Saturday , September 21 2024

कुदरत के अनछुए सौंदर्य का खजाना है दादर नागर हवेली…

कुदरत के अनछुए सौंदर्य का खजाना है दादर नागर हवेली…

भारत के पर्यटन मानचित्र में भले ही देश के सबसे छोटे राज्यों में शुमार दादर नागर हवेली का ज्यादा जिक्र न हो। मगर कभी पुर्तगाली बस्ती रहे इस इलाके में प्राकृितक सौंदर्य का खजाना निर्दोष रूप में विद्यमान है। शुद्ध हवा, पुर्तगाली वास्तुशास्त्र, अािदवासी जनजीवन की झांकी,  दुर्लभ वन्यजीव तथा समुद्री जल में रोमांच के खेल पर्यटकों को मुरीद बना देते हैं। दादर नागर हवेली की यात्रा करा रही हैं हम…

दादर नागर हवेली का नाम देश के सात केंद्र शासित राज्यों में से एक है। देश के नक्शे में दादर नागर हवेली की स्थिति दो बड़े राज्यों-गुजरात और महाराष्ट्र के बीच एक सैंडविच की तरह दिखती है। क्षेत्रफल के लिहाज से भी यह राज्य इतना छोटा है कि यहां की हलचल देश के अन्य कोनों तक कम ही पहुंच पाती है। इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि दादर नागर हवेली में लोगों के बसने के लिए महज 500 वर्ग किलोमीटर जमीन है। लक्षद्वीप के बाद यह देश का दूसरा सबसे छोटा राज्य है। लेकिन जितना छोटा यह प्रदेश है, अपनी संस्कृति, इतिहास और भूगोल में यह उतना ही संपन्न है। दादर नागर हवेली पर्यटन के लिहाज से अछूता नहीं है, फिर भी लोग इसके बारे में कम ही जानते हैं। यह उन पर्यटकों के लिए है जो घूमने के लिए नई जगहों की खोज में लगे रहते हैं। जिन्हें प्रकृति के असली नैसर्गिक सौंदर्य की तलाश और भीड़ से दूर सुकून के साथ छुट्टियां बिताने की ख्वाहिश है, उनके लिए दादर नागर हवेली सटीक है।

परंपरागत आदिवासी नृत्य

हरी-भरी शांत सुरमयी जगह, बल खाती नदियां, साफ-सुथरा पश्चिमी घाट, सफेद निर्मल झरने, जंगल और जंगल में मंगल करते जंगली जानवर यहां खूब देखने को मिलेंगे। नदी इस प्रदेश को दो हिस्सों में बांटती है- पश्चिमी और पूर्वी घाट। यहां के मूल निवासी आदिवासी हैं। इनमें जनजातियों के अलावा कुछ आबादी कोंकण के लोगों की भी है। जनजातीय संस्कृति, उनके रहन-सहन, पहनावा, बोली को नजदीक से जानने का मौका मिलता है यहां पहुंचकर। फसल बोने से पहले और फसल काटने के बाद आदिवासी संस्कृति में ग्राम देवता और खली पूजा की परंपरा है जो देखने में बेहद अद्भुेत है।

सिलवासा

सिलवासा दादर नागर हवेली की राजधानी है। सिलवासा नाम पुर्तगालियों ने रखा है। पुर्तगाली में सिलवा शब्द का अर्थ लकड़ी होता है। जब आप सिलवासा की सड़कों पर निकलेंगे तो आपको चारों ओर ऊंचे पेड़ ही नजर आएंगे। प्रकृति का बेहतरीन संगम और हवा में शुद्धता आपको महसूस होगी। इतिहास के पन्नों से प्यार करने वाले लोगों को यहां आवर लेडी ऑफ पेटी का सदियों पुराना चर्च और बिंद्रबिन में ताड़केश्वर महादेव मंदिर के अवशेष देखने को मिलेंगे।

सिलवासा:-

ट्राइबल म्यूजियम:- सिलवासा के ट्राइबल म्यूजियम में आपको बेहतरीन मास्क, म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स, फिशिंग गैजेट्स, परंपरागत आभूषण और लाइफ साइज स्टैच्यूज देखने का मौका मिलेगा। यहां से आप वरली पेंटिंग, बैंबू क्राफ्ट और केले के पत्ते की चटाइयां खरीद सकते हैं, जो आदिवासियों द्वारा बनाए गए होते हैं। पिपरिया स्थित हिरवा वन में आपको बल खाते पानी के फव्वारे, फूलों की घाटी से भरा पार्क दिखेगा। हिरवा वन एक आदिवासी देवता के नाम पर रखा गया है।

