चुम्बक की रोचक कहानी.

हमारे दैनिक जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने वाले चंुबक की कहानी काफी रोचक है। पौने तीन हजार साल पहले मैगनीशिया में मिलने के कारण इसका नाम मैगनेट पड़ा। इसकी खोज ने समुद्री यात्राओं से लेकर दैिनक जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन किए। धरती भी एक विशाल चुंबक की तरह ही काम करती है। चुंबक की रोचक यात्रा के बारे में बता रहे हैं हम…
वास्तव में लोहे के एक अयस्क को चुम्बक कहा जाता है। अंग्रेजी में मैग्नेटाइट कहते हैं। चूंकि यह सबसे पहले एशिया माइनर के मैगनीसिया नामक जगह पर आज से लगभग 2800 वर्ष पूर्व प्राप्त हुआ था। काले रंग के इस पत्थर में लोहे को अपनी ओर खींचने का गुण था। इस पत्थर को लोडस्टोन कहा जाता है। मैगनीसिया में पाए जाने से इसे मैगनेट नाम दिया गया। आज इसे मैग्नेटाइट कहा जाता है।
प्रयोगों से जाना जा सकता है कि चुम्बक को लोहे के कणों पर रखने पर ये इससे चिपक जाते हैं। कहीं पर ये अधिक तो कहीं पर कम मात्रा में चिपकते हैं। कुछ स्थान ऐसा भी होता है जहां लौहकण बिल्कुल भी नहीं चिपकते। जिस स्थान पर लौहकण चिपकते हैं, उस स्थान को चुम्बकीय ध्रुव के नाम से पुकारा गया तथा न चिपकने वाले भाग को उदासीन क्षेत्र। बाद में प्रयोगों से सिद्ध हुआ कि इस पत्थर को यदि किसी धागे से बांधकर लटका दिया जाए तो इसके दो सिरे सदा ही उत्तर-दक्षिण दिशा में ठहरते हैं। इन्हें उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव नाम दिया गया। समुद्री यात्राओं में चीन के लोगों ने इसका उपयोग दिशा जानने के लिए 13वीं सदी में ही शुरू कर दिया था।
प्रयोगों और अनुसंधानों से यह जाना गया कि यदि दो पत्थरों (चुंबक) के उत्तरी व दक्षिणी ध्रुवों को पास-पास लाएं, तो उनमें आकर्षण होगा, लेकिन इसके दो उत्तरी ध्रुवों या दो दक्षिणी ध्रुवों में प्रतिकर्षण होता है। जो यह सिद्ध करता है कि असमान ध्रुवों में आपस में आकर्षण और समान ध्रुवों में प्रतिकर्षण होता है। कृत्रिम चुंबक बनाने की विधि बड़ी मनोरंजक है। यदि लोडस्टोन को लोहे की छड़ के एक सिरे से दूसरे सिरे तक बहुत बार रगड़ा जाए तो लोहे की छड़ भी चुम्बक बन जाती है। यह कृत्रिम चुम्बक विधि बहुत समय तक प्रचलित रही।
धीरे-धीरे चुम्बकत्व के क्षेत्र में चुम्बक बनाने की नई विधि निकाली गई। वैज्ञानिकों के अनुसार लोहे की छड़ पर तांबे का तार लपेटकर तार में विद्युत-धारा प्रवाहित करने पर यह चुंबक बन जाता है। ऐसे चुंबकों को इलेक्ट्रोमैग्नेट कहते हैं। इसका प्रयोग विद्युत-मोटरों में होता है। सन् 1600 में सर विलियम गिलबर्ट ने नया आविष्कार किया। उनके अनुसार हमारी धरती एक विशाल चुम्बक की तरह काम करती है। इसके भी उत्तर-दक्षिण ध्रुव हैं। इसी कारण स्वतंत्रतापूर्वक लटका हुआ चुम्बक सदा ही उत्तर-दक्षिण दिशा में ठहरता है। बाद में कुछ और महत्वपूर्ण आविष्कार इस संबंध में हुए। लेकिन 19वीं सदी की खोज बहुत महत्वपूर्ण थी। इसी के आधार पर ही आज के वैज्ञानिकों ने बताया कि परमाणुओं में भ्रमण करने वाले इलेक्ट्राॅनों द्वारा ही चुंबकीय गुण पैदा होते हैं। हर पदार्थ परमाणुओं से बना है और प्रत्येक परमाणु में केंद्रीय नाभिक के चारों और इलेक्ट्रॉन विभिन्न कक्षाओं में घूमते रहते हैं। इलेक्ट्रॉनों पर ऋणात्मक आवेश होता है।
सबसे अधिक चुम्बकत्व लोहे, कोबाल्ट और निकल धातुओं में होता है। इन्हीं धातुओं को चुंबक बनाने में काम में लिया जाता है। इनमें से भी सर्वाधिक चुंबक लोहे से ही बनाए जाते हैं। इसका कारण इसका सुलभ और सस्ता होना है। चुंबक आमतौर पर स्टील से बनाए जाते हैं। हमारे सामान्य जीवन में चुंबक का बहुत महत्व व उपयोग है। इससे दिक्सूचक बनाए जाते हैं, जो समुद्री यात्रा में दिशा ज्ञान देते हैं। रेडियो, टेलीविजन, टेलीफोन, माइक्रोफोन एवं अन्य दूसरे विद्युत यंत्रों व इलेक्ट्रोनिक यंत्रों में भी चुम्बक प्रयुक्त किया जाता है। चुंबक जनरेटर्स और मोटरों में काम आता है।
सियासी मियार की रीपोर्ट
Siyasi Miyar | News & information Portal Latest News & Information Portal