भारत की नौकरशाही पर प्रकाश डालेगी नई किताब : जितेंद्र सिंह…

नई दिल्ली, । केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने उम्मीद जताई कि भारत में नौकरशाही के कामकाज पर आधारित नई किताब ‘डिकोडिंग इंडियन बाबूडम’ विचारोत्तेजक होगी। उन्होंने लेखक की इस बात से सहमति जताई कि एक बड़े प्रशासन की किसी भी प्रणाली को लोगों की भलाई के लिए काम करना चाहिए। सिंह ने किताब की प्रस्तावना में लिखा, ‘‘मैं पुस्तक की सामग्री का समर्थन या पुष्टि नहीं कर सकता, लेकिन मुझे यकीन है कि लेखक जो कहना चाहता है, वह हकीकत में ध्यान देने और विचार करने योग्य होगा।’’
पत्रकार अश्विनी श्रीवास्तव द्वारा लिखी गई 168 पन्नों की यह किताब भारतीय नौकरशाही के विभिन्न पहलुओं को छूती है। इसमें दुनिया की सबसे बड़ी नागरिक प्रशासन प्रणालियों में से एक भारतीय नौकरशाही में मौजूद खामियों के बारे में भी बताया गया है। यह किताब नौकरशाही के बारे में लोगों की धारणा, भ्रष्टाचार की मौजूदगी, नवाचार की कमी और व्यवस्था में सुधार की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालती है। लेखक ने ‘सुशासन के लिए 15 सूत्र’ भी सुझाए हैं। किताब में कई पूर्व और मौजूदा नौकरशाहों ने नौकरशाही की कार्य प्रणाली के बारे में अपने विचार साझा किए हैं।
भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) के 1987 बैच के अधिकारी शैलजा रे बरुआ ने कहा, ‘लेखक के पास ‘बाबूगिरी’ को करीब से देखने का वर्षों का अनुभव है। वह निश्चित रूप से इस बात पर अधिक प्रकाश डालने में सक्षम होंगे कि भारतीय प्रशासन का यह इस्पात सरीखा मजबूत ढांचा देश के नागरिकों की उम्मीदों पर खरा उतरा है या नहीं।’’
बरुआ ने कहा, ‘‘इस तरह का विश्लेषण… बेहद उपयोगी साबित होगा, क्योंकि यह नीति निर्माताओं के साथ-साथ इनका कार्यान्वयन करने वाले लोगों को और सुधार करने के साथ ही भविष्य का रोडमैप तैयार करने के लिए एक ईमानदार एवं निष्पक्ष प्रतिक्रिया प्रदान करता है।’’
वहीं, 1985 बैच के पश्चिम बंगाल कैडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी संजीव चोपड़ा ने किताब के विषय पर टिप्पणी करते हुए ‘बाबू’ शब्द के इस्तेमाल पर आपत्ति जताई।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं नौकरशाही के लिए ‘बाबू’ शब्द के इस्तेमाल को लेकर सहज नहीं हूं, क्योंकि हमारी खुद की छवि काफी अलग है।’’
चोपड़ा ने कहा, ‘‘हमें लगता है कि हम पेशेवर प्रशासक हैं। हम समावेशी, एकीकृत और एकजुट भारत बनाने के संवैधानिक लक्ष्य को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हैं।’’
मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी के पूर्व निदेशक चोपड़ा ने कहा, ‘‘हम सारी चीजों को एक संकीर्ण क्षेत्रीय परिप्रेक्ष्य से नहीं, बल्कि एक समग्र दृष्टिकोण से देखते हैं, जो क्षेत्रीय प्रशासकों के साथ-साथ हमारे जैसे वि विध देश के लिए नीति निर्माण में जरूरी इनपुट प्रदान करने के लिहाज से भी अहम है।’’
वहीं, 1962 बैच के गुजरात कैडर के आईएएस अधिकारी जी सुंदरम ने कहा कि सदस्यों की उच्च योग्यता के बावजूद नौकरशाही ने राजनीतिक दबाव के चलते अपनी बौद्धिक धार खो दी है, जो ‘पार्टी आधारित लोकतंत्र में स्वाभाविक है।’
उन्होंने कहा, ‘‘जनता की मांगें भी जटिल हैं। इसलिए पुरानी प्रक्रियाओं का पालन करने का कोई मतलब नहीं है। यही नहीं, नौकरशाही अब संसद और विधानसभाओं के प्रति जवाबदेह भी है।’’
सियासी मियार की रिपोर्ट
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