Saturday , September 21 2024

सहारा…

सहारा…

धनराज और आशा की जिंदगी से पप्पू के अचानक चले जाने से उन की दुनिया वीरान हो गई थी। ऐसे में कौन उन की जिंदगी में रोशनी बन कर आया जिस से धनराज का बंगला फिर से जगमग करने लगा?

विद्यावती अनाथालय के भीतर वाले मैदान में कुछ अनाथ बच्चे रबड़ की गेंद से खेल रहे थे। उन की आयु 10-12 वर्ष थी। वे निशाना साध कर एकदूसरे की पीठ पर गेंद से प्रहार करने का प्रयत्न करते थे और बचतेबचते इधरउधर भाग रहे थे। जब गेंद किसी बच्चे की पीठ पर लगती तो सब एकसाथ शोर मचाने लगते।

थोड़ी ही दूर सब से अलगथलग एक नन्हा बच्चा बैठा हुआ था। उस की उम्र लगभग 5 वर्ष थी। उस का ध्यान गेंद से खेल रहे बच्चों की तरफ नहीं था। वह अपनेआप में मस्त जमीन पर बैठा घास के साथ खेल रहा था। सूख कर टूटे और बिखरे हुए घास के तिनकों को उठा कर वह हरीभरी घास में मिलाने का प्रयत्न कर रहा था। वह कभी मुसकरा देता और कभी उदास हो जाता।

डगडग, डगडग… उसे आश्रम के बाहर सड़क की ओर से आती ध्वनि सुनाई पड़ी। तभी उस की तंद्रा टूटी। उस ने सिर उठा कर देखा।

सामने अनाथालय का लोहे की सलाखों का मुख्यद्वार था। मोटीमोटी सलाखों में थोड़ाथोड़ा फासला था। जब किसी को भीतर या बाहर आनाजाना होता तो चैकीदार उसे खोलता था। नजदीक ही टिन का एक छप्पर बना हुआ था, जहां चैकीदार बैठता था।

डगडग, डगडग… ध्वनि अब करीब से सुनाई दे रही थी। वह नन्हा एकटक उसी ओर निहार रहा था। अचानक वह उठा और मुख्यद्वार की ओर चल पड़ा।

लोहे की सलाखों के बीच में से उस ने देखा कि एक महिला सिर पर टोकरी उठाए जा रही है और उस के पीछे एक खिलौना गाड़ी सरक रही है।

उस महिला ने एक मोटे धागे से खिलौना गाड़ी को बांध रखा था और धागा अपने हाथ में पकड़ रखा था। लकड़ी की 2 पतली डंडियां उस गाड़ी पर बारीबारी से प्रहार करती थीं। इसी कारण डगडग, डगडग की ध्वनि उभर रही थी।

वह उच्च स्वर में बोल रही थी, खिलौना गाड़ी ले लो, खिलौना गाड़ी..।

नन्हे का ध्यान उस खिलौना गाड़ी वाली महिला की तरफ नहीं था। उस का ध्यान तो उस की आवाज, गाड़ी के स्वर और खिलौना गाड़ी पर केंद्रित था।

जैसे ही खिलौना गाड़ी छोटेछोटे 4 पहियों पर सरकती हुई द्वार के सामने से गुजरी, नन्हा द्वार की मोटी सलाखों के छोटे फासले में से घुस कर सरकता हुआ द्वार से बाहर निकल गया।

चैकीदार कुछ दूरी पर बैठा हुआ था। मैदान के दूसरी ओर कुछ महिलाएं और पुरुष मीठी धूप का आनंद उठाते हुए गपशप में मशगूल थे। वे अनाथ बच्चों के शिक्षक व संरक्षक थे। किसी का भी ध्यान उस नन्हे बालक की तरफ नहीं गया।

सड़क पर कई वाहन आजा रहे थे। फुटपाथ पर आगेआगे वह महिला जा रही थी, उस के पीछे डगडग करती खिलौना गाड़ी सरक रही थी। उन के पीछे नन्हा अपने नन्हे पांवों से लंबे डग भरने का प्रयत्न करते हुए उस गाड़ी को पकड़ने की भरपूर कोशिश कर रहा था। 3-4 बार वह इस कोशिश में नाकाम हो चुका था।

