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हिन्दी दिवस (14 सितम्बर) पर विशेष : तेजी से पांव पसार रही है हिन्दी..

हिन्दी दिवस (14 सितम्बर) पर विशेष : तेजी से पांव पसार रही है हिन्दी..

-मुकेश तिवारी-

विश्व भर में हिन्दी बोलने वालों की संख्या सौ करोड़ अधिक बताई जाती है। भारत में पांच दर्जन से अधिक क्षेत्रीय बोली एक चौथाई आबादी द्वारा बोली जाती हैं। बीते कुछ सालों में हिन्दी ने भाषा के रूप में अपना दबदबा बनाया है। देश के प्रत्येक क्षेत्र में हिन्दी पहले से कहीं ज्यादा गाहय हो चुकी है। सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में हिन्दी इंटरनेट की दुनिया में अपना परचम लहराने के साथ ही हिन्दी मीडिया ने कुल विज्ञापन बाजार के 70प्रतिशत हिस्से पर अपना दबदबा कायम कर लिया है।
हिन्दी दिवस फिर करीब है और एक बार पुनः हिन्दी भाषा के विकास। स्थिति और उसके बढ़ते राष्ट्रव्यापी प्रभाव पर चर्चा की सालाना परंपरा का सिलसिला शुरू होने वाला है। इसकी अहम वजह है 14सितम्बर 1949 को संविधान सभा ने हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिया था। तभी से हम साल दर साल 14सितम्बर को हिन्दी दिवस के रूप में मनाते आ रहे हैं। विश्व भर में तकरीबन 65करोड लोग हिन्दी बोलते हैं। एक अनुमान के मुताबिक विश्व में हिंदी भाषा जानने समझने वालों की कुल संख्या तकरीबन 90 करोड़ है। हिन्दी भारत की संपर्क भाषा होने के साथ ही अंतरराष्ट्रीय भाषा भी है। जो फ़िजी, मारीशस, सूरीनाम, त्रिनिडाड, आदि लगभग 10 देशों में व्यापक स्तर पर बोली जाती है। वर्तमान में भारत के बाहर 33 देशों में विश्वविद्यालय स्तर पर हिन्दी पढ़ाई जा रही है। ऐसे विदेशी विश्वविद्यालयों की संख्या 150 से अधिक है। जहां हिन्दी के पठन-पाठन और अनुसंधान की समुचित व्यवस्था है।
हिन्दी के समक्ष भले ही अनेक प्रकार की चुनौतियां हो, खास बात यह है कि हिन्दी की ताकत को भारत के सत्ता प्रतिष्ठान के साथ ही कारपोरेट जगत ने भी बिना किसी हिचकिचाहट के स्वीकार कर लिया है। शासकीय कार्यालयों, बैंकों, रेलवे के साथ ही अनेक संस्थाओं में तमाम सारे काम हिन्दी में होने लगे हैं। हिन्दी अधिकारियों अनुवादको एवं आशुलिपिको के पदों पर नियुक्तियो के बहुतेरे अवसर हिन्दी स्नातको हेतु उपलब्ध है। इतिहास, संस्कृति एवं दर्शन की स्तरीय पुस्तके हिन्दी में सहज उपलब्ध है। विदेशों से आकर लोग हिन्दी सीख रहे हैं। ताजा आंकड़ों के अनुसार भारत में हिन्दी जानने वालों की संख्या सौ करोड़ के पारबेहतरीन एक और भारत की विशाल हिन्दी भाषी पट्टी के गरीब गुरबों से उन्हीं की हिंन्दी में वोट मांगना देश के राजनीतिक दलों के कर्ताधर्ताओं की मजबूरी है। दूसरी ओर आज के दौर में कोई भी बहुराष्ट्रीय कंपनी ऐसी नहीं है। जो हिन्दी में इस्तेहार किए बिना भारत में अपना उत्पादन बाजार में बेच सकें। हम देख सकते हैं कि जरूरत के इस्तेहार हिन्दी में आ रहें हैं। घड़ी का इस्तेहार हो या मर्सिडीज। बीएमडब्ल्यू, आड़ी आदि कार का या अंतरराष्ट्रीय एयरलाइंस का सभी के इस्तेहार की भाषा में हिन्दी तेजी से पांव पसार रही है। हिन्दी देश की सर्वाधिक बोली समझी जाने वाली भाषा है। तात्पर्य यह है कि भाषा का सीधा संबंध आजीविका से जुड़ा है। जो भाषा आजीविका प्राप्त कराने में जितनी अधिक सक्षम होगी उसका प्रसार उतना ही अधिक होगा। हकीकत यह है कि अंग्रेजी में इस्तेहार बमुश्किल चार से पांच प्रतिशत ग्राहक तक ही पहुंचते हैं। जिनके भरोसे बाजार नहीं चल सकता। आज हिन्दी मीडिया कुल इस्तेहार बाजार के 70प्रतिशत हिस्से पर कब्जा जमाएं हुए हैं। आज सर्वाधिक टी आर पी वाले कार्यक्रम हिन्दी में है। देश में सबसे बड़ी संख्या में प्रसार वाले समाचार पत्र हिन्दी के है।
