राम मंदिर समारोह के तमिलनाडु में सीधे प्रसारण की कथित रोक पर सुप्रीम कोर्ट ने जताई आपत्ति..

नई दिल्ली, 22 जनवरी उच्चतम न्यायालय ने अयोध्या में राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा समारोह के सीधे प्रसारण और राज्य में ‘पूजा’ और ‘भजन’ करने पर तमिलनाडु सरकार की ओर से कथित तौर पर प्रतिबंध लगाने संबंधी मौखिक आदेशों पर सोमवार को आपत्ति जताई।
तमिलनाडु सरकार का पक्ष रख रहे अतिरिक्त महाधिवक्ता अमित आनंद तिवारी ने हालांकि अपनी ओर से अदा
लत के समक्ष कहा कि ऐसा कोई मौखिक आदेश नहीं दिया गया है।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने चेन्नई निवासी विनोज की याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि राज्य के अधिकारी इस आधार पर पूजा और अन्य समारोह के आयोजित करने के आवेदन को खारिज नहीं कर सकते कि संबंधित क्षेत्रों में अल्पसंख्यक रह रहे हैं।
शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु सरकार को नोटिस जारी करते हुए कहा कि वह 29 जनवरी तक अपना पक्ष अदालत के समक्ष रखे।
पीठ ने सुनवाई के दौरान तमिलनाडु के अतिरिक्त महाधिवक्ता श्री तिवारी से कहा, “हम स्पष्ट करते हैं… इस कारण (अल्पसंख्यक के कारण) से ऐसा न करें। यह कोई आधार नहीं हो सकता। आप आंकड़े रखते हैं कि कितने आवेदनों को अनुमति दी गई या कितने को अस्वीकृत किया गया। यदि यही कारण है तो आप (सरकार) समस्या में पड़ जाएंगे।”
शीर्ष अदालत के समक्ष श्री तिवारी ने अपनी ओर से कहा कि ऐसा (पूजा और भजन पर प्रतिबंध) कोई मौखिक आदेश जारी नहीं किया गया है।
अतिरिक्त महाधिवक्ता ने कहा, “कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है। यह राजनीति से प्रेरित है।”
पीठ ने कहा, “हम मानते और विश्वास करते हैं कि अधिकारी कानून के अनुसार काम करेंगे न कि किसी मौखिक निर्देश के आधार पर। अधिकारियों को कानून के अनुसार काम करना चाहिए और प्राप्त आवेदनों का रिकॉर्ड भी बनाए रखना चाहिए। उन्हें प्राप्त आवेदनों की जांच करनी चाहिए और स्पष्ट आदेश पारित करना चाहिए।”
पीठ ने मौखिक रूप कहा, “यह एक समरूप समाज है। केवल इस आधार पर न रोकें (आवेदन को ) कि वहां ए या बी समुदाय है। अस्वीकृति के लिए किस प्रकार के कारण दिए जाते हैं? यह कारण कैसे दिया जा सकता है कि हिंदू किसी स्थान पर अल्पसंख्यक हैं, इसलिए आप अनुमति नहीं देंगे। ये कारण अनुचित हैं। अगर इस कारण का पालन करना है तो यह राज्य भर में नहीं हो सकता है।’
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कुछ पुलिस स्टेशनों ने इस तरह का आदेश पारित किया है। उन्होंने कहा कि आसपास रहने वाले ईसाई या अन्य समुदाय कभी समस्या नहीं हो सकते।
इस पर श्री तिवारी ने पूछा कि अगर वे मस्जिद के सामने जुलूस निकालना चाहते हैं तो क्या होगा।
पीठ ने वकील से कहा, ‘आपके पास हमेशा इसे विनियमित करने की शक्ति है।’
याचिकाकर्ता का पक्ष रखते हुए वरिष्ठ वकील दामा शेषाद्री नायडू ने दलील दी कि एक राजनीतिक दल (जो एक विशेष धर्म से नफरत करता है), वह सत्ता में आया है और वह चाहता है कि सरकार भी उस धर्म से नफरत करे।
उन्होंने दावा किया कि अयोध्या में प्रतिष्ठा समारोह के अवसर पर ‘पूजा’ और अन्य समारोहों के सीधे प्रसारण पर प्रतिबंध लगाने के आदेश जारी किए गए हैं।
सियासी मियार की रीपोर्ट
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