Saturday , January 11 2025

तुम्हारे फूल..

तुम्हारे फूल..

-अजन्ता शर्मा-

तुम्हारे फूलों ने जब
मेरी सुबह की पहली सांसें महकायीं
मैंने चाहा था,
उसी वक्त तितली बन जाऊं
मंडराऊं खूब
उन खुशबू भरे खिलखिला

ते रंगों पर
बहकूं सारा दिन उसी की महक से
महकूं सारी रात उसी की लहक से
खुद को बटोरकर
उस गुलदस्ते का हिस्सा बन जाऊं
अपने घर को महकाऊं
पड़ी रहूं दिन रात उसे लपेटे
बिखेरूं
या सहेजूं उसकी पंखुड़ियां
सजा लूं उससे अपने अस्तित्व को
या सज लूं मैं
कि वो हो
या ये
मैं चाह रही हूं अब भी
अपनी पंक्तियों की शुरुआत
जो हो अंत से अनजान।

सियासी मियार की रीपोर्ट