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संवाद मतभेदों को हल करने का ‘एकमात्र रास्ता’ : भारत…

संवाद मतभेदों को हल करने का ‘एकमात्र रास्ता’ : भारत…

संयुक्त राष्ट्र/नई दिल्ली, 26 फरवरी। भारत ने यूक्रेन पर रूस के ‘आक्रमण’ की ‘कड़े शब्दों में निंदा’ करने वाले प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में शुक्रवार को हुए मतदान में हिस्सा नहीं लिया। यूएनएससी में यह प्रस्ताव अमेरिका की तरफ से पेश किया गया था। भारत ने युद्ध तत्काल समाप्त करने की मांग करते हुए कहा कि मतभेदों को दूर करने के लिए बातचीत ही ‘एकमात्र रास्ता’ है।

15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में शुक्रवार दोपहर अमेरिका और अल्बानिया द्वारा पेश मसौदा प्रस्ताव पर मतदान हुआ। इसे ऑस्ट्रेलिया, एस्तोनिया, फिनलैंड, जॉर्जिया, जर्मनी, इटली सहित संयुक्त राष्ट्र के 67 सदस्य देशों के एक अंतरक्षेत्रीय समूह ने सह प्रस्तावित किया था। भारत, चीन और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) मतदान से दूर रहे। वहीं, अल्बानिया, ब्राजील, फ्रांस, गेबोन, घाना, आयरलैंड, केन्या, मैक्सिको, नॉर्वे, ब्रिटेन और अमेरिका सहित कुल 11 देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया।

यह प्रस्ताव यूएनएससी में पारित नहीं हो सका, क्योंकि सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य और फरवरी माह के अध्यक्ष रूस ने इस पर वीटो किया। प्रस्ताव में यूक्रेन पर हमले के रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के फैसले के मद्देनजर सुरक्षा परिषद के स्थायी एवं वीटो संपन्न सदस्य रूस को वैश्विक मंच पर अलग-थलग करने की मांग की गई थी।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने मतदान पर भारत का पक्ष रखते हुए कहा, ‘‘यूक्रेन के हालिया घटनाक्रम से भारत बहुत विचलित है। हम हिंसा और युद्ध को तत्काल रोकने की दिशा में हर संभव प्रयास करने की अपील करते हैं।’’ उन्होंने कहा कि भारत यूक्रेन में भारतीय छात्रों सहित भारतीय समुदाय की सुरक्षा को लेकर ‘‘बेहद चिंतित’’ है। तिरुमूर्ति ने कहा कि कोई भी हल लोगों की जिंदगियों की कीमत पर नहीं निकल सकता।

स्थायी प्रतिनिधि ने कहा, ‘‘मतभेदों को दूर करने के लिए बातचीत ही एकमात्र रास्ता है। यह खेद की बात है कि कूटनीति का रास्ता त्याग दिया गया। हमें उस पर लौटना चाहिए और इन्हीं कारणों से भारत ने इस प्रस्ताव पर मतदान से दूरी बनाने का निर्णय किया है।’’

तिरुमूर्ति ने कहा कि समकालीन वैश्विक व्यवस्था संयुक्त राष्ट्र चार्टर, अंतरराष्ट्रीय कानून और देशों की संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता के सम्मान पर आधारित है। उन्होंने कहा, ‘‘सभी सदस्य देशों को रचनात्मक रास्ता तलाश करने के लिए इन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।’’ भारत अब तक यूक्रेन के खिलाफ रूस की कार्रवाई की निंदा करने से बचता रहा है।

सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य रूस ने अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल किया और प्रस्ताव नाकाम हो गया, जैसा कि अपेक्षित था, लेकिन पश्चिमी देशों ने कहा कि प्रस्ताव का मकसद यह दर्शाना है कि यूक्रेन पर हमले को लेकर मॉस्को वैश्विक मंच पर अलग-थलग पड़ गया है।

चूंकि, रूस के साथ भारत की ऐतिहासिक दोस्ती रही है, जो समय की कसौटी पर खरी उतरी है, ऐसे में सभी की निगाहें इस बात पर टिकी हुई थीं कि भारत इस प्रस्ताव पर कैसे मतदान करता है। यही नहीं, अमेरिका के साथ भारत की सामरिक और रक्षा साझेदारी भी पिछले डेढ़ दशक में अभूतपूर्व गति से बढ़ी है।

