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नीली छतरी वाली लड़की: संवेदना को गहराई तक झकझोरने वाली कहानियां…

नीली छतरी वाली लड़की: संवेदना को गहराई तक झकझोरने वाली कहानियां…

कहानियां कैसे हमारे आस पास बिखरी होती हैं और कैसे उनमें जीवन के तमाम उतार चढ़ाव, सामाजिक ताने बाने और बदलते वक्त की हकीकत छुपी होती है, यह आपको आलोक यात्री के पहले कहानी संग्रह ‘नीली छतरी वाली लड़की’ की आठ कहानियां पढ़कर साफ हो जाएगा। कहानियों में अगर भाषा का प्रवाह हो, पात्रों और घटनाओं को एक दिलचस्प तरीके से एक सूत्र में पिरोने की कारीगरी हो तो बेशक वह पाठकों को बांध लेती हैं। विरासत में मिली भाषा और साहित्य की समझ आलोक यात्री के भीतर के कहानीकार को समय समय पर सामने लाती है और वह से रा यात्री की परंपरा को आगे बढ़ाते नज़र आते हैं।

आज जब लोगों की पढ़ने की आदत पर सवाल उठने लगे हैं, सोशल मीडिया के चक्रव्यूह में फंसा ज्यादातर पाठक वर्ग फटाफट साहित्य के नशे का शिकार होता जा रहा है, ऐसे में आलोक यात्री की कहानियां लंबी होने के बावजूद आपको बांधने में कामयाब होती हैं। आलोक कहते हैं कि कहानी जैसे विशाल वृक्ष को बोनसाई नहीं होने देना है और कहानी जितना विस्तार मांगती है उसे वहां तक तो ले ही जाना चाहिए। बेशक इसे लेकर अलग अलग राय हो सकती हो लेकिन इस संग्रह में शामिल ज्यादातर कहानियां कहानीकार की इस राय को मजबूत करती हैं।

पहली कहानी ‘तुम बुद्धू हो’ पढ़ते हुए आप कई तरह के एहसास से होकर गुजरेंगे। यह एक बेहद कोमल सी प्रेमकथा का एहसास भी कराती है, साथ ही ग्लैमर की दुनिया की चकाचौंध से प्रभावित नई पीढ़ी की अव्यावहारिक सोच और उसके भयानक नतीजों का संवेदनशील चित्रण भी करती है। अपनी फिगर को लेकर जिस तरह नई लड़कियों में एक ज़िद और सेहत से खिलवाड़ करने का जुनून समीरा उसी की मिसाल है।

वहीं दूसरी कहानी आहट एक पत्रकार के जन सरोकारों और उसके प्रशासनिक रसूख को बताता है। बेशक परेश जैसे चरित्र को गढ़ते हुए आलोक यात्री के मन में उनका पूरा अतीत कई किस्तों में नजर आता है। उनकी तमाम कहानियों में केन्द्रीय पात्र परेश ही है जिसकी दृष्टि बहुत ही गहरी और संवेदनशील है। अगर धेला, आना, पाई को छोड़ दें तो ज्यादातर कहानियों में परेश के वो अनुभव हैं जो समाज के कई रूपों और चरित्रों को सामने लाते हैं। धेला आना पाई मध्यवर्गीय समाज में शादी की चकाचौंध औऱ उसकी तैयारियों को लेकर दम तोड़ते एक परिवार का बहुत व्यावहारिक चित्रण है। यह कहानी बहुत सारे सवाल भी खड़े करती है और दिखावे की संस्कृति के खिलाफ आवाज़ बुलंद करती है। प्रभुदयाल और राम भरोसे के बहाने यह कहानी उस हकीकत को सामने लाती है जो कहीं न कहीं हर मध्यवर्गीय परिवार इस दौर में महसूस करता है।

जिस कहानी के नाम पर इस संग्रह का नाम रखा गया है, वह बेशक एक बेहद संवेदनशील प्रेम कहानी है। आप ज़िंदगी के जिन पड़ावों से गुज़रते हैं, युवावस्था के जिस दौर को आप किसी दुराग्रही संकोच की वजह से महसूस भी नहीं कर पाते, वही संकोच यहां परेश के व्यक्तित्व का हिस्सा है। बरसों बाद भी उसके भीतर बसी शिल्पा उसी शिद्दत के साथ जीती है, एक पूरे एहसास के साथ पच्चीस बरस बाद भी अपने पत्रों और नीली छतरी के रूप में वह जीवंत होती है और उन पंक्तियों में धड़कती है जो वह उसकी पहली और आखिरी कविता होती है।

ऐसी ही एक कहानी का ज़िक्र करना और जरूरी हो जाता है – मुझे बच्चा चाहिए। आलोक यात्री के जीवन में बहुत सी ऐसी घटनाएं हैं जो उन्हें कहानी में उतारने को मजबूर करती हैं। स्कूली दोस्त रोज़ी से बरसों बाद हुई मुलाकात और उसके भीतर बच्चे की दरकार को परेश ने कैसे महसूस किया और इस पूरे घटनाक्रम को भी एक दिलचस्प तरीके से पेश कर दिया, यह एक बांधने वाली शैली में एक प्रवाह के साथ सामने आया है। जहां संवेदना भी है, तड़प भी है और पुराने दिनों के जज़्बाती रिश्ते भी हैं।

दादी का चश्मा और सिलिकॉन वैली जब आप पढ़ेंगे तो वह आज की भौतिकवादी नई पीढ़ी और रिश्तों के खोखलेपन का एहसास दिलाएगी। यह कहानी बुजुर्गों के अपने ही घर में अपमानित होने और उस नई सोच को बेहद संवेदनशील तरीके से सामने लाती है जहां झुर्रियों से भरे चेहरे पर फैली मुस्कराहट भी है, एक उम्मीद भी है और तमाम उपेक्षाओं के बाद भी स्नेह का संसार भी है। वहीं सिलिकॉन वैली तक आते आते आप उस भयानक सच का सामना भी करेंगे जिसका दंश आज के बुजुर्ग झेल रहे हैं।

कैसे वे अपने बच्चों का भविष्य संवारने, उन्हें विदेश भेजने का सपना पूरा करने के लिए गढ़े गए अपने ही चक्रव्यूह में फंस जाते हैं, कैसे वह आखिरी वक्त में खुद को एकदम अकेला पाते हैं। माता पिता आखिरी वक्त तक अपने बच्चों का इंतज़ार करते हैं, लोगों से गर्व के साथ कहते हैं कि वह सिलिकॉन वैली में बड़ा अफसर है, लेकिन पिता के निधन के बाद भी वह न तो उन्हें कंधा देने आता है बल्कि अपने किसी परिचित को नोटों के लिफाफे के साथ भेज देता है। कहानीकार ने इसके सबसे दर्दनाक पहलू को इन शब्दों में किस संवेदनशीलता से पेश किया है, देखिए – ‘अंकल इसमें एक लाख रुपए हैं। पैकेट में फ़ोन नंबर और एड्रेस भी है… सिलिकॉन वैली का… आंटी जी का क्रिमेशन भी ऐसे ही करवा दीजिगा…’।

इसके अलावा एक और कहानी है – सौदागरनी। संग्रह की आठों कहानियां पाठकों के लिए एक रचनात्मक पूंजी की तरह हैं औऱ बेशक आलोक यात्री की दृष्टि और लेखन प्रतिभा का लोहा मनवाती है।

पुस्तक : नीली छतरी वाली लड़की
प्रकाशक : अद्विक पब्लिकेशन, दिल्ली
मूल्य : 190 रुपए

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