Tuesday , September 24 2024

कविता : गति-मति…

कविता : गति-मति...

क्यूँ बांधते हो
अपने को.…
अपनों को।
बंधन के तीन कारण
भाव, स्वभाव और अभाव
और दो विकल्प है,
मन और जिस्म।
मन की गति अद्भुत है.…
जब अपना न बन्ध सका,
तो पराये पर जोर कैसा?
बंधना-बांधना छोड़ो—दृष्टा बनो ….
क्या कहा?
बंधोगे जिस्म को….
अरे उसकी गति तो
मन से भी द्रुत है
फ़ना हो जायेगा
और पता भी नहीं चलेगा।

सियासी मीयर की रिपोर्ट