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ज़हरीले कफ सिरप कांड: सीबीआई जांच की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल

ज़हरीले कफ सिरप कांड: सीबीआई जांच की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल

नई दिल्ली, 08 अक्टूबर । देश के कई राज्यों में ज़हरीले कफ सिरप के सेवन से कम से कम 14 बच्चों की मौत के सनसनीखेज़ मामले ने गंभीर रूप ले लिया है। इस मामले की निष्पक्ष जाँच और दोषियों पर सख्त कार्रवाई की मांग करते हुए वकील विशाल तिवारी ने उच्चतम न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल की है। याचिका में केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) या एक राष्ट्रीय आयोग से विशेषज्ञ समिति द्वारा जांच कराए जाने की मांग की गई है।

मध्य प्रदेश, राजस्थान और तमिलनाडु जैसे राज्यों को झकझोर देने वाले इस हादसे के बाद, जनता और सामाजिक संगठनों द्वारा न्याय की मांग तेज़ हो गई है। केंद्र सरकार ने हालांकि प्रभावित सिरप पर प्रतिबंध लगा दिया है, लेकिन याचिकाकर्ता ने जांच में लापरवाही बरते जाने की आशंका जताते हुए कठोर कदम उठाने की मांग की है।

सिरप में मानक से 500 गुना अधिक ज़हर
याचिका के अनुसार, कोल्ड्रिफ कफ सिरप की जाँच में डाइएथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) की मात्रा 48.6 प्रतिशत तक पाई गई, जो मानक सीमा से लगभग 500 गुना अधिक है। यह भयावह तथ्य बताता है कि यह रसायन कितनी बड़ी मात्रा में दवा में मिलाया गया था। डीईजी और एथिलीन ग्लाइकॉल (ईजी) जैसे जहरीले रसायन मूल रूप से औद्योगिक उपयोग के लिए होते हैं, लेकिन दवाओं में इनकी मिलावट किडनी फेलियर का कारण बनती है, जिससे बच्चों की मौत हुई है।

सीबीआई या न्यायिक आयोग से एकीकृत जांच की मांग
याचिकाकर्ता विशाल तिवारी ने अदालत से गुहार लगाई है कि मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए इसकी जांच किसी सेवानिवृत्त न्यायाधीश की निगरानी में राष्ट्रीय न्यायिक आयोग या सीबीआई के तहत गठित एक विशेषज्ञ समिति द्वारा कराई जाए। इसके साथ ही, याचिका में विभिन्न राज्यों, जिनमें मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा और राजस्थान शामिल हैं, में दर्ज की गई सभी प्राथमिकियों (एफआईआर) को एक स्थान पर स्थानांतरित कर एकीकृत जाँच करने की मांग की गई है, ताकि इस पूरे षड्यंत्र का खुलासा हो सके।

कंपनियों पर कठोरतम कार्रवाई और नीतिगत बदलाव की ज़रूरत
जनहित याचिका में ज़हरीले सिरप बनाने वाली दोषी कंपनियों पर सख्त कार्रवाई करने की भी मांग की गई है:

लाइसेंस रद्द करना: दोषी कंपनियों के लाइसेंस तत्काल रद्द कर उन्हें बंद किया जाए और उनके खिलाफ आपराधिक मुकदमा चलाया जाए।

उत्पाद वापस मँगाना: बाज़ार से सभी प्रभावित उत्पाद तुरंत वापस मँगाए जाएँ।

ड्रग्स रिकॉल पॉलिसी: भविष्य में ऐसे हादसों को रोकने के लिए एक मज़बूत ‘ड्रग्स रिकॉल पॉलिसी’ (दवा वापसी नीति) बनाई जाए।

इसके अतिरिक्त, याचिका में पीड़ित परिवारों को पर्याप्त मुआवजा दिए जाने की मांग भी की गई है।

मानवाधिकार आयोग और राजनीतिक प्रतिक्रिया
इस बीच, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने भी सोमवार को इस घटना का संज्ञान लिया और मध्य प्रदेश तथा राजस्थान के स्वास्थ्य विभागों के प्रमुख सचिवों को नोटिस जारी किया। इस घटना पर विपक्षी दलों ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया है, जबकि स्वास्थ्य मंत्री ने मामले की गहन जाँच का आश्वासन दिया है। जनता और सामाजिक संगठनों का स्पष्ट मत है कि बच्चों की मौत के लिए जिम्मेदार तंत्र और व्यक्तियों को किसी भी कीमत पर बख्शा नहीं जाना चाहिए।

सियासी मियार की रिपोर्ट