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गोस्वामी तुलसीदासजी को हनुमानजी ने कब और क्यों दिए दर्शन?

गोस्वामी तुलसीदासजी को हनुमानजी ने कब और क्यों दिए दर्शन?

सावन माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म हुआ था। इस बार 11 अगस्त रविवार के दिन उनका 527 वां जन्मदिन मनाया जाएगा। तुलसीदास (1497-1623 ई.) एक हिन्दू संत और कवि थे। तुलसीदासजी ने श्रीराम के साथ ही हनुमानजी के भी दर्शन किए थे। आओ जानते हैं कि उनको हनुमानजी ने कब और क्यों दिए दर्शन?

कुछ लोगों की मान्यता के अनुसार तुलसीदासजी का जन्म संवत 1589 में उत्तर प्रदेश के वर्तमान बांदा जनपद के राजापुर नामक गांव में हुआ था। हालांकि अधिकतर मत 1554 में जन्म होने का संकेत करते हैं। उनका जन्म स्थान कुछ लोग सोरो बताते हैं। कुछ के अनुसार उनका जन्म 1532 ईस्वी में हुआ और सन् 1623 ईस्वी में उनकी मृत्यु हो गई।

तुलसीदास के जन्म को लेकर एक दोहा प्रचलित है।
पंद्रह सै चौवन विषै, कालिंदी के तीर,
सावन सुक्ला सत्तमी, तुलसी धरेउ शरीर।

इनकी मृत्यु के सन्दर्भ में भी एक दोहा प्रचलित है।
संवत् सोलह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यो शरीर।।

  1. एक बार तुलसीदासजी की प्रभु श्रीराम की भक्त के चलते एक मृत व्यक्ति जिंदा हो गया था, जिसकी खबर बादशाह अकबर तक पहुंच गई थी। बादशाह अकबर ने उन्हें अपने दरबार में बंदी बनाकर बुला लिया और कहा कि तुम करिश्मा दिखाओ और मेरी प्रशंसा में ग्रंथ लिखो। तुलसीदाजी ने इसके लिए इनकार तक दिया तब बादशाह ने उन्हें जेल में डालने का आदेश दे दिया। उस वक्त तुलसीदासजी ने हनुमान चालीसा की रचना करके उसका पाठ किया तो हनुमानजी की कृपा से लाखों बंदरों ने अकबर के महल पर हमला कर दिया। बाद में अकबर ने तुलसीदासजी को मुक्त किया और उनसे माफी भी मांगी।
  2. तुलसीदासजी जब चित्रकूट में रहते थे, तब जंगल में शौच करने जाते थे। वहीं एक दिन उन्हें एक प्रेत नजर आया। उस प्रेत ने ही बताया था कि हनुमानजी के दर्शन करना है तो वे कुष्ठी रूप में प्रतिदिन हरिकथा सुनने आते हैं। तुलसीदासजी ने वहीं पर हनुमानजी को पहचान लिया और उनके पैर पकड़ लिए।

अंत में हारकर कुष्ठी रूप में रामकथा सुन रहे हनुमानजी ने तुलसीदासजी को भगवान के दर्शन करवाने का वचन दे दिया। फिर एक दिन मंदाकिनी के तट पर तुलसीदासजी चंदन घिस रहे थे। भगवान बालक रूप में आकर उनसे चंदन मांग-मांगकर लगा रहे थे, तब हनुमानजी ने तोता बनकर यह दोहा पढ़ा- ‘चित्रकूट के घाट पै भई संतनि भीर/ तुलसीदास चंदन घिसे, तिलक देत रघुवीर।’

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