धीरेधीरे फासला बढ़ता गया। वह महिला और खिलौना गाड़ी दूर निकल गई। नन्हा काफी पीछे छूट गया। अब खिलौना गाड़ी उस की आंखों से ओझल हो गई थी।

सड़क पर बहुत भीड़ थी। स्कूटर, साइकिलें, कारें और ट्रक एक तरफ से दूसरी तरफ भागे जा रहे थे। फुटपाथ पर भी आमदरफ्त करते लोगों की भीड़ थी। परंतु नन्हा एकदम अकेला था। वह अकेला ही किसी अनजान डगर की ओर बढ़ता चला जा रहा था। वह नन्हा मुसाफिर कई बार ठोकरें खा कर गिरा, उठा और फिर चल पड़ा।

चलतेचलते अचानक उसे चऊंचऊं, चऊंचऊं का स्वर सुनाई दिया। रुक कर उस ने इधरउधर नजर दौड़ाई परंतु कुछ दिखाई नहीं दिया। जैसे ही वह आगे बढ़ने लगा, स्वर फिर सुनाई दिया।

इस बार उस की नजर एक जगह पर जा कर टिक गई। उस ने देखा कि नाली के किनारे एक छोटे पिल्ले की टांग एक छोटे से पत्थर के नीचे दबी हुई है। शायद इसी कारण वह पीड़ा से कराह रहा था।

नन्हा धीरेधीरे उस के पास गया। उस ने पत्थर को अपने नन्हे हाथों से दूसरी तरफ सरका दिया, पिल्ले की टांग छूट गई। वह हर्षित हो कर पूंछ हिलाता हुआ नन्हे के पांव चाटने लगा। शायद वह उस का शुक्रिया अदा कर रहा था।

शैतान पप्पी, पीछे हट, नन्हे ने धीरे से कहा। उस के नंगे पांवों में गुदगुदी होने लगी। वह धीरे से हंसा। हंसना उसे भला लगा। वह और जोर से हंसने लगा। पप्पी भी सिर हिलाता हुआ नाचने लगा। जोर से हिलती हुई उस की दुम उस के खुश होने का इजहार कर रही थी। 2 अजनबियों में पलभर में मित्रता हो गई।

नन्हे को एक साथी मिल गया। अब वह दुनिया के मेले में अकेला नहीं था। वह फुटपाथ पर आगे बढ़ने लगा। पप्पी भी दुम हिलाता हुआ उस के पीछेपीछे चलने लगा।

सड़क की दूसरी तरफ फुटपाथ पर कोई पुरुष गुब्बारे बेच रहा था। नन्हे ने जब लाल, पीले, नीले गुब्बारे देखे तो उस का मन उन्हें पाने के लिए ललचा उठा। पप्पी कभी गुब्बारों को देखता, कभी नन्हे को, तो कभी आतेजाते वाहनों को। सड़क पार करने में उसे खतरा महसूस हुआ।

नन्हा अभी तक गुब्बारों को ललचाई निगाहों से देख रहा था। जैसे ही वह गुब्बारे को पाने के लिए सड़क पार करने लगा, उसी वक्त पप्पी उस के सामने आ गया और उस के पांवों पर जीभ से गुदगुदी करने लगा।

उस का ध्यान गुब्बारों से हट गया। वह जोरजोर से हंसने लगा। अचानक पप्पी फुटपाथ पर भागने लगा। नन्हा भी उस के पीछे भागा। पप्पी नन्हे को पीछे भगाते हुए उस गुब्बारे वाले से काफी दूर ले गया। फिर दोनों बैठ कर हांफने लगे। नन्हा अब गुब्बारों को भूल गया था इसलिए पप्पी भी निश्ंिचत था।

पुलिस के 2 सिपाही आपस में बातचीत करते जा रहे थे। एक ने कहा, कहां गया होगा? अगर नहीं मिला तो थाने जा कर क्या मुंह दिखाएंगे। थानेदार साहब बहुत नाराज होंगे।

दूसरा बोला, हुलिया क्या बताया था साहब ने?

