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गुरु दक्षिणा..

गुरु दक्षिणा..

नमन ने पूछा – ‘मैम। ये गुरु दक्षिणा क्या होती है?’ गीता मैडम यह सुनकर चौंकी। नमन अक्सर रोचक सवाल करता था। बात-बेबात पर कुछ न कुछ जरूर पूछता था। वह कार्टून फिल्मों का बड़ा शौकीन था। वीडियो गेम्स भी खूब खेलता था। चटोरा भी खूब था। लेकिन क्लास में वह छोटी-छोटी बातों पर गौर करता था।

कई बार प्रातःकालीन सभा में रोचक विचार और जानकारी भी रखता था। उसके मासूम चेहरे और भोलेपन व्यवहार से हर कोई प्रभावित था। कल की ही बात थी। नमन ने प्रातःकालीन सभा में प्रिंसिपल से पूछा था – ‘बड़ी मैम। क्या कोई ऐसा भी त्यौहार है, जो हम सबका हो?’ प्रिंसिपल को कुछ सूझा ही नहीं। वह कहने लगी – ‘बच्चों। ईद, होली, बैशाखी और क्रिसमस तो हम सभी के त्योहार हैं।’ नमन ने फिर कहा – ‘फिर मैम। स्कूल बस के ड्राइवर अंकल ने यह क्यों कहा कि ईद मुसलमानों का त्योहार है?’

प्रिंसिपल ने स्कूल बस के ड्राइवर को बुलाया और जमकर डाँटा। बेचारा नमन सकपका गया। वह सोचता रह गया कि आखिर उसने ऐसा क्या पूछ लिया था, जिसकी वजह से प्रातःकालीन सभा में हंगामा हो गया। एक दिन नमन प्रिंसिपल के ऑफिस में चला गया। प्रिंसिपल ने मुस्कराते हुए कहा – ‘हाँ नमन। क्या पूछना है। पूछो।’

नमन धीरे से बोला – ‘बड़ी मैम। मैं आपको गुरु दक्षिणा देना चाहता हूँ।’ प्रिंसिपल अवाक रह गई। सहज होकर बोली – ‘तो ठीक है। लेकिन गुरु दक्षिणा तो गुरु तय करता है। मैं जो माँगूँगी वो देना होगा। दोगे न।’ नमन से हाँ में सिर हिलाया। प्रिंसिपल ने कुछ देर सोचा फिर कहा – ‘मेरे ऑफिस के ठीक पीछे की जगह बेकार पड़ी है। आप वहाँ एक फलदार और एक छायादार पेड़ लगा सकते हो। एक दिन आप हमारे स्कूल से पढ़ कर बड़े कॉलेज में पढ़ने जाओगे। आपके लगाए हुए पेड़ हमें तुम्हारी याद दिलाते रहेंगे। ठीक है न।’ नमन मुस्कराया और अपनी क्लास में चला गया।

घर आकर उसने सारा किस्सा अपनी मम्मी को सुनाया। नमन की मम्मी ने हँसते हुए कहा – ‘ठीक है। तो चलो नर्सरी। एक आम का पेड़ और एक नीम का पेड़ लेकर आते हैं।’ नमन झट से तैयार हो गया। अगले ही दिन वह पेड़ों की पौध लेकर स्कूल पहुँच गया। स्कूल के माली की सहायता से उसने वह दोनों पेड़ प्रिंसिपल के ऑफिस के पीछे की जमीन पर रोप दिए। माली ने नमन से कहा – ‘नमन। इस बार सुना है बारिश नहीं होगी। इन्हें लगाने से क्या फायदा। ये तो सूख जाएँगे।’

नमन ने माली की ओर देखते हुए कहा – ‘मैं इन्हें पानी दूँगा।’ माली ने फिर कहा – ‘हर साल बच्चे स्कूल में वृक्षारोपण करते हैं। कुछ दिन पेड़ों को पानी भी देते हैं। फिर भूल जाते हैं। मैं भी हर पेड़-पौधे का ध्यान नहीं रख सकता। ये पेड़ तुमने लगाए हैं। इनका ध्यान भी तुमने ही रखना है। इन्हें लगाकर भूल मत जाना। समझे।’

नमन ने कहा – ‘समझ गया।’ नमन अपने टिफिन के साथ वॉटर बोतल लाता ही था। अब वह अपनी क्लास में बैठने से पहले आम और नीम के पेड़ पर थोड़ा-थोड़ा पानी जरूर डालता। छुट्टी के समय भी वह अपनी वॉटर बोतल का बचा हुआ पानी पेड़ों पर छिड़क देता। नमन की मम्मी उससे पेड़ों के बारे में अक्सर पूछती। नमन का एक दोस्त था। उसका नाम अहमद था। अहमद अक्सर नमन से पूछता – ‘ये काम तो माली का है। तुम स्कूल पढ़ने के लिए आए हो या पेड़ लगाने के लिए आए हो? क्या तुम बड़े होकर माली बनोगे?’ नमन का दिल बैठ जाता। वह एक ही जवाब देता – ‘बस मुझे अच्छा लगता है। मेरे लगाए गए पौधे धीरे-धीरे बड़े हो रहे हैं।’

