केदारनाथ को रचना मेरे लिए अपने-आप में एक भावनात्मक तीर्थयात्रा थी : कनिका ढिल्लन

मुंबई, 10 दिसंबर। बॉलीवुड की जानीमानी लेखिका कनिका ढिल्लन का कहना है कि फिल्म केदारनाथ को रचना उनके लिए अपने-आप में एक भावनात्मक तीर्थयात्रा थी।
फिल्म केदारनाथ ने अपनी रिलीज़ के सात साल पूरे कर लिये हैं।एक ऐसी फिल्म जिसने अपनी मार्मिक प्रेमकहानी को 2013 उत्तराखंड की विनाशकारी बाढ़ की वास्तविक त्रासदी के साथ संवेदनशीलता से जोड़कर प्रस्तुत किया। दिवंगत सुशांत सिंह राजपूत और सारा अली खान की यह फिल्म न सिर्फ तकनीकी दृष्टि से महत्वाकांक्षी थी, बल्कि भावनात्मक रूप से भी दर्शकों को बेहद छूने वाली रही। यही वह फिल्म थी जिसने सारा अली खान को बॉलीवुड में एक यादगार लॉन्च दिया और उनके नाम सर्वश्रेष्ठ डेब्यू (महिला) का फिल्मफेयर अवॉर्ड दर्ज हुआ।
अभिषेक कपूर के निर्देशन में बनी केदारनाथ को समीक्षकों और दर्शकों,दोनों का भरपूर प्यार मिला। लेकिन फिल्म की सबसे मजबूत नींव थी इसका गहन और संवेदनशील लेखन, जिसे रचा था कनिका ढिल्लन ने। कनिका ढिल्लन की कहानी ने इस आपदा को सिर्फ एक विशाल प्राकृतिक घटना की तरह नहीं दिखाया, बल्कि इसे मानवीय संवेदना और प्रेम के साथ जोड़कर एक भावपूर्ण कथा में बदल दिया।
फिल्म की आत्मा मांडाकिनी ‘मुख्कू’ (एक पुजारी की बेटी) और मंसूर खान (एक मुस्लिम पिट्ठू) की प्रेमकहानी में बसती है।एक ऐसा अंतरधार्मिक रिश्ता जो समाज की जड़बद्ध मान्यताओं को चुनौती देता है। ढिल्लन ने इस प्रेम को उस विनाशकारी बाढ़ की पृष्ठभूमि में रखा, जहाँ प्रकृति की शक्ति इंसानी विभाजनों से कहीं बड़ी साबित होती है। उनका लेखन इस बात का उदाहरण है कि किस तरह एक प्राकृतिक आपदा के बीच भी इंसानी भावनाएँ, विश्वास और त्याग की कथा में चमक सकती है।
कनिका ढिल्लन ने फिल्म केदारनाथ की
7वीं वर्षगांठ के मौके पर अपनी भावनाएँ साझा करते हुए कहा, “केदारनाथ को रचना मेरे लिए अपने-आप में एक भावनात्मक तीर्थयात्रा थी। यह उस निर्मल प्रेम को पकड़ने की कोशिश थी जो एक भयावह त्रासदी के बीच भी चमकता है। सात साल बाद भी मंसूर और मुख्कू की कहानी को इतना प्यार मिलता देखना बेहद भावुक कर देने वाला है। यह याद दिलाता है कि सशक्त कहानियाँ हमेशा अपना रास्ता बना ही लेती हैं।”
सियासी मियार की रीपोर्ट
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