रावण वध कर जब भगवान राम अयोध्या लौटे तब मनी थी पहली दीपावली!
-डॉ. श्रीगोपाल नारसन-

भगवान राम जो तीनों लोकों के स्वामी है उनका घर अयोध्या है या फिर परमधाम, भगवान का घर लौकिक है या अलौकिक!राम चूंकि हम सबके आराध्य है और हमारे देव तथा मर्यादा पुरुषोत्तम है, इसलिए उनका घर सामान्य मनुष्यों की तरह केवल अयोध्या नही हो सकता, वे निश्चित ही परमधाम में वास करते है। अलबत्ता उनका विग्रह अयोध्या के मंदिर में प्रतिष्ठित है। हम यह भी कह सकते है कि राम गए ही कहां थे, जो फिर से आए है। यदि भगवान राम कही गए होते तो रामलला के रूप में उनकी हर समय उपस्थिती न हुई होती। हम यह भी समझना होगा कि भगवान राम को लाने की सामर्थ्य हम मनुष्यों की नही हो सकती। वे तो स्वयं ही कृपा करते है और स्वयं की उपस्थिति का एहसास कराते है। सन 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने विवादित भूमि की बाबत फैसला सुनाते हुए मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया था। साथ ही कोर्ट ने सरकार को मस्जिद निर्माण के लिए अयोध्या में एक बड़ा भूखंड आवंटित करने का भी आदेश भी दिया था। जिससे स्प्ष्ट है कि अयोध्या में मंदिर और मस्जिद दोनो को सम्मान मिला, यही न्याय का तकाज़ा भी था। राम एक ऐसा शब्द है जिसके उच्चारण मात्र से मन मे शांति, सुख, सन्तुष्टि का बोध होता है। ऐसा किसी अन्य शब्द में नही है। क्योंकि राम केवल दशरथनन्दन श्रीराम ही नही है अपितु राम उस परमात्मा का नाम भी है, जिनकी साधना स्वयं रामचंद्र जी भी करते है। यानि राम परमसत्ता है तो एक आदर्श का प्रतिरूप भी है। तभी तो राम हर किसी के रोम रोम में बसा है। वह भी आज से ही नही, बल्कि युगों युगों से। सबुरी राममय हुई तो राम, सबुरी के हो गए और सबुरी के झूठे बेर तक खा लिए। आज सबुरी जैसी आस्था तो कम ही देखने को मिलती है। राम का मंदिर बन गया है, यह उत्साह हर उस व्यक्ति में है जिसके घट में राम है। राम मंदिर मुद्दा कानून की चौखट से होते हुए कानून की ही बदौलत निर्माण के लक्ष्य तक आ गया है। राम मंदिर जितना बड़ा और भव्य बना है, उतना ही राम के भक्तो में हर्ष की अनुभूति हो रही है। बशर्ते इसे राजनीतिक रंग देने से बचाया जा सके। आवश्यक यह है कि हम राम को आत्मसात करे। राम मर्यादा पुरुषोत्तम है तो हम भी राम का आदर्श स्थापित करे। राम के उच्च चरित्र को दर्शाती रामायण हिंदू धर्म की एक प्रमुख आध्यात्मिक धरोहर है परंतु रामायण को बार बार पढ़ने के बावजूद भी उसमें लिखे आध्यात्मिक मूल्यों की धारणा नहीं हो पा रही है। हम राम के नाम रूप पर तो बहस करते रहते हैं लेकिन राम को अपनाने की कभी कौशिश नही करते। दशरथ नन्दन की कथा में, रावण का वध करने के बाद लंका से अयोध्या लौटते समय राम, लक्ष्मण, सीता एवं हनुमान पुष्पक विमान से अयोध्या के पास नंदीग्राम नामक स्थान पर उतरे थे, जहां पर राम की खड़ाऊं रखकर राजा भरत अपना राजपाट चलाते थे। नंदीग्राम में एक दिन रुकने के बाद वे दूसरे दिन अयोध्या पहुंचे थे। जबकि रावण वध यदि दशमी के दिन हुआ था तो उसके दूसरे दिन सीता को अग्नि परीक्षा से गुजरने के बाद अर्थात उन्हें अग्निदेव से वापस मांगने के बाद श्रीराम अयोध्या लौटे थे। यानि वे एकादशी के दिन अयोध्यान की ओर चले थे और रास्ते में वह निषादराज गुह केवट के यहां रुके भी थे। श्रीराम का नंदीग्राम में भव्य स्वागत किया गया था। उस दौरान अयोध्या के सभी आठों मंत्री और राजा दशरथ की तीनों रानियां हाथियों पर सवार होकर नंदीग्राम पहुंचे थे। उनके साथ अयोध्या के आम नागरिक भी नंदीग्रम पहुंचे थे। वाल्मीकि रामायण के युद्धकाण्ड सर्ग 127 के अनुसार अयोध्या के नागरिकों, मंत्रियों और रानियों ने देखा कि श्रीराम पुष्पक विमान से धरती पर उतरे है। उन सबने विमान पर विराजमान श्रीराम के दर्शन किए और वे उन्हें लेकर अयोध्या गए। श्रीराम का जन्म इंस्टीट्यूट ऑफ साइंटिफिक रिसर्च ऑन वेदाज के शोधानुसार श्रीराम का जन्म 5114 ईसा पूर्व हुआ था। जबकि श्रीराम ने रावण का वध 4 दिसंबर 5076 ईसा पूर्व किया था। वे 29वें दिन 2 जनवरी 5075 ईसा पूर्व वापस अयोध्या लौटे थे। अयोध्या लौटने के खुशी में अयोध्यावासियों ने दीपावली मनाई थी। राम वास्तव में परमात्मा ही है जो संगम युग में धरा पर अवतरित हो कर अपनी बिछड़ी हुई सीता यानि सतयुगी आत्मा को रावण यानि विकारों के चंगुल से छुड़ाने आते है। सीता, हर वह आत्मा जो वास्तव में पवित्र है परंतु आज रावण के चंगुल में फँसी होने के कारण संताप झेल रही है। रावण, पतित व विकार युक्त सोच व धारणा ही रावण है जिसमें फँसी हर आत्मा आज विकर्मों के बोझ तले दबती जा रही है। पाँच मुख्य विकार पुरुष के व पाँच विकार स्त्री के ही रावण के दस शीश हैं। हनुमान, वास्तव में धरा पर अवतरित हुए परमात्मा को सर्वप्रथम पहचानने वाली आत्मा ही हनुमान हैं परंतु हर वह आत्मा जो ईश्वर को पहचान दूसरी आत्माओं ( सीता ) को धरा पर आए ईश्वर ( राम ) का संदेश देने के निमित बनती है, वह भी हनुमान की तरह ही है। वानर सेना, साधारण दिखने वाली मनुष्य आत्माएँ ईश्वर ( राम ) को पहचान कर, संस्कार परिवर्तन द्वारा पूरानी दुनियाँ या रावण राज्य ( पतित सोच पर आधारित दुनिया ) को समाप्त करने में राम का साथ देने वाली संसार की 33 करोड़ आत्माएँ ही वानर सेना है। लंका, पुरानी पतित दुनियाँ जहाँ हर कार्य देहभान में किया जाता है, वही रावण नगरी लंका है। आज हमें इसी सत्यता को आत्मसात कर विकर्मों को त्याग कर राम की तरह पवित्र बनना है और अपनी अंतरात्मा की ज्योति को ईश्वरीय याद से प्रज्ज्वलित करना है।
(लेखक आध्यात्मिक चिंतक व वरिष्ठ पत्रकार है)
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