरुप देने के लिए और लोगों को जोड़ने के लिए धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया है। सरकार का यह निर्णय सराहनीय है, हमारे धार्मिक त्योहारों, एवं पर्वों को आधुनिक बनाते हुए नव पीढ़ी को जोड़ने से समाज में सकारात्मकता आ सकती है। आज ही के दिन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता धन्वन्तरि वैद्य समुद्र से अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे, इसलिए धनतेरस को धन्वन्तरि जयन्ती भी कहते हैं। इसीलिए वैद्य-हकीम और ब्राह्मण समाज आज धन्वन्तरि भगवान का पूजन कर धन्वन्तरि जयन्ती मनाता है। बहुत कम लोग जानते हैं कि धनतेरस आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने घरों में नए बर्तन ख़रीदते हैं और उनमें पकवान रखकर भगवान धन्वंतरि को अर्पित करते हैं। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि असली धन तो स्वास्थ्य है, इसलिए ही तो कहते हैं पहला सुख निरोगी काया….
धन्वंतरि ईसा से लगभग दस हज़ार वर्ष पूर्व हुए थे। वह काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे। उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्त्वपूर्ण गवेषणाएं की थीं। उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें परिमार्जित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए इस तरह सुश्रुत संहिता किसी एक का नहीं, बल्कि धन्वंतरि, दिवोदास और सुश्रुत तीनों के वैज्ञानिक जीवन का मूर्त रूप है। धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। उनके जीवन के साथ अमृत का कलश जुड़ा है। वह भी सोने का कलश। अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था। उन्होंने कहा कि जरा मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था। सुश्रुत उनके रासायनिक प्रयोग के उल्लेख हैं। धन्वंतरि के संप्रदाय में सौ प्रकार की मृत्यु है। उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही निदान और चिकित्सा हैं। आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरि ने बताई है।
कई बार हम त्योहारों को मानते हुए अपनी खुशियों के साथ दूसरों के दुख का कारण बन जाते हैं, अतः हमे इस बात की सावधानी रखनी चाहिए, असली त्योहार का अर्थ यही है कि हम किसी को प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष हानि न पहुंचाएं ल असावधानी और लापरवाही से मनुष्य बहुत कुछ खो बैठता है। विजयादशमी और दीपावली के आगमन पर इस त्योहार का आनंद, ख़ुशी और उत्साह बनाये रखने के लिए सावधानीपूर्वक रहें। पटाखों के साथ खिलवाड़ न करें पटाखे चलाना खुशियो के प्रतीक नहीं बल्कि अशांति फैलाते हैं, कई बार इससे बुजुर्गों, बेजुबान जानवरों को खासी तकलीफ़ का सामना करना पड़ता है, इसलिए हम सब की जिम्मेदारी बन जाती है कि हम इस शांति को बनाए रखेंl मिठाइयों और पकवानों की शुद्धता, पवित्रता का ध्यान रखें। भारतीय संस्कृति के अनुसार आदर्शों व सादगी से मनायें। पाश्चात्य जगत् का अंधानुकरण ना करें। भारत सरकार हमेशा स्वदेशी का नारा लगाती है कोशिश करें कि आपकी खरीदारी के बाद किसी जरूरतमंद व्यक्ति की दीवाली भी खुशी एवं प्रसन्नता से मने। धनतेरस को संकल्प लें कि दीवाली बेशुमार खुशियों की सौगात लेकर आए।
सियासी मियार की रिपोर्ट
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