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पहाड़ों की गोद में खिला नील कमल….

पहाड़ों की गोद में खिला नील कमल….

सघन वनों से घिरे पहाडों के मध्य बनी रेणुका  झील कुदरत का नायाब तोहफा है। पौराणिक आख्यानों में इसे भगवान परशुराम की कर्मस्थली कहा जाता है और उनकी मां रेणुका के नाम पर इसका नामकरण हुआ है। झील का सम्मोहन पर्यटकों को आकर्षित करता है। नारी के आकार की इस झील के किनारे पांडवों के आने का भी उल्लेख मिलता है। आपको ले जा रहे हैं रेणुका झील की सैर पर…

जब पहाड़ों की यात्रा की योजना बनती है तो मन प्रफुल्लित हो जाता है। ऐसे में पहाड़ों के आंचल में बनी किसी सुन्दर झील का जिक्र आता है तो मन और भी उत्साहित हो उठता है। पहाड़ों पर स्थित मनोरम झीलों में से एक रेणुका झील का नाम बहुत सुना था। इसे देखने, इसकी अलौकिक प्राकृतिक सुषमा का रसपान करने की कई सालों से इच्छा थी। मैं और मेरे साथी ने मोटरसाइकिल पर रेणुका झील जाने की तैयारी की। हमने रात्रि ठहराव की योजना अम्बाला स्थित भारत-स्काउट्स एवं गाइड्स प्रशिक्षण केन्द्र में बनाई।

अगले दिन हम तैयार होकर अम्बाला से सुबह छह बजे नारायणगढ़, कालाअम्ब होते हुए नाहन की ओर चले। अम्बाला कैन्ट से कालाअम्ब करीब 58 किलोमीटर है। कालाअम्ब से पहाड़ों की चढ़ाई आरम्भ होती है। कालाअम्ब से नाहन की दूरी 17 किलोमीटर है। समुद्र तल से 933 मीटर ऊंचाई पर सन् 1621 में बसाया गया शहर नाहन अम्बाला कैन्ट से करीब 76 किलोमीटर दूर स्थित है। शिवालिक की पहाड़ियों में बसे नाहन को हिमाचल का बंगलुरु कहा जाता है। क्योंकि नाहन पहाड़ की चोटी पर बसा है इसलिए रात को यहां से चंडीगढ़, पंचकूला, यमुनानगर की लाइटें सुन्दर नजारा प्रस्तुत करती हैं।

नाहन से रेणुका झील की दूरी 38 किलोमीटर और शिमला से 135 किलोमीटर। ऊंचे पहाड़ों पर अब मौसम अंगड़ाई लेने लगा। देखते ही देखते काले, नीले, सफेद बादल गर्जना करते हुए आए और चन्द मिनटों में सभी पहाड़ों को घेर लिया। बढ़िया सड़कें और प्रदूषण रहित सफर, सघन वनों से गुजरते हुए अच्छा लग रहा था। वर्षा आने के संकेत थे। हमारे पास वर्षा से बचने का प्रबन्ध था। स्थानीय लोगों से जानकारी जुटाते हुए हम आगे बढ़ते गए। आगे जमटा गांव आता है। यहां महंगे रिजॉर्ट भी हैं।

जमटा गांव से रेणुका की ओर रास्ता बांई ओर मुड़ता है। कुछ किलोमीटर दूर एक मोड़ पर बडोलिया बाबा जी की कुटिया के पास खूबसूरत झरना दिखाई दिया। रेणुका झील से कुछ किलोमीटर पहले हमें गिरि नदी के दर्शन हुए। सुन्दर नजारा था। ददाहू गांव होते हुए हम रेणुका झील पहुंचे। पहले हम परशुराम एवं रेणुका मन्दिर में गये। रेणुका मन्दिर व परशुराम मन्दिर के सामने एक छोटा ताल है जिसे प्राचीन काल का परशुराम हवन कुण्ड बताते हैं। रेणुका झील का सौन्दर्य देखकर मन कमल सा खिल गया। चारों ओर वनों से घिरे हरियाली से लदे ऊंचे पहाड़ों के मध्य बनी रेणुका झील कुदरत का नायाब तोहफा है।

झील का सौन्दर्य ऐसा है जिसे एक बार देखते ही बार-बार देखने, यहां आने या यहीं बस जाने का मन करता है। हरे-भरे पहाड़ों के बीच में हरे, नीले दिखते जल की इस झील को देखने से लगता है जैसे खूबसूरत अंगूठी में दिव्य नगीना जड़ दिया हो। करीब दो किलोमीटर से अधिक लम्बी इस झील के हम चारों ओर घूम गए। पर्यटक मछलियों को आटे की गोलियां खिला रहे थे तथा उनका फोटो ले रहे थे। समुद्र तल से 660 मीटर ऊंचाई पर स्थित झील के अन्दर कमल के फूल शोभा बढ़ा रहे थे तो किनारे पर बने मिनी चिड़ियाघर सभी को आकर्षित करता है।

