अध्यात्म से बदलें जनभावना…

आध्यात्मिकता विकास की चर्चा आम तौर पर ऐसे व्यक्तिगत प्रयास के रूप में होती है जिसमें ऐंद्रिक सुखों को संयमित कर तरह-तरह की विसंगतियों व आपाधापी से अपने को बचाते हुए गहरा संतोष प्राप्त किया जा सके। निश्चय ही आध्यात्मिक विकास बहुत सार्थक प्रयास है जो किसी भी व्यक्ति को तरह-तरह की बुराइयों से बचाता है, संतोष और शान्ति की ओर ले जाता है।
सभी धर्मों को मान्य
इस तरह का आध्यात्मिक विकास तब तक अधूरा है जब तक इसे पूरे समाज की, पूरी दुनिया कि भलाई से न जोड़ा जाए। स्वयं संतुष्ट होकर बैठ जाए और आसपास की समस्याओं से आंखें मूंद लें, तो इससे दुनिया का दुःख-दर्द तो कम नहीं होगा। अतः सही स्थिति वह मानी जायेगी जिसमें कोई व्यक्ति अपने आध्यात्मिक विकास को शेष दुनिया की भलाई सेजोड़कर आगे बढ़ता है। इस स्थिति में आध्यात्मिक विकास से मनुष्य की जो क्षमताएं बढ़ती हैं, उनका सार्थक उपयोग दुनिया का दुःख-दर्द कम करने में होता है। अतः आध्यात्मिक विकास की सही व व्यापक परिभाषा यह है कि एंद्रिक सुखों को संयमित करते हुए विभिन्न क्षमताओं का विकास कर उनका सदुपयोग दुनिया के दुःख-दर्द कम करने के लिए बेहतर से बेहतर ढंग से किया जाये। आध्यात्मिकता की ऐसी सोच जो सभी घर्मों का मान्य हो सके विश्व स्तर पर अक ऐसा आध्यात्मिक मंच बनाने में बहुत मददगार हो सकती है जिसमें सभी धर्मों के लोग अपनी ऐसी सोच रख सकें जो आज की जरूरतों के अनुकूल हो, न्याय में प्रेम से व बिना भेदभाव के रहने के सिध्दांत के अनुकूल हो। इस मंच से व इसकी जगह-जगह फैली शाखाओं से विभिन्न धर्मों की ऐसी उदार सहिष्णु व कल्याणकारी व्याख्याओं का प्रचार हो सकेगा।
उदारवादी, सुधारवादी सोच
इस तरह विभिन्न धर्मों की कट्टरवादी हिंसक सोच पर लगाम लग सकेगी व उदारवादी, सुधारवादी, कल्याणकारी, सहिष्णु सोच को अधिक प्रचार-प्रसार का अवसर मिल सकेगा। जब अधिक लोगों को विशेषकर युवाओं को धर्म का ऐसी उदारवादी व सुधारवादी व्याख्या सुनने व समझने का अवसर मिलेगा जो आज की आवश्यकताओं व बहुपक्षीय प्रगति के अनुकूल है, तो पूरी संभावना है कि वे धर्म के इस रूप को ही अपनाना पसन्द करेंगे। इस तरह विश्व में विभिन्न धर्मों के कट्टरवादी, संकीर्ण व हिंसक रूप के प्रसार का जो खतरा बन रहा है उसे रोकने में बहुत मदद मिलेगी। इसके अतिरिक्त ऐसे आध्यात्मिक मंच का एक अन्य बड़ा लाभ यह होगा कि सादगी, संयम, संतोष, समता, सच्चाई, न्याय, ईमानदारी, अहिंसा के जो जीवन मूल्य विश्व में विभिन्न सार्थक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बहुत जरूरी है उनका बहुत प्रचार-प्रसार भी इस मंच से हो सकेगा। इन जीवन मूल्यों के प्रसार से विश्व में सबसे जरूरी कार्यों जैसे पर्यावरण की रक्षा, हिंसा पर रोक तथा शान्ति की स्थापना, विभिन्न जीव-जंतुओं की रक्षा, निर्धनता व विषमता दूर करना आदि की पृष्ठभूमि भी तैयार कर सकेगी। इन विभिन्न अति महत्वपूर्ण उद्देश्यों की प्राप्ति में एक बड़ी बाधा यही रही है कि समाज में ऐसे जीवन मूल्य बहुत फैल चुके हैं (व निरन्तर फैलाए जा रहे हैं) जो बहुत सार्थक उद्देश्यों के अनुकूल नहीं हैं। अतः यदि आध्यात्मिक मंच के माध्यम से उचित जीवन मूल्य निरन्तरता से फैलाए जायेंगे तो कट्टरवाद का सामना करने के अतिरिक्त अनेक अन्य सामाजिक उद्देश्यों को प्राप्त करने में भी बहुत सहायता मिलेगी। भविष्य में प्रगति की राह भौतिक सुख-सुविधाओं को अधिकतम करने की नहीं है। अपितु सबसे बड़ी जरूरत तो समाज के आपसी संबंधों को ठीक करने की है। ऐसे चार संबंधों पर विशेष तौर पर ध्यान देना जरूरी है। ये हैं मनुष्य के मनुष्य से संबंध, मनुष्य के प्रकृति से संबंध, मनुष्य के अन्य जीवों से संबंध व वर्तमान पीढ़ी के भावी पीढ़ी से संबंध। यह संबंध स्वार्थ व आधिपत्य के स्थान पर रक्षा और सहयोग पर आधारित होने चाहिए। इन सभी संबंधों में रक्षा व सहयोग की भावना को मजबूत करने में ही मानव समाज की वास्तविक प्रगति है। इन संबंधों में आधिपत्य के स्थान पर आपसी सहयोग की प्रवृत्ति को बढ़ाने में भी आध्यात्मिकता की बड़ी भूमिका हो सकती है।
सियासी मीयर की रिपोर्ट
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