तितली है खामोश…

बदल रहे हर रोज ही, हैं मौसम के रूप!
ठेठ सर्द में हो रही, गर्मी जैसी धूप!!
सूनी बगिया देखकर, तितली है खामोश!
जुगनूं की बारात से, गायब है अब जोश!!
दें सुनाई अब कहाँ, कोयल की आवाज़!
बूढा पीपल सूखकर, ठूंठ खड़ा है आज!!
जब से की बाजार ने, हरियाली से प्रीत!
पंछी डूबे दर्द में, फूटे गम के गीत!!
फीके-फीके हो गए, जंगल के सब खेल!
हरियाली को रौंदती, गुजरी जब से रेल!!
नहीं रहें मुंडेर पर, तोते-कौवे -मोर!
लिए मशीनी शोर है, होती अब तो भोर!!
सूना-सूना लग रहा, बिन पेड़ों के गाँव!
पंछी उड़े प्रदेश को, बांधे अपने पाँव!!
हरे पेड़ सब कट चलें, पड़ता रोज अकाल!
हरियाली का गाँव में, रखता कौन ख्याल!!
वाहन दिन भर दिन बढ़ें, खूब मचाये शोर!
हवा विषैली हो गई, धुंआ चारों ओर!!
बिन हरियाली बढ़ रहा,अब धरती का ताप!
जीव-जगत नित भोगता, प्राकृतिक संताप!!
जीना दूबर है हुआ, फैलें लाखों रोग!
जब से हमने है किया, हरियाली का भोग!!
सियासी मीयार की रिपोर्ट
Siyasi Miyar | News & information Portal Latest News & Information Portal