ऑपरेशन सिंदूर में ब्रह्मोस की ताकत देख अब रुस भी भारत से खरीदेगा ब्रह्मोस-एनजी…

मॉस्को, 12 सितंबर । रूस ने संकेत दिए हैं कि वह ब्रह्मोस को अपनी सेना में शामिल कर सकता है। ब्रह्मोस को लेकर शुरू से ही दावा किया जा रहा था कि दुनिया का कोई भी एयर डिफेंस सिस्टम इसे इंटरसेप्ट नहीं कर सकता है और ऑपरेशन सिंदूर के दौरान यह देखा भी गया है, जिसके बाद अब रूस की सेना ब्रह्मोस-एनजी को अपने बेड़े में शामिल करने पर विचार कर रही है।
दरअसल, भारत और रूस की संयुक्त कंपनी अब अपने प्रोडक्शन लाइन को काफी तेजी से विस्तार दे रही है, क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर के बाद कई देशों ने ब्रह्मोस खरीदने के लिए संपर्क किया है, जिससे उत्साहित ब्रह्मोस एयरोस्पेस अब इस मिसाइल को ज्यादा संख्या में बनाने की कोशिश कर रहा है, ताकि ब्रह्मोस बनाने में लागत को कम किया जा सके, जिससे खरीदने वाले देशों की संख्या बढ़े।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक फिलहाल ब्रह्मोस मिसाइल बनाने में काफी खर्च आता है। इसलिए पिछले 25 सालों में सिर्फ 1000 ब्रह्मोस मिसाइलों का ही निर्माण किया गया है यानि एक साल में सिर्फ 25 यूनिट, जिससे ब्रह्मोस का प्रोडक्शन काफी महंगा है, लेकिन अब जबकि इसकी मांग में जबरदस्त उछाल आया है, तो भारत और रूस ने ब्रह्नोस के प्रोडक्शन को बढ़ाने का फैसला किया है। रिपोर्ट के मुताबिक रूस के पास जमा भारतीय रुपये का इस्तेमाल रूस की सरकार ब्रह्मोस के प्रोडक्शन को बढ़ाने के लिए कर सकती है। इससे एक संकेत और मिलता है कि भारत की डिफेंस स्ट्रैटजी अब सिर्फ डिफेंसिव ना होकर अटैकिंग होने वाली है।
ब्रह्मोस एयरोस्पेस के डिप्टी सीईओ ने कहा है कि यह संभव है कि रूस अपनी सेनाओं के लिए भी यह मिसाइल हासिल कर ले। उन्होंने कहा है कि रूसी और भारतीय पक्ष, दोनों ही मिसाइलों की लागत कम करने के लिए काम कर रहे हैं ताकि एक ही समय में ज्यादा से ज्यादा ऑर्डर पूरे किए जा सकें। निर्यात के साथ-साथ अपनी सशस्त्र सेनाओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए, हमें अपनी उत्पादन सुविधाओं को बढ़ाने की जरूरत है।
भारत की इसी बदली हुई स्ट्रैटजी का सबसे बड़ा प्रतीक नेक्स्ट जनरेशन है। ये मौजूदा ब्रह्मोस मिसाइल से काफी हल्का और उससे काफी ज्यादा तेज होगा। भारत के रिटायर्ड जगुआर पायलट ने लिखा है कि अगले साल 2026 में ब्रह्मोस-एनजी का ऑटोनॉमस फ्लाइट टेस्ट शुरू हो सकता है। मौजूदा ब्रह्मोस मिसाइल का वजन करीब 3000 किलो होता है, जबकि ब्रह्मोस मिसाइल के एयरफोर्स वैरिएंट का वजन करीब 2500 किलो है। जबकि इसके मुकाबले ब्रह्मोस-एनजी का वजन 1250 किलो के आसपास होगा, ताकि इसे हल्के लड़ाकू विमानों जैसे एमआईजी-29 और एलसीए तेजस एमके-1ए से भी लॉन्च किया जा सके। हल्का ब्रह्मोस-एनजी भारतीय वायुसेना के लिए क्रांतिकारी साबित होगा, क्योंकि अब छोटे प्लेटफॉर्म भी 300 किमी की दूरी तक सटीक और तेज वार कर सकेंगे। खासकर एईएसए रडार से लैस तेजस जैसे विमान बिना किसी अतिरिक्त देरी के दुश्मन की पहचान कर लक्ष्य पर घातक हमला कर सकेंगे।
सियासी मियार की रीपोर्ट
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