कुछ देर बाद आसमान से बून्दें गिरने लगी। झील के किनारे पर्यटन विभाग का होटल एवं गैस्ट हाउस भी है। सौभाग्य से सायंकाल से पूर्व कुछ हद तक बादल छंट गये। सूर्य की लालिमा आसमान में बचे बादलों में घुलने लगी। वातावरण में शनै-शनै अन्धेरा छाने लगा। अब हम खाना खाने चले गये। रात के नौ बजे हम झील के किनारे टहलने लगे। सर्दी बहुत बढ़ गई थी। ठंडी हवाएं बदन को कंपकपाने वाली थीं, किन्तु जैसे ही चांदनी झील पर छिटक गई, सर्दी का एहसास गायब हो गया और झील की अमिट छवि मन-मस्तिष्क पर छाने लगी।

हिसार (हरियाणा) राखी गढ़ी के प्राचीन टीलों की खुदाई में निकले साक्ष्य और पुरातत्ववेत्ता बताते हैं कि राखी गढ़ी ही सहस्रार्जुन की राजधानी थी। उसका राज्य का विस्तार भारत के बड़े भू-भाग में था। यह स्थल परशुराम परिवार से जुड़ा है। वे घुमक्कड़ प्रवृत्ति के थे। परशुराम लम्बी यात्राएं करते थे। यही कारण है कि परशुराम से जुड़े देश में अनेक स्थल हैं। सुबह उठकर हमने कुछ घंटे झील पर बिताए, फिर चल दिए पौंटा साहिब की ओर। रेणुका से पौंटा साहिब के लिए दो रास्ते हैं। सीधा रास्ता 45 किलोमीटर पड़ता है तो रेणुका से गिरि नदी के डैम से होते हुए धौला कुआं, फिर पौंटा साहिब कई किलोमीटर ज्यादा पड़ता है।

झील से करीब 4 किलोमीटर दूर गिरि नदी पर एक डैम बना हुआ है। बरसात के कारण जगह-जगह भूस्खलन एवं छोटे-छोटे झरनों के कारण जगह-जगह कीचड़ था। रेणुका से चार किलोमीटर दूर गिरि नदी पर बान्ध बना है। हमने यहां से नदी को पार किया और दूसरे ऊंचे पहाड़ पर चढ़ाई शुरू हो गई। पहाड़ पर घूमते हुए चोटी पर चढ़े तो यहां से गजब के मन्जर दिखाई दे रहे थे। सैकड़ों फुट गहराई में सर्पिली सी टेढ़ी-मेढ़ी बहती नदी, पहाड़-दर-पहाड़ पर्वत शृंखलाएं, पहाड़ों से अठखेलियां करते मेघों के समूह मन को भा रहे थे। हम लम्बे सफर के उपरान्त धोला कुंआ होकर पौंटा साहिब पहुंचे। पौंटा साहिब गुरुद्वारे में माथा टेक उत्तराखण्ड के विकास नगर की ओर चल पड़े।

पौंटा साहिब यमुना नदी के किनारे है। विकास नगर यहां से करीब 21 किलोमीटर है। इस रोड पर जगह-जगह आम के बाग हैं। करीब 6 किलोमीटर चलने पर यमुना के किनारे डुनेट गांव आया। इस गांव के बाहर वाली सड़क पर जंगल में कई बार जंगली जानवर घूमते नजर आ सकते हैं। हम यमुना के किनारे बना बाबा भूमण शाह साधना केन्द्र आश्रम जा पहुंचे। यहां आने की पूर्व सूचना फोन पर देनी पड़ती है। हमने यहां कमरा बुक करवाया तथा दुर्लभ नजारों का आनन्द उठाया। अगले दिन हमने वापसी करनी थी। इसलिए भोजन करने के बाद जल्दी सो गए।

पांडव भी आये थे

रेणुका झील नारी के आकार की है, इसलिए इसे रेणुका माता माना जाता है। मान्यता है कि रेणुका माता कुछ वर्ष यहीं रही थी। परशुराम अपनी माता से मिलने प्रतिवर्ष यहां आते थे। पांचों पाण्डव भी इस झील पर आये थे। सिरमौर में माई रेणुका के गीत गाये जाते हैं।

रेणुका में हर वर्ष दीवाली के बाद दसवीं को मेला आयोजित होता है। जनश्रुति है कि रेणुका झील को सृष्टि के आरम्भ में स्वयं ब्रह्मा जी ने शिव के लिए बनाया था तथा आसपास के पहाड़ों का निर्माण करवाया ताकि पहाड़ों के झरनों से सरोवर भरा रहे। कहते हैं यही सरोवर रेणुका झील है जो परशुराम की माता रेणुका के नाम पर है।

जनश्रुति है कि परशुराम के पिता जमदग्िन ने यहां तपस्या की। जहां परशुराम मन्दिर, रेणुका मन्दिर तथा जामू ग्राम है, इस पर्वत को रामाद्रि पर्वत कहते हैं। मान्यता है कि राजा सहस्रार्जुन के अत्याचारों से तंग आकर परशुराम ने सहस्रार्जुन को परास्त कर उसका वध कर दिया।

सियासी मियार की रिपोर्ट