एक दिन की बात है। नमन उदास था। अहमद ने पूछा तो नमन ने बताया – ‘इस बार गर्मियों की छुट्टी में हम शिमला जा रहे हैं। मेरी छुट्टियाँ वहीं बीतेगी।’ अहमद उछल पड़ा। कहने लगा – ‘अरे वाह! शिमला में मेरे चाचू रहते हैं। पता है शिमला में सेब के बहुत सारे बागीचे हैं। वहाँ अखरोट भी खूब होता है। राजमा की दाल भी। देखना तुम्हें बड़ा मजा आएगा। शिमला जाने का मेरा भी बड़ा मन है। लेकिन मैं इस साल भी शिमला नहीं जा सकूँगा।’ नमन ने पूछा – ‘लेकिन क्यो?’ अहमद ने बताया – ‘मेरे अब्बू बीमार हैं। अब मेरी अम्मी को दुकान पर बैठना पड़ता है। इस बार मुझे गर्मियों की छुट्टियों में अम्मी की हेल्प करनी है। लेकिन, तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम शिमला घूमने जा रहे हो।’ नमन ने कहा – ‘स्कूल के माली अंकल भी गर्मियों की छुट्टी में अपने गाँव जा रहे हैं। मेरे पेड़ों को पानी कौन देगा? छुट्टियों में उन्हें पानी नहीं मिला तो वे सूख जाएँगे।’

अहमद ने कहा – ‘स्कूल में कोई तो रहेगा। वो तेरे पेड़ों की देखभाल कर लेंगे।’ नमन ने जवाब दिया – ‘यही तो मुश्किल है। माली अंकल कह रहे थे कि स्कूल छुट्टियों में बंद रहता है। रात की चौकीदारी करने के लिए पड़ोस के कोई अंकल रहेंगे। लेकिन वे रात को रहेंगे और सुबह ही अपने काम पर कहीं दूर चले जाएँगे। वो अंकल भला मेरे पेड़ों की देखभाल क्यों करेंगे?’

नमन के साथ-साथ अहमद भी सोच में पड़ गया। फिर अहमद ने कहा – ‘नमन। तू टेंशन मत ले। मैं अम्मी से बात कर लूँगा। दुकान जाने से पहले मैं एक चक्कर स्कूल का लगा लिया करूँगा। पेड़ों को पानी देकर झट से दुकान में चला जाया करूँगा।’ नमन का चेहरा खिल उठा। वह बोला – ‘अहमद। तुम मेरे बेस्ट फ्रेंड हो।’ छुट्टियों में नमन खुशी-खुशी अपने मम्मी-पापा के साथ शिमला चला गया। वहीं अहमद दुकान जाने से पहले स्कूल आता और पेड़ों पर पानी डाल देता। छुट्टियाँ खत्म हुई। स्कूल खुला तो नमन सबसे पहले स्कूल आ पहुँचा। माली गेट पर ही मिल गया। माली ने नमन से कहा – ‘अरे नमन। अब पानी लाने की जरूरत नहीं है।’

नमन ने घबराते हुए कहा – ‘क्यों? क्या हुआ? आप गाँव से कब आए? मेरे पेड़ ठीक तो हैं न?’ माली ने हँसते हुए कहा – ‘होना क्या है। मैं गाँव नहीं गया। मेरे बच्चे यहीं आ गए थे। कल ही गाँव वापिस गए हैं। तुम्हारे दोस्त अहमद ने और मेरे बच्चों ने मिलकर तुम्हारे पेड़ों की खूब देखभाल की। उन्होंने स्कूल के चारों ओर कई नए पेड़ भी लगाए हैं। और हाँ। इस बार छुट्टियों के दिनों में कई बार बारिश भी हुई। जाकर तो देखो। तुम्हारे पेड़ तुम्हारे बराबर हो गए हैं।’ नमन दौड़ कर पेड़ों के पास जा पहुँचा। आम और नीम के नन्हें पौधे बड़े हो चुके थे। हरी पत्तियों से लदे पेड़ हवा में झूम रहे थे। ‘हम ठीक हैं। कहो। घूमना-फिरना कैसा रहा?’ पेड़ शायद नमन से यही कह रहे थे। नमन था कि खिलखिलाकर हँस रहा था।

सियासी मीयार की रिपोर्ट