काली आंखें, भूरे बाल, नाक चपटी, दाएं पांव पर एक सफेद निशान वगैरहवगैरह।

भई, उसे खोजतेखोजते मैं तो थक कर चूर हो गया हूं। पता नहीं उसे जमीन निगल गई या आसमान खा गया?

बच्चा है, ज्यादा दूर नहीं जा सकता। हिम्मत मत हारो, चलो, उस तरफ देखते हैं, बतियाते हुए वे आगे निकल गए।

बाजार कभी का बंद हो चुका था। सड़कें सुनसान थीं। रात गहराने लगी थी। ठंडी, तेज हवा चल रही थी। नन्हे और पप्पी की टांगें दिनभर भटकतेभटकते थक चुकी थीं। रात के अंधेरे में सुनसान सड़क पर चलतेचलते वे दोनों एक बंद दुकान के आगे पड़ी एक बड़ी मेज के नीचे जा कर बैठ गए।

इधरउधर आंखें घुमाते हुए दोनों सिपाही आगे निकल गए। वे उन दोनों को नहीं देख सके क्योंकि जहां वे बैठे थे वहां अंधेरा था।

आंखों में निद्रा घिर आई थी। वे दोनों वहीं पर सोने का प्रयत्न करने लगे। ठंड के कारण वे थरथर कांप रहे थे।

अचानक नन्हे को पप्पी का स्वर सुनाई दिया। उस ने इधरउधर देखा। पप्पी का मुंह एक नाली में फंसा हुआ था। नन्हे ने उसे खींच कर बाहर निकाला तो देखा कि उस के मुंह में एक कपड़ा है, जिसे वह नाली के रास्ते दुकान के भीतर से बाहर खींचने का प्रयत्न कर रहा था। अब दोनों ने उस कपड़े को बाहर खींचा तो देखा कि वह एक छोटी सी चादर है।

नन्हे ने वह चादर अपने ऊपर ओढ़ ली। पप्पी भी उस के भीतर घुस गया। लेकिन समस्या अभी हल नहीं हुई थी। दोनों के पेट में चूहे दौड़ रहे थे। उन्हें भूख सता रही थी।

थोड़ी देर बार पप्पी उठ कर कहीं चला गया तो नन्हा अपनेआप को अकेला महसूस करने लगा। वह दुबक कर बैठ गया। उस ने महसूस किया कि वह अपने मित्र के बिना नहीं रह सकता, उस के बिना वह एकदम अकेला है।

तभी पप्पी वापस आ गया। उस के मुंह में डबलरोटी थी, जिसे वह बहुत कठिनाई से उठा कर लाया था। उस को देख कर नन्हे का चेहरा खिल उठा। दोनों ने मिल कर डबलरोटी खाई। पेट की आग तो ठंडी हो गई, परंतु समस्या अब भी हल नहीं हुई थी। उन्हें एक नल दिखाई पड़ा। लेकिन उस का मुंह इतना ऊंचा था कि वे वहां तक नहीं पहुंच सकते थे। वे होंठों पर जबान फेरते हुए नल को घूरने लगे। पप्पी कूद कर नन्हे के कंधे पर सवार हो गया, परंतु व्यर्थ। उस ने गरदन घुमाई, पर मदद करने वाला कोई न था। पप्पी नीचे कूद पड़ा। दोनों प्यासे ही वहां से लौट गए।

पौ फट चुकी थी। चारों ओर सफेदी छा गई थी। वे दोनों फुटपाथ के किनारे बैठे हुए थे। दूसरी तरफ से आ रहे दोनों सिपाहियों की निगाह उन पर पड़ी।

एक ने ऊंचे स्वर में कहा, वह रहा, पकड़ो, भागने न पाए।

उन के नजदीक पहुंच कर एक सिपाही ने जंजीर पप्पी के गले में डालते हुए राहत की सांस ली।

नाक में दम कर रखा था इस ने। रात को थाने में विधायक साहब का फोन आया था। कह रहे थे कि अगर पप्पी नहीं मिला तो हमें नौकरी से निलंबित कर दिया जाएगा। थानेदार भी गुस्से से लालपीले हो रहे थे। आखिर हम ने इसे पकड़ ही लिया।