लायन सफारी वाइल्डलाइफ पार्क:- यहां आप सफारी कर सकते हैं, जो खनवेल सड़क से करीब 9 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह देश के उन गिने- चुने सफारी में से एक है, जहां आपको जंगलों में बड़ी आसानी से शेर घूमते दिख जाएंगे। कुछ आदिवासी लोग इस सेंचुरी में रहते भी हैं।

वाण गंगा झील:- इस झील का नजारा अद्भुेत है। चारों तरफ झील है और बीच में किसी सपनों के द्वीप की भांति एक पार्क है। पार्क तक पहुंचने के लिए पैडल बोटिंग का सफर बेहद सुहाना है।

वनविहार:- पश्चिमी घाट में स्थित ये झील नैसर्गिक सौन्दर्य से भरी हुई है। वन विहार में कुछ कॉटेज भी हैं जो एक बेहतरीन टूरिस्ट स्पॉट हैं।

नैसर्गिक सौंदर्य:-

दूधानी:- सिलवासा की हरी-भरी पहाडि़यों के किनारे जाती सड़क से आप दूधानी लेक तक पहुंचते हैं। यह झील सिलवासा से करीब एक घंटे की दूरी पर है। यहां आप शिकारा किराए पर लेकर इस झील की खूबसूरती का आनंद उठा सकते हैं। यह जगह वॉटर स्पोट्र्स  प्रेमियों के काम की है। यहां वॉटर स्पोट्र्स  होते हैं, जिसमें एक्वा बाइक, जेट स्काई, बंपर बोट और स्पीड बोट मुख्य हैं। यहां आप कॉटेज में रात बिता सकते हैं या चाहें तो रात में सिलवासा लौट सकते हैं। मांसाहारी भोजन खाने वालों को यहां स्वादिष्ट समुद्री भोजन का लुत्फ जरूर उठाना चाहिए।

लुहारी:- सिलवासा से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित लुहारी उनके लिए है जो प्रकृति के समीप रहने की ख्वाहिश रखते हैं। यहां के रिजार्ट में मचान स्टाइल वाले कॉटेज हैं, जो जंगल के पास बने हुए हैं। एडवेंचर प्रेमियों के लिए पास के वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में ट्रेकिंग और कैम्प का आयोजन किया जाता है।

खनवेल:- सिलवासा से दक्षिण की ओर 20 किलोमीटर दूर खनवेल हरियाली से लिपटा हुआ है। सकरतोद नदी यहां कलकल बहती रहती है और पास के जंगल में आपको कई वन्यजीव दिख सकते हैं। सिलवासा से खनवेल तक का सफर बेहद रोमांचक है। रास्ते में आपको खूबसूरत पेड़ और आदिवासियों के गांव भी मिलेंगे।

सतमालिया वाइल्ड लाइफ सेंचुरी:-

सतमालिया:- खनवेल जाते समय रास्ते में सतमालिया मिलेगा, जहां एक वाइल्ड लाइफ सेंचुरी है। सांभर, चीतल, कठफोड़वा, मोर जैसे वन्यजीव यहां आसानी से दिख जाते हैं। यहां घड़ी टावर से आपको सेंचुरी और मधुबन डैम का विहंगम दृश्य देखने को मिलेगा।

कैसे पहुंचें:- दादर नागर हवेली पहुंचने के लिए करीबी एयरपोर्ट मुंबई सिलवासा से करीब 170 किलोमीटर दूर है। यहां ट्रेन से पहुंचने के लिए वापी रेलवे स्टेशन पास में है जो सिलवासा से 17 किलोमीटर दूर है। सड़क के रास्ते जाने के लिए बॉम्बे- बड़ौदा- दिल्ली राष्ट्रीय राजमार्ग सबसे बेहतर है। मुंबई से सिलवासा 170 किलोमीटर, नासिक से 150 किलोमीटर, दमन से 27 किलोमीटर, सूरत से 125 किलोमीटर, अहमदाबाद से 375 किलोमीटर दूर है।

क्या खाएं:- दादर नागर हवेली के भोजन में गुजराती भोजन का स्वाद मिलता है। स्थानीय आदिवासी दाल, बांस, सब्जी और मशरूम बहुत खाते हैं। पौंक, गमठी चिकन, खमन ढोकला, उबाडियू और दूध पाक यहां के प्रसिद्ध भोजन हैं। तामी यहां की स्थानीय प्रसिद्ध शराब है। यहां कई तरह के आटे की रोटियां मिलती हैं।

क्या खरीदें:- यहां खरीददारी करने में बहुत मजा आएगा। वरली पेंटिंग्स, बांस के हैंडमेड क्राफ्ट, चमड़े की चप्पलें, चटाई, घास के बने बास्केट आदि जरूर खरीदें।

सियासी मीयार की रिपोर्ट