माला में 108 दानों का महत्व..

108 में से अंक एक उस ईश्वर का प्रतीक है जिसमें ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों देवता समाहित हैं। इनमें कार्य रूप में भेद है परन्तु ये तीनों एक ही हैं। 0 (शून्य) निर्गुण निराकार ब्रह्म का प्रतीक है। अंक 8 में पूरी प्रकृति समाहित है। श्रीमद्भागवत महापुराण के अनुसार पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार ये आठ भगवान की प्रकृति हैं। अंक शास्त्र के अनुसार 1 से लेकर 9 तक के अंक नवग्रहों के प्रतीक हैं। 108 (1$0$8= 9) द्वारा मनुष्य जीवन में सांसारिक वस्तुओं की प्राप्ति, ईश्वर का दर्शन व ब्रह्म तत्व की अनुभूति कर सकता है। मनुष्य की सांसों की संख्या के आधार पर 108 दानों की माला स्वीकृत की गई है। 24 घंटों में एक व्यक्ति 21600 बार सांस लेता है। हमारे 12 घंटे दैनिक कार्य में व्यय हो जाते हैं और शेष 12 घंटे देव आराधना के लिए बचते हैं।
अर्थात 10800 सांसों का उपयोग अपने इष्टदेव के स्मरण के लिए करना चाहिए। लेकिन इतना समय देना हम सभी के लिए संभव नहीं है। इसलिए इस संख्या में से अंतिम दो शून्य हटाकर शेष 108 सांस में ही प्रभु स्मरण की सुविधा आचार्यों ने प्रदान किया। दूसरी मान्यता के अनुसार एक वर्ष में सूर्य दो लाख 16 हजार कलाएं बदलता है। सूर्य प्रत्येक छह महीने उत्तरायण और दक्षिणायन रहता है। इस प्रकार छह महीने में सूर्य की कुल कलाएं 108000 बनती हैं। अंतिम तीन शून्य हटने पर 108 संख्या बचती है। इसलिए माला जप में 108 दानें सूर्य की एक-एक कला के प्रतीक हैं। ज्योतिष शास्त्र इन्हें 12 राशियों और 9 ग्रहों से जोड़कर देखता है। 12 राशियों व 9 ग्रहों का गुणनफल 108 होता है। अर्थात कहा जा सकता है कि 108 अंक संपूर्ण जगत की गति का प्रतिनिधित्व करता है। ऋषियों की एक और मान्यता 27 नक्षत्रों की खोज पर आधारित है। प्रत्येक नक्षत्र के चार चरण होते हैं। 27 में 4 का गुणा किया जाय तो गुणनफल 108 ही होता है। जो परम पवित्र माना जाता है। इसीलिए माला के दानों की संख्या 108 रखी गई है।
सियासी मियार की रीपोर्ट
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