पप्पी स्वयं को उन की गिरफ्त से छुड़ाने की कोशिश में लगातार भूंक रहा था। वह उन के साथ नहीं जाना चाहता था। परंतु सिपाही जंजीर को खींचने लगा।

नन्हा उदास नजरों से उन्हें जाते हुए तब तक देखता रहा जब तक कि वे उस की नजरों से ओझल नहीं हो गए। पप्पी का स्वर अभी तक उस के कानों में गूंज रहा था।

पप्पी को खोजने वाले बहुत थे, परंतु नन्हे को ढूंढ़ने वाला कोई न था। वह फिर अकेला हो गया। उस का मित्र चला गया था, इसलिए वह बहुत दुखी था।

रंगबिरंगे फूलों भरे उद्यान में नन्हा घास पर बैठा हुआ था। सामने मैदान में उसी की उम्र के बच्चे खेलकूद में मग्न थे। उन से थोड़ी दूरी पर उन की अध्यापिका बैठी हुई थी। नन्हा उन को घूर रहा था।

तभी पप्पी वहां पहुंच गया और नन्हे के पांवों में गुदगुदी करने लगा। नन्हे ने जब उसे देखा तो खुशी के मारे जोरजोर से हंसने लगा। पप्पी उस के पांव चाट कर अपने प्यार का इजहार कर रहा था। वह जता रहा था कि वह अपने प्रिय मित्र को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकता। नन्हे ने उसे गोद में बैठा लिया और उस के शरीर पर हाथ फेरने लगा।

थोड़ी देर बाद नन्हा भी बच्चों के साथ खेलकूद में मस्त हो गया। पप्पी भी नाचने लगा। शाम को जब बच्चे लौटने लगे तो नन्हा भी उन के साथ ही बस में सवार हो गया। अध्यापिका का ध्यान उस की तरफ नहीं गया।

नन्हे के पांवों के पास पप्पी भी चुपचाप बैठा हुआ था। वह भी कूदता हुआ बस में सवार हो गया था।

बस जब स्कूल के नजदीक पहुंची तो बच्चों का शोरगुल सुन कर सेठ धनराज की पत्नी आशा ने खिड़की से झांक कर देखा। उस की आंखों से आंसू बहने लगे। वह भरे गले से पति की ओर देखते हुए बोली, मेरा पप्पू भी इन बच्चों के साथ पिकनिक पर जाने वाला था। ये उसी की कक्षा के छात्र हैं।

सेठ धनराज के बंगले में मातम छाया हुआ था। उन का इकलौता बेटा पप्पू कांति प्रसाद प्राइमरी स्कूल में पढ़ता था। 4 दिन पहले जब वह स्कूल गया तो लौट कर नहीं आया।

धनराज की पत्नी आशा खुद बेटे को स्कूल लेने जाती थी। उस दिन किसी कारणवश वह समय पर नहीं पहुंच सकी थी। स्कूल के द्वार के पास पप्पू अपनी मां का इंतजार कर रहा था। जब वह वहां नहीं पहुंची तो वह अकेला सड़क पार करने लगा। परंतु अचानक ही तेज गति से एक ट्रक आया और पप्पू को कुचलता हुआ चला गया। घटनास्थल पर ही उस की मृत्यु हो गई थी।

आशा का रोरो कर बुरा हाल था। वह एक ही रट लगाए हुए थी, मुझे मेरा पप्पू चाहिए, मुझे मेरा पप्पू चाहिए। मैं उस के बिना जिंदा नहीं रह सकती..।

धनराज ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, आशा, जीवन में इंसान को कुछ दुख ऐसे भी मिलते हैं जिन्हें उसे झेलना ही पड़ता है। हिम्मत से काम लो।

आशा ने सिसकियां लेते हुए कहा, आप जानते हैं कि जब पप्पू का जन्म हुआ था तो मुझे औपरेशन करवाना पड़ा था। अब तो मैं दूसरे बच्चे को जन्म देने में भी असमर्थ हूं। मैं क्या करूं, कुछ समझ में नहीं आता। पप्पू के जाने के बाद मेरी जीने की तमन्ना ही खत्म हो गई है।

मृत्यु एक कड़वी सचाई है, हमें उस सचाई का सामना करना होगा, धनराज का स्वर भी उदासी में डूबा हुआ था।

