Friday , September 20 2024

ये हैं भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग, जानिए देश की किन जगहों पर हैं स्थित…

ये हैं भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग, जानिए देश की किन जगहों पर हैं स्थित…

सावन मास की शुरुआत हो चुकी है। सावन का महीना भगवान शिव का बहुत प्रिय है। इस महीने में भोलेनाथ और माता पार्वती का विवाह हुआ था। ऐसे में शिवजी की आराधना का ये सबसे उपयुक्त समय होता है। 2 अगस्त को सावन शिवरात्रि है।

सावन के महीने में किसी भी दिन या खासतौर पर सावन शिवरात्रि के मौके पर देश के 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के लिए जा सकते हैं। पूरे महीने में देश के अलग-अलग शहरों में स्थित पूरे 12 ज्योतिर्लिंगों के दर्शन के लिए जा सकते हैं, या समय की कमी हो तो अपने शहर से नजदीक स्थित किसी ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए जाएं। यहां आपको विश्व विख्यात 12 ज्योतिर्लिंगों के नाम और स्थान बताए जा रहे हैं, ताकि सावन में आसानी से भगवान शिव के इन मंदिरों के दर्शन के लिए जा सकें।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग,गुजरात

भगवान शिव का पहला ज्योतिर्लिंग गुजरात के सौराष्ट्र में स्थित है। अरब सागर के तट वेरावल बंदरगाह पर बसे इस शिव मंदिर का नाम सोमनाथ ज्योतिर्लिंग है। ऋग्वेद के मुताबिक, एक बार चंद्र देव को प्रजापति दक्ष ने क्षय रोग का श्राप दिया था। चंद्रमा ने श्राप से मुक्ति पाने के लिए इसी स्थान पर शिवजी की पूजा और तप किया। मान्यता है कि खुद चंद्र देव ने इस स्थान पर ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। चंद्र देव को सोम भी कहते हैं, ऐसे में इस ज्योतिर्लिंग का नाम सोमनाथ पड़ा।

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, आंध्र प्रदेश

देश में दूसरा ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के कृष्णा नदी के तट पर स्थित श्रीशैल पर्वत पर है। इस ज्योतिर्लिंग को श्रीमल्लिकार्जुन नाम से जाना जाता है, जिसे दक्षिण का कैलाश भी कहते हैं।

पौराणिक कथानुसार, जब भगवान शिव और माता पार्वती के दोनों पुत्रों कार्तिकेय जी और गणेश जी के बीच पूरी पृथ्वी के पहले चक्कर लगाने की प्रतियोगिता हुई तो इस प्रतियोगिता में भगवान गणेश बुद्धि से जीत गए। जब कार्तिकेय जी पृथ्वी की परिक्रमा करके लौटे तो गणेश को विजय देख दुखी हुए और माता पिता के चरण स्पर्श कर कैलाश पर्वत छोड़कर क्रौंच पर्वत पर रहने लगे।

माता पार्वती और शिव जी ने उन्हें समझाने के लिए नारद जी को भेजा लेकिन भगवान कार्तिकेय वापस नहीं आए। कोमल हृदय माता पार्वती पुत्र स्नेह में भगवान शिव के साथ क्रौंच पर्वत पहुंचीं लेकिन माता पिता के आगमन की सूचना पर कार्तिकेय जी उस स्थान से कहीं और चले गए। उनके जाने के बाद क्रौंच पर्वत पर भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए, तभी से वे मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से प्रसिद्ध हैं। मल्लिका माता पार्वती का नाम है, जबकि अर्जुन भगवान शंकर को कहा गया।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश के उज्जैन में क्षिप्रा नदी के पास भगवान शिव का तीसरा ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है। यह एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। यहां रोजाना भस्म आरती होती है, जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। मान्यता है कि यहां भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे। पुराणों में कहा गया है कि उज्जैन की स्थापना खुद ब्रह्मा जी ने की थी, जहां भगवान शिव ने दूषण नामक राक्षस का वध किया था और भक्तों के निवेदन पर यहां विराजमान हो गए।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश के दो ज्योतिर्लिंग हैं। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के अलावा मालवा क्षेत्र में नर्मदा नदी के किनारे एक पर्वत पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है जो कि 12 ज्योतिर्लिंगों में चौथे स्थान पर है। ओंकारेश्वर मध्य प्रदेश के खंडवा जिले में नर्मदा नदी के किनारे स्थित है। यह मंदिर जिस स्थान पर बना है, उसका आकार ओम जैसा है।

