Sunday , November 23 2025

अलविदा…

अलविदा…

ये जिंदगी कितनी खुश पहेली है
जितना सुलझाना चाहो उतना उलझता जाता है
कभी रिश्तों में, कभी पाने खोने की होड़ में
कभी बिल्कुल अकेले, शांत कुछ सोचती जिंदगी
खुशियों को पाने की चाह में उधेड़ बुनती जिंदगी
हर पल अनजाना सा लगता है पर
लगता है सब जान लिया
भीड़ के अथाह समुद्र में, दम तोड़ती जिंदगी
सुख पाने की चाह में दुखों का पहाड़ खड़ा है
फिर भी खुश रहने की जिद पर अड़ा है
कल जो रिश्ते फूलों की सेज पर दुलहन की तरह बैठी थी
वो आज अपने कांटों की ताकत दिखा रही है
उस कांटों से जिंदगी महसूस करती है चुभन को
अमृत के प्याले जैसे अमरत्व को तराशते ये रिश्ते
आज न जाने क्यूं जहर का कड़वा घूंट बन गए हैं
इसे पीने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा है
वक्त आ गया है इसे पीकर जिंदगी के रिश्तों को
कह दूं अलविदा।

सियासी मीयार की रिपोर्ट