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भारतीय दवा कंपनियों को अमेरिका में टैरिफ से राहत मिलने की संभावना

भारतीय दवा कंपनियों को अमेरिका में टैरिफ से राहत मिलने की संभावना

मुंबई, 04 अक्टूबर । भारतीय दवा कंपनियां अमेरिका की दिग्गज कंपनी फाइजर के नक्शेकदम पर चलकर अमेरिका में दवाओं पर लगने वाले टैरिफ में कटौती के लिए समझौता कर सकती हैं। अमेरिकी सरकार पेटेंट वाली दवाओं के आयात पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगा रही है, जिससे भारतीय कंपनियों को आर्थिक दबाव का सामना करना पड़ सकता है। विश्लेषकों के अनुसार यदि भारतीय कंपनियां अमेरिका में मेडिकेड और मेडिकेयर कार्यक्रमों के तहत दवाओं की कीमतें कम करने पर सहमत होती हैं, तो वे टैरिफ से बच सकती हैं। फाइजर ने अमेरिका में मेडिकेड प्रोग्राम में अपनी दवाओं के दाम अन्य विकसित देशों के स्तर पर कम करने का समझौता किया है, जिससे उसे टैरिफ में राहत मिली है। नुवामा के विश्लेषकों का मानना है कि भारतीय कंपनी सन फार्मास्युटिकल अगर इसी तरह कोई समझौता करती है या अमेरिका में विनिर्माण शुरू करती है, तो वह भी टैरिफ से बच सकती है। सन फार्मास्युटिकल की प्रमुख दवा इलुम्या का अधिकांश राजस्व मेडिकेयर कार्यक्रम से आता है, जो 65 वर्ष या उससे अधिक आयु वाले लोगों के लिए है। मेडिकेयर संघीय स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम है जो बुजुर्गों और कुछ गंभीर बीमारियों से ग्रस्त लोगों को कवर करता है, जबकि मेडिकेड संयुक्त राज्य और राज्य सरकारों का कार्यक्रम है जो कम आय वाले परिवारों को स्वास्थ्य सुरक्षा प्रदान करता है। मेडिकेयर की पात्रता उम्र और विकलांगता पर आधारित होती है, जबकि मेडिकेड आय और परिवार की स्थिति पर निर्भर है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सभी नई दवाओं के लिए ‘सर्वाधिक पसंदीदा देश’ (एमएफएन) के तहत दाम तय करने की नीति लागू की है, जिससे अमेरिकी बाजार में दवाओं की कीमतें कम हो सकती हैं। इस बदलाव से भारतीय कंपनियों के लिए अमेरिकी बाजार में प्रतिस्पर्धा में बने रहने के अवसर बढ़ सकते हैं।

सियासी मियार की रीपोर्ट