कथा प्रचलित है कि राजा मन्धाता ने नर्मदा नदी के किनारे पर्वत पर घोर तपस्या कर भगवान शिव को प्रसन्न किया। जब शिवजी प्रकट हुए तो उन से वहीं निवास करने का वरदान मांग लिया। मान्यता है कि अगर श्रद्धालु दूसरे तीर्थों का जल लाकर ओंकारेश्वर बाबा पर अर्पित करते हैं तो उनके सारे तीर्थ पूरे हो गए।

केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तराखंड

उत्तराखंड के चार धामों में से एक केदारनाथ धाम रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। केदारनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह चार धाम और पंच केदार में भी शामिल है। केदारनाथ ज्योतिर्लिंग अलकनंदा और मंदाकिनी नदियों के तट पर केदार चोटी पर स्थित है। मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण पाण्डवों के पौत्र महाराजा जन्मेजय ने कराया था। कुछ साक्ष्य शंकराचार्य द्वारा मंदिर के निर्माण की ओर इशारा करते हैं।

भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र

महाराष्ट्र में तीन ज्योतिर्लिंग स्थित हैं, पहला पुणे से करीब 100 किलोमीटर दूर डाकिनी में सह्याद्रि पर्वत पर बसा है। इसे भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग कहते हैं। इस शिवलिंग का आकार काफी मोटा है, इसलिए इसे मोटेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है।

शिवपुराण में कहा गया है कि कुंभकर्ण के पुत्र भीम जो कि एक राक्षस था, अपने पिता की मृत्यु का बदला भगवान राम से लेना चाहता था। इसके लिए उसने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से विजय होने का वरदान मांगा। वरदान मिलने के बाद वह निरंकुश हो गया और देवताओं को परेशान करने लगा। देवों के आग्रह पर भगवान शिव ने तानाशाह राक्षस भीम से युद्ध किया और उसे राख बना दिया। सभी देवों ने भगवान शिव से उसी स्थान पर विराजमान होने का आग्रह किया, जिस पर शिवजी भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग के तौर पर वहां विराजित हो गए।

विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश के पवित्र वाराणसी में काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग मौजूद है। गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित बाबा विश्वनाथ का यह प्रिय नगर है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने कैलाश छोड़कर काशी को ही स्थाई निवास बना लिया था।

मान्यता है कि माता पार्वती अपने पिता के घर पर निवास कर रही थीं, लेकिन उन्हें वहां बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था। उन्हें एक दिन भगवान शिव से उन्हें अपने घर ले चलने को कहा तो भगवान शिव माता पार्वती को लेकर काशी आ गए और विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में खुद को स्थापित कर लिया।
इस स्थान को सृष्टि स्थली भी कहते हैं। मान्यता है कि भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की कामना ये यहां तपस्या की और शयन के दौरान उनकी नाभि कमल से ब्रह्म उत्पन्न हुए, जिन्होंने संसार की रचना की।

त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र

12 ज्योतिर्लिंगों में से 8वां और महाराष्ट्र का दूसरा ज्योतिर्लिंग नासिक से 30 किलोमीटर दूर पश्चिम में गोदावरी नदी के किनारे स्थित है, जिसे त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। मंदिर के अंदर एक छोटे गड्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग हैं, जो कि ब्रह्मा, विष्णु और शिव के प्रतीक हैं। अन्य ज्योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव विराजित हैं, लेकिन ये एकमात्र स्थान है, जहां त्रिदेव विराजमान हैं। काले पत्थरों से बने इस मंदिर को लेकर मान्यता है कि गौतम ऋषि और गोदावरी की प्रार्थना पर भगवान शिव इसी स्थान पर बस गए थे। इस ज्योतिर्लिंग को त्र्यंबकेश्वर नाम इसलिए मिला क्योंकि इसका अर्थ है तीन नेत्रों वाले, जो कि शिवशंभु हैं।

