कविता : लोगों का कद..
-विनोद सिल्ला-

मेरे
आस-पास के
लोगों का कद
हो गया
उनके वास्तविक कद से
कहीं अधिक ऊँचा
विड़ंबना यह भी है
वो नहीं जानते
झुकना भी
इसलिए मैंने ही
करने पड़ेंगे
अपने चौखट-दरवाजे
उनके कद के अनुरूप
ताकि बचाया जा सके
रिश्तों को
दुर्घटनाग्रस्त होने से।।
सियासी मियार की रीपोर्ट