तभी द्वार पर घंटी बजी। धनराज ने दरवाजा खोला। सामने डाकिया खड़ा था। धनराज को एक लिफाफा दे कर वह चला गया।

धनराज आशा के पास बैठ कर लिफाफा खोलने लगे। पत्र देख कर प्रतीत होता था कि वह विदेश से आया था। धनराज के पिता कनाडा में रहते थे, इसीलिए उन्होंने सोचा कि पिताजी का ही पत्र होगा।

पहले धनराज और आशा भी कनाडा में रहते थे। परंतु उन दोनों को वहां की सभ्यता और वातावरण रास नहीं आया था। उस के पिता केदारनाथ कई वर्षों से भारत में बसने की बात सोच रहे थे, परंतु कनाडा के व्यापार को समेटना आसान न था।

धनराज ने पत्र खोल कर पढ़ना शुरू किया:

प्रिय बेटा धनराज,

प्यार,

मैं ने कनाडा में सारी संपत्ति बेच दी है और शीघ्र ही मैं भारत पहुंच रहा हूं। जैसे ही मुझे हवाई जहाज का टिकट प्राप्त होगा, मैं सफर शुरू कर दूंगा। शायद यह पत्र पहुंचने से पहले ही मैं खुद भारत पहुंच जाऊं।

मुझे दिल का दूसरा दौरा पड़ा था। डाक्टर ने आराम करने को कहा है। उन का कहना है कि अगर मैं व्यापार में और दौड़धूप करूंगा तो मुझे किसी भी समय तीसरा दौरा पड़ सकता है और मेरी मृत्यु हो सकती है।

मैं अपनी शेष जिंदगी अपने लाड़ले पोते पप्पू के साथ हंसतेखेलते गुजारना चाहता हूं। वह जब 6 महीने का था तब की उस की तसवीरें मेरे पास हैं। बस, उन्हीं को प्यार करता रहता हूं। बाकी बातें मेरे पहुंचने पर होंगी। पप्पू को मेरी तरफ से जीभर कर प्यार देना। उस से कहना कि उस के दादा उस के लिए नईनई वस्तुएं और खिलौनों का भंडार ले कर आ रहे हैं। मैं ने उस के लिए एक खास किस्म की खिलौना गाड़ी खरीदी है। उसे देख कर पप्पू बहुत खुश होगा। उम्मीद है, बहू ठीकठाक होगी।

तुम्हारा पिता

केदारनाथ।

पत्र पढ़ते ही धनराज के हाथपांव कांपने लगे, परंतु शीघ्र ही उन्होंने अपनेआप को संभाल लिया।

आशा घबरा कर बोली, अब क्या होगा? जब पिताजी को पता चलेगा कि पप्पू अब इस दुनिया में नहीं है तो शायद वे यह सदमा सहन न कर सकें। उन्हें तीसरा दौरा पड़ सकता है। पप्पू तो चला गया, कहीं पिताजी भी..।

धनराज ने उस की बात बीच में ही काटते हुए कहा, तुम सिर्फ दुखभरी बातें ही क्यों सोचती हो? निराशा और घबराहट से मुसीबत टल तो नहीं जाती। फिर पिताजी को यहां पहुंचने में अभी थोड़ा वक्त है। तब तक सोचते हैं कि हमें क्या करना चाहिए? धनराज खुद अंदर से घबरा गए थे परंतु अपनी पत्नी को बराबर तसल्ली दे रहे थे।

लगभग 2 घंटे बाद एक टैक्सी बंगले में प्रविष्ट हुई। धनराज ने लपक कर देखा। उन के पिता टैक्सी का किराया चुका रहे थे।

पिताजी आ गए हैं, आशा। जल्दी से अपना बिगड़ा हुआ हुलिया ठीक करो। घबराना नहीं। अपने पर तुम्हें काबू रखना होगा। अब और अधिक सोचनेसमझने का वक्त नहीं है।

केदारनाथ ने कमरे में प्रवेश किया। आशा और धनराज दोनों हक्केबक्के हो कर उन्हें घूर रहे थे।

क्या बात है, मुझे इस तरह क्यों देख रहे हो, मेरा लाड़ला पोता कहां है?

