भारत 3 लाख करोड़ डॉलर की एम-कैप श्रेणी से बाहर हुआ..

मुंबई, 18 जून । भारतीय बाजार अब प्रतिष्ठित 3 लाख करोड़ डॉलर की बाजार पूंजीकरण श्रेणी से बाहर हो गया है। मौजूदा गिरावट से बाजार वैल्यू फिसलकर 2.99 लाख करोड़ डॉलर रह गई, जो करीब 13 महीने में सबसे कम है। जनवरी की 3.67 लाख करोड़ डॉलर की ऊंचाई से भारत का बाजार पूंजीकरण बढ़ते बॉन्ड प्रतिफल और वैश्विक निवेशकों द्वारा भारी बिकवाली के बीच 676 अरब डॉलर तक घट गया।
भारत 3 लाख करोड़ डॉलर बाजार पूंजीकरण की श्रेणी से बाहर होने वाला अकेला देश नहीं है। ब्रिटेन, कनाडा और फ्रांस का बाजार पूंजीकरण भी इस निशान से नीचे फिसला है। जर्मनी का बाजार पूंजीकरण 2 लाख करोड़ डॉलर से भी नीचे फिसलने के कगारपर है, क्योंकि वहां रूस और यूक्रेन के बीच लंबे खिंच रहे युद्ध से यूरोपीय शेयरों पर दबाव बढ़ रहा है और आपूर्ति को लेकर भी किल्लत पैदा हो रही है।
इस साल के शुरू में, भारत शीर्ष-पांच एम-कैप क्लब में शामिल हुआ था। मौजूदा समय में, सऊदी अरब के बाद भारत छठे पायदान पर है। सऊदी अरब को इससाल बढ़ती तेल कीमतों का लाभ मिला है। भारत ने सबसे पहले 31 मई 201 को 3 लाख करोड़ डॉलर के बाजार पूंजीकरण के आंकड़े को पार किया था और एक साल से ज्यादा समय तक यह अपनी उस हैसियत को कायम रखने में सफल रहा।
बढ़ती मुद्रास्फीति से अमेरिकी फेडरल रिजर्व और अन्य वैश्विक केंद्रीय बैंकों को मौद्रिक नीति सख्त बनाने के लिए तेजी से बाध्य होना पड़ा है। इससे मंदी की आशंका बढ़ी है, निवेशकों को जोखिमपूर्ण परिसंपत्तियों की ओर रुख करना पड़ रहा है। वैश्विक बाजार पूंजीकरण इस साल अब तक करीब 20 प्रतिशत घटकर 98.5 लाख करोड़ रुपये रह गया है। यह बाजार पूंजीकरण चढ़कर 122.5 लाख करोड़ डॉलर पर पहुंच गया था।
दुनिया के शीर्ष 15 बाजारों में, प्रतिशत के संदर्भ में बाजार पूंजीकरण में सबसे बड़ी गिरावट स्वीडन (34.6 प्रतिशत), जर्मनी (25.5 प्रतिशत), फ्रांस (24.6 प्रतिशत) और अमेरिका (23.4 प्रतिशत) में दर्ज की गई। इस बीच, सऊदी अरब ऐसा एकमात्र बाजार है जिसने इस साल अपनी बाजार वैल्यू में 15 प्रतिशत तक का इजाफा दर्ज किया है। बढ़ती मुद्रास्फीति के संदर्भ में नीतिगत सख्ती से इस साल परिसंपत्तियों के मूल्यों में बदलाव को बढ़ावा मिला है। विश्लेषकों का कहना है कि मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने की राह इस पर निर्भर करेगी कि वर्ष की दूसरी छमाही के दौरान वैश्विक बाजार क्या कदम उठाते हैं।
एडलवाइस सिक्योरिटीज के प्रबंध निदेशक एवं शोध प्रमुख (इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज) आदित्य नारायण का कहना है, ‘नीतिगत सख्ती से बाजार प्रभावित हुआ है, लेकिन यह किसी स्वतंत्र कारण के बजाय मुद्रास्फीति का गुब्बार है। मुद्रास्फीति की राह अर्थव्यवस्था की राह में बदलाव लाएगी और अगली कुछ तिमाहियों में इसका शेयर बाजार पर भी असर दिखेगा।’
ऊंचे स्तर से भारत के प्रमुख सूचकांक करीब 18 प्रतिशत गिर चुके हैं। इससे मूल्यांकन को सामान्य बनाने में कुछ हद तक मदद मिली है। विश्लेषकों का कहना है कि हालांकि वैश्विक पृष्ठभूमि को देखते हुए घरेलू बाजारों में उत्साह पैदा करने के लिए सिर्फ यही पर्याप्त नहीं होगा।
सियासी मियार की रिपोर्ट
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