पांचवां स्तंभ : साक्षात्कार शैली के बेहतरीन व्यंग्य…

‘व्यंग्य रिपोर्टिंग की पहली किताब पांचवां स्तंभ’ दरअसल नई शैली के व्यंग्यों की यह ऐसी पहली किताब है जो इन दिनों फटाफट लिखा जा रहा। और खटाखट छपकर आ रहे व्यंग्य संग्रहों से बहुत हद तक जुदा है। किताब हर दृष्टि से नयापन लिए हुए है।संपूर्ण विषयवस्तु तीन भागों में वर्गीकृत है, हालांकि सभी खालिस व्यंग्य है। कथ्य और शिल्प की दृष्टि से रचना दर रचना नवीनता के दर्शन होते हैं। टाइप्ड व्यंग्य पढ़ने के आदी पाठकों के लिए पांचवां स्तंभ सर्वथा नवीन अनुभव देने वाली किताब है। व्यंग्य हो या इंटरव्यूज या खबरी किस्से व्यंग्य की धार और रफ्तार कहीं भी कम नहीं होने पाई है। चूंकि जयजीत अकलेचा जी पेशे से पत्रकार है सो रिपोर्टर के हवाले से उन्होंने सिस्टम की आंखों में आंखें डालकर साक्षात्कार किया है। संपूर्ण किताब साक्षात्कार शैली में लिखी व्यंग्य रचनाओं का बेजोड़ नमूना है। द्
व्यंग्यविद कहते हैं व्यंग्यकार हमेशा विपक्ष में बैठता है। बैठना भी चाहिए लेकिन इधर तो व्यंग्यकार पक्ष क्या,विपक्ष के भी विपक्ष में बैठा नजर आता है। एक बात तो माननी कि अकलेचा जी ने जो भी लिखा है कुल्हड़ में गुड़ फोड़ते हुए नहीं बल्कि डंके की चोट पर बाकायदा नाम लेकर लिखा है कि जाओ कल्लो जो करना है। आज व्यंग्य में ऐसी निष्पक्षता और निडरता कम ही देखने को है। व्यंग्यकार ने बिना राग द्वेष सबकी खबर ली है। ‘राजा का दर्पण और दिल की बात’ सिर्फ अपने मन की बात कहते-सुनते राजा पर तीखा प्रहार है तो ‘एक डंडे का फासला’ में आजादी के अमृतकाल में जन और तंत्र के बीच की दूरी का सीमांकन किया है। ‘नो वन किल्ड कोविड पेशेंट’ सिस्टम की नाकामियों पर भूल-चूक सब माफ़ टाइप रचना है।
इंटरव्यूज…में कांग्रेस से मुलाकातों के क्रम में कांग्रेस मुक्त भारत के नारों के बीच व्यंग्यकार याद दिलाता चलता है कि कांग्रेस को भुलाना इतना भी आसान नहीं। ‘लतियाए हुए गैस सिलेंडर से’ साक्षात्कार में खाली और भरे हुए गैस सिलेंडर के हवाले से भर पेट वालों द्वारा भूखों मरते लोगों पर धाक जमाने की पीड़ा है।
सूत्र आधारित कुछ खबरी किस्से में उलटबांसी देखते ही बनती है। चाहे बेशर्म रोड़,अफसरों को मुआवजा देने का फैसला,कर्मचारियों द्वारा काम करो हड़ताल की धमकी हो या फिर आम आदमी को आम बजट समझ आने का किस्सा,समझ लीजिए कि आप रोमांचित हुए बिना न रहेंगे।
कुछ बेहतरीन पंच:
‘जब वर्तमान नपुंसक हो तो भविष्य को पैदा करने की जिम्मेदारी भूत को ही उठानी पड़ती है। ‘(इंटरव्यू… अंतत: कांग्रेस के भूत से) ‘बात एक दर्पण ने शुरू की थी। अब कई दर्पण तक पहुंच गई थी।’ (राजा का दर्पण और दिल की बात)
‘तंत्र और चार पैर अब एक दूसरे के पूरक हो चुके हैं।'(एक डंडे का फासला) ‘बड़े होकर भी छोटे को कब ‘भाई साहब’ कहना है,अपने बड़े वाले रावण इस मामले में ज्यादा ज्ञानी है।'(बड़े वाला रावण)
‘जब आदमी को कोई सुनने वाला नहीं होता है तो वह खुद से बातें करने लगता है। ‘(काबुलीवाला से चंद सवाल) ‘वैसे भी जब आदमी निठल्ला हो जाता है,तो चिंतन में लग जाता है।'(निठल्ली संसद और बापू)
‘लोकतंत्र में डर नहीं विश्वास होना चाहिए।’ (इंटरव्यू…बुलडोजर महाराज से) ‘मतलब सदियां बीत जाती है लेकिन राजनीति नहीं बदलती। हमारे यहां,आपके वहां सब कुछ शेम टू शेम।’ (इंटरव्यू…नीरो की ऐतिहासिक बंसी से)
‘सिंपल बातें ही आजकल बड़ी कॉम्प्लिकेटेड हो गई है।’ (इंटरव्यू…एक राजनीतिक मसखरे से) ‘विधायक की अंतरात्मा पैदा ही होती है नमक हरामी के लिए।’ (इंटरव्यू… विधायक की अंतरात्मा से)
_’धाक तो गरीब पर ही जमाई जाती है। भाव गैस के ऊंचे हो रहे और लात हम गरीब खा रहे।’ (इंटरव्यू… लतियाए हुए गैस सिलेंडर से)
बहरहाल,’जब वर्तमान ठीक न हो और भविष्य नज़र न आ रहा हो,तो अपने भूतपने पर ही प्राउड करना चाहिए।’ ( इंटरव्यू…अंतत: कांग्रेस के भूत से) की तरह इन दिनों व्यंग्य में भी यही स्थिति बनी हुई है लेकिन प्रस्तुत संग्रह पढ़कर लगता है कि अपने वर्तमानपने पर भी प्राउड किया जा सकता है।
पुस्तक का नाम : ‘व्यंग्य रिपोर्टिंग की पहली किताब पांचवां स्तंभ’
लेखक : श्री जयजीत ज्योति अकलेचा
प्रकाशक : मैनड्रेक पब्लिकेशन,भोपाल
मूल्य : 199
समीक्षक : मुकेश राठौर
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