जल्दी से दोनों ने संभलते हुए केदारनाथ के चरण स्पर्श किए।

शीघ्र ही उन्होंने फिर पप्पू के बारे में पूछा। धनराज और आशा इतनी जल्दी इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं थे। वे बगलें झांकने लगे। तभी आशा ने शीघ्रता से और घबराहट में बिना सोचेसमझे कह दिया, आप आइए पिताजी, बैठिए। पप्पू अपनी कक्षा के बच्चों के साथ पिकनिक पर गया है। 5 बजे शाम को मैं उसे स्कूल से ले आऊंगी।

केदारनाथ ने घड़ी देखते हुए कहा, अब तो 5.30 बज चुके हैं। तुम दोनों अभी यहीं हो। क्या ऐसे ही देखभाल करते हो मेरे पोते की? फिर थोड़ा गुस्से से वे बोले, ड्राइवर को पप्पू के स्कूल का पता मालूम है?

मालूम तो है पिताजी, लेकिन..।

लेकिनवेकिन कुछ नहीं। देख लिया, तुम दोनों कितने लापरवाह हो। आज से उस की देखभाल मैं करूंगा। मैं ड्राइवर के साथ कार ले कर पप्पू के स्कूल जा रहा हूं। मैं अपने पोते को पहचान सकता हूं।

केदारनाथ बाहर निकल गए। आशा और धनराज एकदूसरे का मुंह देखते रह गए।

अब क्या होगा? आशा ने घबराए स्वर में पति से पूछा।

हिम्मत से काम लो, जो होगा, ठीक ही होगा।

ड्राइवर केदारनाथ को सीधा पप्पू के स्कूल ले गया। वहां पहुंच कर उन्हें मालूम हुआ कि पिकनिक बस कभी की वहां पहुंच चुकी है और अभिभावक बच्चों को अपने साथ ले गए हैं। परंतु एक बच्चे को लेने कोई नहीं आया था, इसलिए वह बच्चा चैकीदार के पास बैठा हुआ था।

जब केदारनाथ चैकीदार के पास गए तो देखा कि एक बच्चा एक पिल्ले को गोद में लिए हुए बैठा है। वह सूनीसूनी नजरों से इधरउधर देख रहा था। केदारनाथ ने उसे गौर से देखा तो नन्हा भी उन की तरफ देख कर मुसकराने लगा। पप्पी भी जोरजोर से पूंछ हिलाने लगा।

केदारनाथ ने प्यार से पुकारा,

पप्पू बेटा।

तभी पप्पी ने उस के पांव पर गुदगुदी की तो वह हंसने लगा। केदारनाथ ने भी खुशी से झूम कर नन्हे को अपनी गोद में उठा लिया और भावविभोर हो कर उसे बेतहाशा प्यार करने लगे।

वह नन्हे का माथा चूमते हुए बोले, अब मैं आ गया हूं, बेटा। मैं तुम्हारा दादा हूं। मैं तुम्हारे लिए ही यहां आया हूं। अब हम साथसाथ रहेंगे। तुम्हारे मातापिता की लापरवाही देख ली है मैं ने। चलो, घर चलते हैं।

उधर, आशा और धनराज उदास बैठे हुए स्थिति का सामना करने की कोशिश कर रहे थे।

आशा ने डूबती आवाज में कहा, मुसीबत पर मुसीबत खड़ी हो रही है। अब जब पिताजी को स्कूल में पप्पू नहीं मिलेगा, तब क्या होगा?

तुम्हें इस तरह झूठ नहीं बोलना चाहिए था। एक झूठ को छिपाने के लिए कई झूठ बोलने पड़ते हैं। फिर जब पिताजी को सचाई का पता चलेगा..।

धनराज अपना वाक्य पूरा कह भी नहीं पाए थे कि कार बंगले में प्रविष्ट हुई। उन्होंने देखा कि केदारनाथ एक बच्चे के साथ कार से बाहर निकल रहे हैं। उन्होंने बच्चे को अपनी छाती से चिपका रखा था। यह देख धनराज और उन की पत्नी आश्चर्यचकित हो कर एकदूसरे को प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगे। दोनों असमंजस में पड़ गए। स्तब्ध से वे कभी बच्चे को देखते तो कभी पिताजी को, और कभी दुम हिलाते हुए पप्पी को।

