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व्यंग्य कविता : एक कुत्ता सीधा दुम वाला..

व्यंग्य कविता : एक कुत्ता सीधा दुम वाला..

-डाक्टर चंद जैन ‘अंकुर’-

एक आवारा कुत्ता देखा सीधा दुम वाला,
बेचारा भुखमरा रंग का काला,
आश्चर्यचकित सा रह गया और पूछ डाला,
ऐ कालिया! किस नस्ल का है तू सीधा दुम वाला,
उसने मुझे उपर से नीचे तक घूरा और पूछ डाला,
तू किस नस्ल का आदमी है लाला।

मैंने कहा मैं हूं कवि, वहां जाऊं जहां न जाये रवि,
मैंने गुस्से से बोला ओ कुत्ते महाशय !
आदमी से नस्ल पूछता है, क्या सूरज को दिखाता है दिया,
उसने पलट के जवाब दिया ओ मियां !
तुमपे भौंक कर अपना मुंह गन्दा नहीं करूँगा,
तुम्हारे जैसे इज्ज़तदार टटपूंजिया से नहीं डरूंगा,
कुत्ते ने हमें छोला और आदमी की सारी पोल खोला।

वो तुम्हारी सफ़ेद टोपी वाली जात है न !
देश में सत्ते की बिसात है न,
हम तो गन्दगी को खा कर देश को साफ़ करते हैं,
वो गरीबी बेरोजगारी और भ्रष्टाचार की गंदगी से देश को भरते हैं,
और सारी दौलत साफ़ करते हैं,
हम रंग के काले है पर सच्चे दिल वाले हैं,
हमारी वफ़ादारी उनके सफ़ेद कुर्ते से भी ज्यादा सफ़ेद है।

क्या अब खाक़ी वर्दी वालों का किस्सा सुनाऊं और उनकी हकीक़त से पर्दा हटाऊं,
हम तो केवल सूंघ कर चोर का पता लगाते हैं,
लेकिन हमारी अक्ल पर वो अपना सिक्का जमाते हैं,
चोर मालदार हुआ तो धमकाते हैं और अपना हिस्सा पाते है,
और कुछ न मिला तो हमारी मेहनत पे गोल्ड मेडल कमाते हैं।

क्या काले कोट वालों की कलाई खोलूं और अपनी किस्मत पे रो लूँ,
हम तो अपराधी को पकड़ते हैं,
वे हमें जानवर बता कर अपना पाप ढकते हैं,
क़ानून की आड़ में न जाने कितने जुल्म पलते हैं,
इससे बड़ा और क्या सबूत होगा पुख्ता कि अपराधी को पहचान लेता है एक अदद कुत्ता।

अरे दो पाए वाले प्राणियों कुछ तो शर्म करो ईश्वर से कुछ तो डरो,
हमने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था हमने तो ह़र रोटी का हक़ अदा किया है,
तुमने हमारे भी समाज को आरक्षण के ज़हर से भर दिया है,
अल्पसंख्यक के नाम पे हम सब को अलग कर दिया है,
किसी को अल्सेशियन किसी को पौमेलिओन और डोबरमेन कहते हो,
गोरे नस्लों को तो बंगलों में पाल रखा है और प्यार से पपी बुलाते हो,
हमें स्ट्रीट डोग कह कर नकारते हो और मुनिस्पेलिटी से मरवाते हो,
उन्हें गद्दे में सुलाते हो ह़र साल वेक्सीन लगवाते हो।

अरे मानवों की शक्ल में छुपे दानवों तुम्हारी शिकायत हम किससे करें,
सारा तंत्र तुम्हारे हाथ है,
हमारे काटने का तो इलाज है पर जिसे तुम काट लो वो लाइलाज है,
पहले तुम जंगल में रहते थे अब सारा जंगल तुम्हारे अंदर है,

सुन कर कुत्ते की कहानी मैं शर्म से हो गया पानी-पानी,
मैं कुत्ते का फैन हो गया, आदमी से जेंटल मैन हो गया,
लेकिन सीधी दुम वाली बात अधूरी रह गयी सोचा पूछूं पर डर गया,
कुत्ता दर्द भरी दास्ताँ कह गया।

तुम लोगों ने जब से हमारे टेढ़ी पूंछ को मुहावरा बनाया है,
इसके टेढ़ेपन को अपने चरित्र में अपनाया है,
तबसे सारे जानवर मुझे आदमी कह कर चिढाते थे,
इस बदनामी को ले कर हम जीते जी मर जाते हैं,
हमारा भी जानवर समाज में सम्मान है श्रीमान,
आखिर हमारी पूंछ है हमारा आत्म स्वाभिमान ,वफादारी की पहचान,
ये हमारी इज्जत है और आन बान शान।

एक लम्बी सांस भर कर कुत्ते जी ने कहा,
कवि महोदय मेरी सीधी दुम में छिपा है एक राज़,
इसके लिए मैंने लम्बे समय से प्रकृति से लड़ाई की है तब जा कर सीधी पूंछ गढ़ी है,
कवि श्री यदि आपने हमारे दिल की क़िताब में कुछ पढ़ा है,
तो इंसानियत के चेहरे में छुपे शैतानों से लड़ना,
अपनी कलम की तलवार से उनके मुखौटों को खुरचना,
ह़र इंसान को वफादारी और देशभक्ति के रंग से रंगना,
तब जा कर हम ह़र आदमी पर गर्व करेंगे,
और टेढ़ी पूंछ को शान से फिर गढ़ेंगे।

सियासी मियार की रीपोर्ट