यूएनएससी की बैठक दो घंटे की देरी से शुरू हुई और मसौदा प्रस्ताव की भाषा में कुछ बदलाव किए गए, जिसे अंतत: मतदान के लिए रखा गया। जानकारों के मुताबिक, मसौदा प्रस्ताव की भाषा थोड़ी कमजोर की गई थी, ताकि इस पर ज्यादा से ज्यादा देशों का समर्थन जुटाया जा सके।

यूक्रेन पर रूस की सैन्य कार्रवाई की निंदा करने वाले इस प्रस्ताव में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमा में पूर्वी यूरोपीय देश की संप्रभुता, स्वतंत्रता, एकता और क्षेत्रीय अखंडता के प्रति यूएनएससी की प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई है।

एक अन्य स्थायी सदस्य चीन ने प्रस्ताव पर हुए मतदान में हिस्सा नहीं लिया। उसने अपनी वीटो शक्ति का भी इस्तेमाल नहीं किया। मसौदा प्रत्साव के पुराने संस्करण में यूक्रेन में विशेष सैन्य अभियान चलाने की रूसी राष्ट्रपति की घोषणा की निंदा करने वाली भाषा शामिल थी।

सुरक्षा परिषद में मसौदा प्रस्ताव के जिस अंतिम संस्करण को मतदान के लिए पेश किया गया, उसमें रूसी राष्ट्रपति (पुतिन) के साथ-साथ संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अध्याय-7 का जिक्र हटा दिया गया था, जो प्रतिबंधों और बल के इस्तेमाल के अधिकारों की व्याख्या करता है।

अंतिम संस्करण में रूसी आक्रमण के लिए इस्तेमाल ‘निंदा’ शब्द को भी हटा दिया गया था और इसकी जगह ‘अपमानजनक’ शब्द शामिल किया गया था।

इसमें कहा गया था कि यह प्रस्ताव यूक्रेन के खिलाफ रूस के आक्रमण का ‘सबसे कड़े शब्दों में विरोध करता है’ और मांग करता है कि रूस को ‘यूक्रेन के खिलाफ बल का इस्तेमाल फौरन रोक देना चाहिए और उसे संयुक्त राष्ट्र के किसी भी सदस्य देश के खिलाफ किसी भी गैरकानूनी कदम या बल के प्रयोग से बचना चाहिए।’

प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि रूस ‘यूक्रेन की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर से अपने सभी सैन्य बलों को तुरंत, पूरी तरह से और बिना शर्त के वापस बुला ले।’

संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने प्रस्ताव पर मतदान से पहले सुरक्षा परिषद में कहा कि यह एक ‘साधारण प्रस्ताव’ है और जो देश इस पर मतदान नहीं करते हैं, वे रूस की बिना उकसावे वाली आक्रामक कार्रवाई के प्रति समर्थन जताते हैं।

प्रस्ताव में कहा गया है कि मॉस्को ‘यूक्रेन के दोनेत्स्क और लुहान्स्क जैसे क्षेत्रों की स्थिति से संबंधित अपने फैसले को फौरन बिना किसी शर्त के उलट दे।’

इसमें संबंधित पक्षों से मिन्स्क समझौतों का पालन करने और उनके पूर्ण कार्यान्वयन की दिशा में नॉरमंडी प्रारूप और त्रिपक्षीय संपर्क समूह सहित प्रासंगिक अंतरराष्ट्रीय ढांचे में रचनात्मक रूप से काम करने का आह्वान करता है।

अमेरिका ने 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा में रूस के खिलाफ कार्रवाई करने और उसे जवाबदेह ठहराने का संकल्प लिया, जहां कोई वीटो शक्ति नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में रूस के राजदूत वसीली नेबेंजिया ने ‘उन देशों का आभार जताया, जिन्होंने इस मसौदा प्रस्ताव का समर्थन नहीं किया।’ उन्होंने कहा कि रूस ने ‘रूस विरोधी और यूक्रेन विरोधी’ मसौदा प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया है।

वहीं, यूएन में यूक्रेन के दूत सर्गेई किस्लिट्स्या ने नतीजों पर निराशा जताते हुए कहा, “मैं दुखी हूं। कुछ मुट्ठी भर देश ऐेसे हैं, जो अभी भी युद्ध को बर्दाश्त कर रहे हैं।”

वहीं, यूएन महासचिव एंतोनियो गुतारेस ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र का जन्म एक युद्ध से युद्ध को खत्म करने के लिए हुआ था और ‘आज यह उद्देश्य प्राप्त नहीं किया जा सका।’

सियासी मीयार की रिपोर्ट