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, झारखंड

झारखंड के देवघर में बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित है। इस मंदिर को बैद्यनाथ धाम कहा जाता है। इसे रावणेश्वर धाम भी कहा जाता है। मान्यता है कि असुरराज रावण ने हिमालय पर कठोर तपस्या कर शिव जी को प्रसन्न किया और वरदान स्वरूप शिवलिंग रूप में उनके साथ लंका चलकर विराजने को कहा। शिवजी ने वरदान देते हुए एक शर्त रखी कि अगर शिवलिंग को जहां रख देंगे वहीं वह स्थापित हो जाएंगे। लंकापति रावण शिवलिंग को हाथों में लिए जा रहे थे, रास्ते में उन्हें लघुशंका लग गई। पास से गुजर रहे बैजू नाम के ग्वाले को शिवलिंग पकड़ने को बोल रावण लघुशंका के लिए चले गए।

बैजू के भेष में भगवान विष्णु थे, जिन्होंने लीला रची थी। उन्होंने शिवलिंग को उसी स्थान पर रख दिया, इसलिए शिवलिंग को बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग और उस स्थान को रावणेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है।

नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, गुजरात

सोमनाथ के अलावा गुजरात में नागेश्वर ज्योतिर्लिंग भी स्थित है। 12 ज्योतिर्लिंगों में यह दसवें स्थान पर है। बड़ौदा जिले के गोमती द्वारका के पास बसे इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि भगवान शिव की इच्छा से ही इस ज्योतिर्लिंग का नाम नागेश्वर पड़ा। नागेश्वर का अर्थ है, नागों के देवता। दारुका नाम के राक्षस से सुप्रिय नाम के शिव भक्त और अन्य वनवासियों को बचाने के लिए शिव जी दिव्य ज्योति के रूप में एक बिल से प्रकट हुए थे और बाद में ज्योतिर्लिंग के रूप में यहां विराजमान हो गए।

रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग, तमिलनाडु

तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में 11वां ज्योतिर्लिंग स्थित है, जिसे रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग कहते हैं। रामेश्वरम चेन्नई से लगभग सवा चार सौ मील दक्षिण पूर्व में है। मान्यता है कि श्रीराम ने लंका पर आक्रमण करने से पहले समुद्र किनारे रेत से शिवलिंग की स्थापना की थी। तभी भगवान शिव यहां प्रकट हुए और ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए। इसलिए इसे रामेश्वरम का नाम दिया गया।

घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग, महाराष्ट्र

महाराष्ट्र का तीसरा और भगवान शिव का 12वां ज्योतिर्लिंग घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग है जो कि संभाजीनगर के पास दौलताबाद से 11 किलोमीटर दूर स्थित है। इस ज्योतिर्लिंग को घुश्मेश्वर भी कहा जाता है। मंदिर का निर्माण देवी अहिल्याबाई होल्कर ने कराया था।

पुराणों में कथा प्रचलित है कि सुधर्मा नाम का ब्राह्मण पत्नी सुदेहा के साथ देवगिरि पर्वत पर निवास करता था। दोनों को संतान सुख नहीं था, जिस पर सुदेहा ने अपने पति का विवाह छोटी बहन घुष्मा से करा दिया। घुष्मा परम शिव भक्त थी और प्रतिदिन 101 शिवलिंग बनाकर पूजा करके उन्हें कुंड में विसर्जित करती थी।

कुछ समय बाद उसे पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन सुदहा अपनी बहन से ईर्ष्या करने लगी और उसने घुष्मा की संतान की हत्या कर कुंड में शव फेंक दिया।

घुष्मा को ये पता चलने पर वह बहुत दुखी हुई लेकिन रोज की तरह शिव पूजा में तल्लीन रही। भगवान भोलेनाथ ने उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर घुष्मा के पुत्र को दोबारा जीवित कर दिया। घुष्मा ने भगवान शिव से वहीं विराजमान होने का आग्रह किया तो शिवजी घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान हो गए।

सियासी मियार की रीपोर्ट