भारत में उत्तर से दक्षिण तक और पूर्व से पश्चिम तक के कारोबारी आपसी बातचीत और सौदा करने के लिए हिन्दी भाषा का ही प्रयोग कर रहे हैं। वैसे भी हिन्दी देश के विकास की भाषा तो है ही। राजनीति की प्रमुख भाषा के तौर पर भी स्थापित है। क्यों कि 65प्रतिशत से अधिक सांसद हिन्दी भाषी क्षेत्र से चुनकर आते हैं। इसलिए संसद में हिन्दी का उपयोग बढ़ा है। पांच साल पहले राज्य सभा के अहिदी भाषी सदस्यों ने उपसभापति से अनुरोध किया था कि उनके लिए हिन्दी सीखने की व्यवस्था की जाये। उक्त घटना क्रम दर्शाता है कि दक्षिण सहित भारत के अनेक अहिदी भाषी क्षेत्रों में रहने वालों के विचार हिन्दी को लेकर बदल
गए हैं। घर और बाहर बढ़ती हिन्दी की स्वीकृति का तकरीबन एक हजार साल से जो भाषा उपयोग करते रहे हैं। वह हिन्दी का ही कोई न कोई रुप रहा है। तीर्थयात्री, रोजगार के लिए इधर उधर जाने वाले लोग मार्ग में बातचीत के लिए हिन्दी भाषा का ही प्रयोग करते रहे हैं।
समूचे भारत में चलने वाली बंबइया फिल्मे हिन्दी में बनी। जब दृश्य श्रवण माध्यम के रूप में सिर्फ दूरदर्शन अस्तित्व में था। उस दौर में अंग्रेजी को हिन्दी के बराबर रखा गया था। लेकिन जैसे ही टेलीविजन का निजीकरण हुआ तो अंग्रेजी हाशिए पर चली गई। भारत में उदारीकरण के पहले सिर्फ चार पेज के हिन्दी के समाचार पत्र प्रकाशित होते थे। जो सिनेमाघरों व सरकार के विज्ञापनों पर निर्भर थे। लेकिन आज स्थिति बदल गई है। वर्तमान में देश के प्रथम श्रेणी के चार सर्वाधिक प्रसार संख्या वाले समाचार पत्र हिन्दी के है। और पहले 10 अखबारों में से मात्र एक समाचार पत्र अंग्रेजी का है।
रजिस्टर ॅआफ न्यूज पेपर्स फार इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में पंजीकृत प्रकाशनों में हिन्दी भाषा के पत्र पत्रिकाओं की सबसे ज्यादा है। आज काफी बड़ी संख्या में सैकड़ों समाचार चैनल हिन्दी में 24 घंटे का कार्यक्रम चला रहे हैं। डिस्कवरी, नैट जिओ, एनिमल प्लैनेट, सोनी बीबीसी, हिस्ट्री, टी एल सी, आदि विभिन्न अंतरराष्ट्रीय अंग्रेजी चैनल अपने कार्यक्रमों को डब करके हिन्दी में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। उन्होंने यह भली भांति समझ लिया है कि भारत और भारतीय बाजार में टिके रहने के लिए हिन्दी भाषा का हाथ थामना ज़रुरी है।
सूचना प्रौद्योगिकी के दौर में हिन्दी इंटरनेट की दुनिया में भी अपना परचम लहरा रही है। वर्तमान में ऐसे साॅफटवेयर का विकास हो चुका है जिससे हिन्दी माध्यम से भी कंप्यूटर चलाया जा सकता है। इस साॅफटवेयर के माध्यम से हिन्दी में कमांड देने की सुविधा भी सुलभ है। अब कंप्यूटर के की बोर्ड पर हिन्दी में लिखे बिना उसे बोलकर हिन्दी में टकित किया जा सकता है। एंड्रायड मोबाइल में भी यह सहुलियत उपलब्ध है। आज हिन्दी ने अपने आप को सूचना प्रौद्योगिकी की भाषा के रूप में द्वढता के साथ स्थापित कर लिया है। हिन्दी अपनी इसी ताकत के बलबूते पर निरंतर तेजी से आगे बढ़ती रही है। आत्मबल व जिजीविषा की बदौलत हिन्दी संपूर्ण भारत की संपर्क भाषा है।

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