जर्मनी का प्रस्तावित कम उत्सर्जन वाला इस्पात मानक भारतीय उद्योग के लिए चुनौती बन सकता है : जीटीआरआई…

नई दिल्ली, )। जर्मनी के प्रस्तावित निम्न उत्सर्जन इस्पात मानक (एलईएसएस) से भारतीय उद्योग के लिए नई चुनौतियां उत्पन्न होने की आशंका है, जो पहले से ही कम निर्यात, अधिक आयात और यूरोप के कार्बन कर से जूझ रहा है। आर्थिक शोध संस्थान जीटीआरआई ने एक रिपोर्ट में यह बात कही।
आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के अनुसार, भारत का इस्पात निर्यात 2021-22 में 31.7 अरब डॉलर से 31.2 प्रतिशत घटकर 2023-24 में 21.8 अरब डॉलर रह गया है। आयात 37 प्रतिशत बढ़कर 17.3 अरब डॉलर से 23.7 अरब डॉलर हो गया है, जिससे भारत शुद्ध आयातक बन गया है। इसमें कहा गया, भारतीय इस्पात उद्योग जर्मनी के नए इस्पात मानक का पालन करने के लिए कानूनी रूप से बाध्य नहीं है, लेकिन इसकी अनदेखी करने से घरेलू निर्यात को नुकसान हो सकता है।
जीटीआरआई के संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा, ‘‘वैश्विक बाजार कम कार्बन वाले उत्पादों की मांग कर रहे हैं। एलईएसएस के साथ तालमेल नहीं बैठाने वाले भारतीय इस्पात उत्पादकों को प्रतिस्पर्धा करने में कठिनाई हो सकती है।’’
एलईएसएस, एक स्वैच्छिक ‘लेबलिंग’ कार्यक्रम है जो इस्पात के पूर्व-उत्पादन और उत्पादन चरणों के दौरान उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड के आधार पर इस्पात को वर्गीकृत करता है।
जीटीआरआई ने कहा कि एलईएसएस को जर्मन स्टील फेडरेशन (डब्ल्यूवी स्टाहल) और संघीय आर्थिक एवं जलवायु संरक्षण मंत्रालय (बीएमडब्ल्यूके) द्वारा विकसित किया गया है। इसे 2024 के अंत में पेश किया जाना है।
एलईएसएस इस्पात उत्पादों को उनके कार्बन और ‘स्क्रैप’ सामग्री के आधार पर पांच श्रेणियों में वर्गीकृत करता है। अल्ट्रा-लो एमिशन क्लास ‘ए’ से लेकर हाई एमिशन क्लास ‘ई’ तक हैं। श्रेणी ‘ए’ में सबसे कम सीओ2 उत्सर्जन होता है, जबकि श्रेणी ‘ई’ में सबसे अधिक, जबकि ‘बी’, ‘सी’ और ‘डी’ इनके बीच में आते हैं।
आर्थिक शोध संस्थान ने कहा, ‘‘यह भारतीय इस्पात उत्पादकों के लिए चुनौतियां खड़ी कर सकता है, क्योंकि उनके अधिकतर इस्पात को निम्न तीन श्रेणी (सी, डी और ई) में वर्गीकृत किए जाने की आशंका है।’’
यह कई देशों द्वारा बेहतर प्रौद्योगिकी और हरित ऊर्जा स्रोतों के इस्तेमाल के जरिये इस्पात विनिर्माण में उत्सर्जन में कटौती करने के लिए उठाए गए कदमों की श्रृंखला में नवीनतम कदम है। यूरोपीय संघ का सीबीएएम (कार्बन सीमा समायोजन तंत्र) या कार्बन कर ऐसा ही एक उपाय है।
यूरोपीय संघ ने सीबीएएम या कार्बन कर लगाने का फैसला किया है जो एक जनवरी 2026 से लागू होगा। हालांकि, इस साल अक्टूबर से इस्पात, सीमेंट, उर्वरक, एल्यूमीनियम और हाइड्रोकार्बन उत्पादों सहित सात कार्बन-गहन क्षेत्रों की घरेलू कंपनियों को यूरोपीय संघ के साथ कार्बन उत्सर्जन के संबंध में डाटा साझा करना होगा।
सियासी मियार की रीपोर्ट
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