कविता : गति-मति...

क्यूँ बांधते हो
अपने को.…
अपनों को।
बंधन के तीन कारण
भाव, स्वभाव और अभाव
और दो विकल्प है,
मन और जिस्म।
मन की गति अद्भुत है.…
जब अपना न बन्ध सका,
तो पराये पर जोर कैसा?
बंधना-बांधना छोड़ो—दृष्टा बनो ….
क्या कहा?
बंधोगे जिस्म को….
अरे उसकी गति तो
मन से भी द्रुत है
फ़ना हो जायेगा
और पता भी नहीं चलेगा।
सियासी मीयर की रिपोर्ट
Siyasi Miyar | News & information Portal Latest News & Information Portal