नदजीक पहुंच कर केदारनाथ ने कहा, तुम दोनों इस तरह हैरान हो कर हमें क्यों देख रहे हो? तुम क्या समझे थे कि मैं पप्पू को पहचान नहीं सकूंगा। देखो, मैं ने अपने बेटे को पहचान लिया। लेकिन इस लापरवाही के लिए मैं तुम लोगों को माफ नहीं करूंगा। पप्पू बेचारा अकेला चैकीदार के पास बैठा हुआ था। लेकिन कोई बात नहीं। आज से यह मेरे साथ ही रहेगा और मेरे कमरे में सोएगा, वे नन्हे को ले कर ऊपर वाले कमरे में चल पड़े।

तभी धनराज ने कहा, लेकिन पिताजी, आप मेरी बात तो सुनिए।

यह बच्चा..।

नहीं, अब मैं बहुत थक गया हूं। बाकी बातचीत कल होगी। रात को मेरा और पप्पू का भोजन मेरे कमरे में भेज देना। और हां, पप्पू के पप्पी के लिए भी खाने को कुछ भेज देना।

धनराज और आशा अपने कमरे में बैठे हुए थे। रात गहरी हो रही थी, लेकिन नींद उन के नेत्रों से कोसों दूर थी।

पप्पू की मृत्यु के कारण मेरा तो पहले ही बुरा हाल था, ऊपर से यह नई मुसीबत। पिताजी न जाने किस का बच्चा उठा लाए हैं, आशा धीरे से बोली।

मैं सोच रहा हूं कि पिताजी को सचाई बता देनी चाहिए, नहीं तो कोई और बखेड़ा खड़ा हो जाएगा। हम कितना भी प्रयत्न करें, सचाई को छिपा नहीं सकते। पिताजी को पप्पू की मृत्यु को सहन करना ही पड़ेगा।

हां, आप ठीक कहते हैं। एक न एक दिन तो सचाई सामने आ ही जाएगी। फिर हम कब तक झूठ पर झूठ बोलते रहेंगे।

हम कल ही पिताजी को सचाई

बता देंगे।

लंबे सफर की थकान के बावजूद देर रात तक केदारनाथ उस से बातें करते रहे। नन्हा भी अपनी तोतली जबान में उन के साथ बतियाता रहा। उस की प्यारी बातों ने केदारनाथ का मन मोह लिया। जब उन्होंने नन्हे को खिलौना गाड़ी दी तो वह खुशी से झूम उठा।

सुबह धनराज, आशा, केदारनाथ और नन्हा एकसाथ नाश्ता कर रहे थे। केदारनाथ ने नन्हे को अपनी गोद में बिठा रखा था। वे दोनों आपस में बातें कर रहे थे। मेज के नीचे फर्श पर पप्पी बैठा हुआ कुछ खा रहा था।

धनराज और आशा बारबार नन्हे को निहार रहे थे। न चाहते हुए भी उन की नजर उस की ओर उठ जाती थी। धनराज अपने पिताजी को सच बताने का अवसर खोज रहे थे। उन का दिल जोरजोर से धड़क रहा था।

तभी केदारनाथ बोल पड़े, चलो, पप्पू बेटा, हम बाहर बगीचे में जा कर बैठते हैं। पप्पी को भी बुला लो। बाहर बहुत सुहावना मौसम है।

पिताजी के जाने के बाद धनराज ने कहा, आशा, एक बात कहूं?

जी, कहिए।

क्या उस बच्चे में तुम्हें पप्पू की छवि नजर नहीं आती? मुझे तो बिलकुल पप्पू जैसा ही दिखाई देता है।

हां, मैं भी आप से यही कहने वाली थी। उसे देख कर मैं तो भूल ही गई थी कि पप्पू हमारे बीच नहीं है।

लेकिन वह बच्चा है किस का? पिताजी कहां से लाए हैं उसे?

