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पुस्तक समीक्षा: हरारत में तीसरी नदी…

पुस्तक समीक्षा: हरारत में तीसरी नदी…

पुस्तक – हरारत में तीसरी नदी
रचनाकार – बजरंग बिश्नोई
मूल्य – 250 रुपए
प्रकाशक – व्हाइट फॉल्कन पब्लिशिंग, नई दिल्ली

बजरंग बिश्नोई संवेदनशील कवि हैं। हरारत में तीसरी नदी उनके जीवन के सात दशकों में लिखे श्रेष्ठ कविताओं का संग्रह है। अपने इस संग्रह की तीसरी कविता में उन्होंने नदी को संवेदना के प्रतिरूप में इस्तेमाल किया है, तीसरी नदी है संवेदना यह बहती ही रहती है उद्गम से सागर के जानिब। नदी को लेकर उन्होंने इस संग्रह में कई कविताएं लिखी हैं, जैसे-नदी में आईना, तीसरी नदी के अन्वेषी, आदि।

वैज्ञानिकता और यांत्रिकता के हस्तक्षेप के दौर में व्यक्ति की निजता का जो स्पेस कहीं खो गया है, उसी स्पेस को बचाए-बनाए रखने की कोशिश में हरारत में तीसरी नदी की कविताएं हैं। स्वयं कवि का ही कहना है कि वेदना, संवेदना, आवेग और आवेश, योग और मनोयोग सब समय के साथ बदलते रहते हैं लेकिन इनमें से कुछ समय के बाहर और जैसा का तैसा रहता है।

घड़ी शीर्षक से लिखी कविता की पंक्तियां इस संग्रह के मर्म को पाठकों के समक्ष रखने में सक्षम है, कलाई पर बंधी हुई घड़ी/मेरे साथ-साथ चलती है/ कभी-कभी/ मैं उसके साथ चलता हूं। …मैं मर जाऊंगा/और इसके साथ/ नहीं चल सकूंगा/ और यह न रुकेगी/चलती रहेगी न दर्ज करेगी/मेरा मरना/ न मेरा जीना।

सियासी मियार की रीपोर्ट