इस का उत्तर तो वही दे सकते हैं।

तभी केदारनाथ ने भीतर आते हुए कहा, क्या खुसुरफुसुर हो रही है, जरा हम भी तो सुनें।

पिताजी, आप जरा मेरे साथ मेरे कमरे में आइए, आप से जरूरी बात करना चाहता हूं, धनराज बोले।

दूसरे कमरे में पहुंच कर धनराज ने पप्पू के बारे में सबकुछ सचसच बताते हुए उस की मौत का समाचार भी उन्हें सुना दिया।

शोक समाचार सुनते ही केदारनाथ अवाक् रह गए। उन के होंठ खुले के खुले रह गए। उन के माथे पर पसीने की बूंदें चमकने लगीं। वे धीरे से पलंग पर बैठ गए। आशा भी तब तक वहां पहुंच चुकी थी।

धनराज ने कहा, अपनेआप को संभालिए, पिताजी।

केदारनाथ ने दुखभरे स्वर में कहा, पप्पू की मौत की खबर सुन कर मुझे अति दुख हुआ बेटा, परंतु अफसोस इस बात का भी है कि तुम ने मुझे इतना कमजोर समझा।

मृत्यु एक कड़वा सत्य है बेटा, इसे हर इंसान को सहन करना पड़ता है।

नन्हा धीरेधीरे चलता हुआ वहां पहुंच गया। फिर वह केदारनाथ की गोद में जा कर बैठ गया।

केदारनाथ ने उस को अपनी छाती में भींच लिया और कहा, मेरे लिए तो यही पप्पू है। पप्पू को तो मैं ने देखा भी नहीं था। उस से तो जुदा हो गया परंतु इस बच्चे से जुदा न हो सकूंगा, उन्होंने धनराज और आशा से कहा, अब जो होना था सो हो गया। पप्पू की याद में रोरो कर जीवन व्यतीत करने से क्या यह बेहतर नहीं कि तुम दोनों इस बच्चे को ही अपना पुत्र, अपना पप्पू समझो? परिस्थिति से समझौता कर लो बेटा।

आशा ने कहा, आप ने मेरे मुंह की बात छीन ली, पिताजी। इस तरह मुझे जीने का सहारा मिल जाएगा।

लेकिन यह बच्चा है किस का? पिताजी, आप को यह कहां से मिला?

धनराज के प्रश्नों का उत्तर केदारनाथ ने संक्षेप में दे दिया।

धनराज सोचते हुए बोले, सब से पहले हमें पुलिस स्टेशन जाना चाहिए। हो सकता है कि इस के मातापिता ने वहां रपट दर्ज करवाई हो।

आशा, केदारनाथ और धनराज पुलिस थाने गए। नन्हा भी उन के साथ था। वहां जा कर उन्होंने थानेदार को नन्हे के बारे में सब कुछ बता दिया।

एक बच्चा विद्यावती अनाथालय से गुम हो गया था। उस की रपट हमारे पास दर्ज है। शायद यह वही बच्चा हो। थानेदार ने कहा।

धनराज ने कहा, कृपा कर के आप हमारे साथ अनाथालय चलिए, अभी इसी वक्त। हमारे पास कार है, 10 मिनट में वहां पहुंच जाएंगे।

वे सब नन्हे को ले कर विद्यावती अनाथालय गए। मुख्य अधिकारी से मिल कर थानेदार के सामने धनराज और आशा ने नन्हे को विधिवत गोद ले लिया।

फिर वे सब हंसीखुशी घर लौट आए। पुत्र वियोग में दुखी मांबाप को बेटा मिल गया। दादा को पोता मिल गया और नन्हे को सहारा मिल गया।

जब वे बंगले पर पहुंचे तो पप्पी व्याकुल हो कर इधरउधर दौड़ रहा था। नन्हे को देखते ही वह दुम हिलाता हुआ उस के पास गया और उस के पांवों पर गुदगुदी करने लगा। नन्हे ने हंसते हुए उसे गोद में उठा लिया और बंगले में प्रविष्ट हो गया।

धनराज के बंगले में फिर से रोशनी जगमग करने लगी।

नन्हा खिलौना गाड़ी के साथ खेल रहा था और पप्पी भी खुशी में यहांवहां उछल रहा था।

सियासी मियार की रीपोर्ट